जातीय जनगणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर 20 जनवरी को सुनवाई
 

 

बिहार में हो रही जातीय जनगणना का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इसके खिलाफ एक याचिका दाखिल हुई है. याचिका में कहा गया है कि संविधान के तहत किसी राज्य को जनगणना का अधिकार नहीं है. इस याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट से बिहार के जातिगत जनगणना पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी है. वहीं अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की तारीख तय कर दी है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 20 जनवरी को सुनवाई करेगी. 

 आपको बता दें कि ये याचिका बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने दाखिल की है. याचिका में बिहार सरकार को जातिगत जनगणना से रोकने की भी मांग है. इसमें कहा गया है कि बिहार राज्य की अधिसूचना और फैसला अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानून के अधिकार के बिना है. भारत का संविधान वर्ण और जाति के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है. जाति संघर्ष और नस्लीय संघर्ष को खत्म करने के लिए राज्य संवैधानिक दायित्व के अधीन है. अखिलेश कुमार ने याचिका में सवाल उठाया है कि क्या भारत के संविधान ने राज्य सरकार को ये अधिकार दिया है, जिसके तहत वो जातीय आधार पर जनगणना कर सकती है? 

बता दें याचिका में सात बिंदुओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सामने ये मुद्दा उठाया गया है. 

1. बिहार सरकार द्वारा जातिगत जनगणना कराना क्‍या संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?
2. क्या भारत का संविधान राज्य सरकार को जातिगत जनगणना कराए जाने का अधिकार देता है? 
3. क्या 6 जून को बिहार सरकार के उपसचिव द्वारा जारी अधिसूचना जनगणना कानून 1948 के खिलाफ है?
4. क्या कानून के अभाव में जातिगत जनगणना की अधिसूचना, राज्य को कानूनन अनुमति देता है?
5. क्या राज्य सरकार का जातिगत जनगणना कराने का फैसला सभी राजनीतिक दलों द्वारा एकमत से लिया गया है?
6. क्या बिहार में जातिगत जनगणना के लिए राजनीतिक दलों का निर्णय सरकार पर बाध्यकारी है?
7. क्या बिहार सरकार का 6 जून का नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अभिराम सिंह मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ है?