आज से चैती छठ महापर्व हुआ शुरू: जानें नहाए-खाय, खरना की सही तारीख और अर्घ्य का मुहूर्त
5 अप्रैल से नहाय खाय के साथ चैती छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. छठ पर्व मुख्यतौर पर बिहार के लोगों के लिए विशेष महत्व रखने वाला पर्व है. वहीं इस पर्व को अन्य जगहों पर भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यह साल में दो बार मनाया जाता है. एक तो चैत्र के महीने में यानी अप्रैल के महीने में और दूसरा कार्तिक के महीने में यानि अक्टूबर-नवंबर के महीने में मनाया जाता है. यूं तो कार्तिक मास में आने वाले छठ पर्व को अधिक महत्व दिया जाता है लेकिन चैती छठ का महत्व पूर्वांचल के लोगों के लिए एक समान ही होता है. इस पर्व से कई मान्यताएं जुड़ी हुई है. कार्तिक मास का छठ पर्व और चैती छठ दोनों में ही आस्था समान है. यह पर्व सूर्य देव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है और छठ देवी भगवान सूर्य की बहन हैं. इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जाती है. किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर सूर्य देव की अराधना की जाती है.
छठ का त्योहार इस साल 5 अप्रैल से शुरू होकर 8 अप्रैल को उगते सूरज को जल देकर समाप्त होगा. चैत्र में मनाए जाने वाले चैती छठ व्रत के नियम कार्तिक में मनाए जाने वाले छठ के समान ही होते हैं. छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ 5 अप्रैल से हो गई . वहीं 6 अप्रैल को खरना के दिन खीर और रोटी का भोग लगेगा. 7 अप्रैल को डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा. वहीं 8 अप्रैल को उगते सूरज को अर्घ्य देकर इस पर्व का समापन किया जाएगा. चैती छठ की पूजा पर अर्घ्य देने के लिए सूर्यास्त का समय – 7 अप्रैल शाम 5:30 बजे और सूर्योदय का समय – 8 अप्रैल सुबह 6:40 बजे होगा.
महिलाएं नहाय खाय वाले दिन खुद को पवित्र कर अगले दिन खरना की तैयारी में जुट जाती हैं. खरना व्रत की संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं और फिर अगले 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखते हैं. मान्यता है खरन पूजन से छठ देवी की कृपा प्राप्त होती है और मां घर में वास करती हैं. बता दें कि खरना को कई जगहों पर लोहंडा भी कहा जाता है. इस दिन लोग स्नान आदि करके सूर्य भगवान को जल देते हैं और उसके बाद पीतल या मिट्टी के पात्र में गुड़ की खीर बनाकर भोग लगाते हैं. गुड़ की खीर केवल गाय के उपले या आम की लकड़ी पर बनाई जाती है और उसके बाद केले के पत्ते पर भगवान सूर्य और चंद्रमा को भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है.
दरअसल, नई फसल के बाद किसान परिवारों में चैत्र महीने में होने वाले सूर्य उपासना के इस महापर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. हालांकि गर्मी के कारण 36 घंटे का निर्जला उपवास बहुत ही कठिन होता है लेकिन फिर भी कई लोग चैती छठ को धूमधाम से मनाते हैं. कार्तिक मास के अपेक्षा चैती छठ को कम ही लोग मनाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संतान की कामना करने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत उत्तम माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैय्या को भगवान सूर्य की बहन कहा जाता है. मान्यता है कि छठ महापर्व में छठी मैय्या व भगवान सूर्य की पूजा करने से छठी मैय्या प्रसन्न होती हैं. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से घर में सुख-शांति व खुशहाली आती है.
Report: Shubham Singh