बिहार के स्कूलों में अब बच्चों को पढ़ाई जाएगी भोजपुरी, मगही और मैथिली: शिक्षा में बदलाव की नई इबारत
Bihar: बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों के लिए शिक्षा का चेहरा बदलने वाला है। राज्य सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक की पाठ्यपुस्तकों को नई सोच और नई भाषा के साथ फिर से गढ़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अब बच्चों को पढ़ाई सिर्फ हिंदी या उर्दू में नहीं, बल्कि भोजपुरी, मैथिली, मगही, बज्जिका, अंगिका और सूर्यापुरी जैसी स्थानीय भाषाओं में भी कराई जाएगी।
नई दिशा की ओर दस्तक
यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा (NCF) 2023 के अनुरूप किया जा रहा है। इसके तहत बिहार ने खुद का ‘बिहार करिकुलम फ्रेमवर्क 2025 (BCF)’ तैयार किया है। जो न सिर्फ बच्चों की भाषा-समझ के अनुसार पाठ्यपुस्तकों को डिजाइन करेगा, बल्कि स्थानीयता, व्यावहारिक ज्ञान और सांस्कृतिक जुड़ाव पर भी ज़ोर देगा। 2008 के बाद पहली बार इतनी व्यापक स्तर पर किताबों में बदलाव होगा।
शिक्षकों और विद्वानों की सलाह से बदलेगा सिलेबस
राज्य शैक्षिक प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने बदलाव की रूपरेखा बना ली है और 22–23 जुलाई को शिक्षाविदों और शिक्षकों के साथ अहम बैठक आयोजित की जा रही है। बैठक का फोकस होगा:
- कक्षा 1–5 के लिए नई भाषा नीति के अनुसार सरल और रोचक किताबें तैयार करना।
- भाषा, गणित, पर्यावरण, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की नई रूपरेखा तय करना।
- कक्षा 6–8 के लिए अगले चरण के पाठ्यक्रम संशोधन की दिशा में रोडमैप बनाना।
अपनी भाषा में पढ़ेगा बिहार का बच्चा
अब तक उर्दू और बांग्ला माध्यम के बच्चों के लिए कुछ प्रावधान जरूर थे, लेकिन पहली बार भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका, बज्जिका और सूर्यापुरी जैसी भाषाओं में शिक्षा देने की ठोस पहल हो रही है। अनुसंधान बताते हैं कि बच्चे जब अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं, तो उनकी समझ, जिज्ञासा और आत्मविश्वास तीनों में ज़बरदस्त बढ़ोतरी होती है।
पिछली बार कब हुआ था पाठ्यक्रम में बदलाव?
- आखिरी बार 2005 के NCF के तहत बिहार ने 2006-2008 में किताबें बदली थीं।
- 2008 से 2010 के बीच 1 से 12 तक की किताबें फिर से तैयार की गईं।
- फिलहाल कक्षा 9–12 में सीधे NCERT की किताबें लागू हैं।
क्या कहता है विशेषज्ञ वर्ग?
शिक्षाविदों का मानना है कि यह बदलाव अगर नीति से जमीन तक सही तरीके से लागू हुआ तो बिहार ‘भाषा-आधारित समावेशी शिक्षा मॉडल’ में देश भर में उदाहरण बन सकता है। यह केवल भाषा का सवाल नहीं है, यह सम्मान, पहुंच और गुणवत्ता की शिक्षा का सवाल है।
आगे कि प्रक्रिया
- 22-23 जुलाई: पाठ्यक्रम समीक्षा बैठक
- अगले 6 महीने: नई किताबों का ड्राफ्ट तैयार, परीक्षण और पायलट लागू
- 2026 सत्र से संभावना: नई किताबों की पूर्ण रूप से शुरुआत
बिहार ने शिक्षा को सिर्फ किताबों की अदला-बदली नहीं, भाषा और समझ की आज़ादी की ओर मोड़ा है। अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो यह न सिर्फ बिहार के बच्चों की ज़िंदगियां बदलेगा, बल्कि देश को मातृभाषा में शिक्षा की नई राह भी दिखा सकता है।