तेजस्वी यादव के चुनावी वादे: पंचायती राज से लेकर परंपरागत कारीगरों तक-‘लोकल + वेलफेयर’ मॉडल से नई सियासी जंग की तैयारी
Bihar chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और जैसे-जैसे तारीख़ें करीब आ रही हैं, विपक्ष के नेता और ‘इंडिया गठबंधन’ की ओर से संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव अपने चुनावी अभियान को नए वादों के साथ तेज़ कर रहे हैं। रविवार को पटना में तेजस्वी ने पंचायत प्रतिनिधियों, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) डीलरों और परंपरागत कारीगरों के लिए कई बड़ी घोषणाएं कीं, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है।
तेजस्वी यादव ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अगर बिहार में ‘इंडिया गठबंधन’ की सरकार बनती है, तो पंचायती राज व्यवस्था को नई ताकत दी जाएगी। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि गांवों की सरकार मज़बूत हो, क्योंकि असली ताकत पंचायतों में ही है।”
उन्होंने ऐलान किया कि पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों का भत्ता दोगुना किया जाएगा। इसके अलावा उन्हें 50 लाख रुपये का बीमा कवर और पेंशन सुविधा भी दी जाएगी। बिहार में तीन स्तरों पर पंचायती राज व्यवस्था काम करती है जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत जिनके प्रमुख क्रमशः अध्यक्ष, प्रमुख और मुखिया कहलाते हैं।
डीलरों और कारीगरों के लिए राहत पैकेज
तेजस्वी ने PDS डीलरों की आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में भी कदम उठाने का वादा किया। उन्होंने कहा कि डीलरों का मार्जिन मनी प्रति क्विंटल के हिसाब से बढ़ाया जाएगा, ताकि वे बिना आर्थिक दबाव के जनता को बेहतर सेवा दे सकें।
इसके साथ ही परंपरागत पेशों से जुड़े समुदायों- जैसे नाई, कुम्हार, बढ़ई और लोहार को राज्य सरकार की ओर से 5 लाख रुपये तक का ब्याज-मुक्त ऋण देने की घोषणा की। तेजस्वी ने कहा कि “छोटे कारीगर बिहार की आत्मा हैं, उन्हें आर्थिक रूप से मज़बूत करना हमारी प्राथमिकता होगी।”
महिलाओं और संविदा कर्मियों पर फोकस
तेजस्वी यादव इससे पहले भी राज्य की महिलाओं और संविदा कर्मियों के लिए कई वादे कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि ‘जीविका दीदियों’ को ब्याज-मुक्त ऋण, बढ़ा हुआ मानदेय और स्थायी आय के अवसर दिए जाएंगे। वहीं संविदा कर्मियों के लिए उन्होंने सेवाओं के नियमितीकरण और वेतनमान की समीक्षा का भरोसा दिलाया था।
चुनावी समीकरण पर असर
बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में मतदान होगा 6 और 11 नवंबर को, जबकि नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि तेजस्वी की घोषणाएं ग्रामीण मतदाताओं, महिला समूहों और सरकारी कर्मचारियों — तीनों वर्गों को लक्षित करती हैं।
राजनीतिक विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि तेजस्वी यादव का यह “लोकल + वेलफेयर मॉडल” नीतीश कुमार के “गुड गवर्नेंस मॉडल” को सीधी चुनौती देता दिख रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता इस वादों की जंग में किस पर भरोसा जताती है- तेजस्वी के सामाजिक सुरक्षा व रोजगार मॉडल पर या नीतीश के विकास-प्रबंधन तंत्र पर।