17 नवंबर को नहाय खाय के साथ होगी महापर्व छठ की शुरुआत

 

लोक आस्था का महापर्व छठ केवल पर्व नहीं ये बिहारियों के लिए ख़ुशी है, प्यार है, ये बिहारियों के लिए मोह का धागा है. बिहार का कोई भी व्यक्ति देश दुनिया में कहीं भी रहे जैसे ही छठ का त्योहार आता है उसे अपने गांव, अपने घर और उस घर में होने वाली पूजा.  बिहार के किसी भी नागरिक के लिए छठ सिर्फ त्योहार नहीं बल्कि एक इमोशन है. 

महापर्व छठ की 17 नवंबर से शुरुआत हो गई है. लोक आस्था के इस पर्व नहाय खाय के साथ चार दिनों का महापर्व छठ शुरू हो गया है. नहाय खाय के दिन पूरी शुद्धता के साथ छठ व्रती स्नान कर नहाय खाय का प्रसाद बनाएंगी इस मौके पर गंगा घाटों एवं तालाबों पर व्रतियों की काफी भीड़ देखने को मिलती है.  वैसे छठ की असल तैयारी का दिन नहाय खाय ही होता है. इधर कद्दू-भात बनाने की तैयारी होती और उधर प्रसाद तैयार करने के लिए गेहूं-चावल धोकर सुखाने-पिसाने का काम होगा. जो बिहार को ठीक से नहीं जानते, उनके लिए छठ को समझना थोड़ा मुश्किल है. देश-दुनिया के लोग छठ के बारे में जानना चाह रहे कि आखिर इसका इतना महत्व क्यों है? क्यों मनाया जाता है? 

शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं. यह एकमात्र त्योहार है जहां एकसाथ भाई बहन की भी पूजा होती है. मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना के लिए स्वयं को दो भागों में विभाजित किया था. तब दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. इसके बाद सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया. प्रकृति देवी के छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा हिस्सा होने की वजह से इन्हें छठी मैया के नाम से जाना जाता है. शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है.इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य,सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है.