सावन में सियासत का स्वाद: ललन सिंह की मटन पार्टी पर उठा सियासी तूफान
Bihar: सावन का महीना, शिवभक्ति का समर्पण और... सियासत की थाली में परोसा गया मटन। जी हां, बिहार की राजनीति में इस बार सावन भी आरोप-प्रत्यारोप का मंच बन गया है। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने मुंगेर के सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र में आयोजित जदयू संवाद कार्यक्रम के बाद मटन भोज का आयोजन कर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। एनएच-80 के किनारे एक पेट्रोल पंप के पास खुले मंच से ललन सिंह ने सार्वजनिक रूप से ऐलान किया है।
"मटन और सादा भोजन दोनों की व्यवस्था है, जो चाहें खाएं!"
इस एक लाइन ने भोज को केवल भोज नहीं रहने दिया, बल्कि उसे सावन-संस्कृति बनाम सियासत के विवाद में तब्दील कर दिया।
RJD का हमला: धर्म के ठेकेदार कौन?
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इस पूरे आयोजन पर करारा वार किया। फेसबुक पोस्ट में ललन सिंह को "धर्म-परंपरा का ढोंगी ठेकेदार" करार दिया गया। वहीं, लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने कविता के अंदाज़ में तंज कसा है।
"ढोंग रच-रच ढकोसले फैलाने वाले,
दूसरों के खान-पान पर उंगली उठाने वाले,
खुद जब बारी आई तो मर्म भी भूले, धर्म भी!"
सवाल सिर्फ मटन का नहीं है...
इस कार्यक्रम में जदयू के वरीय मंत्री अशोक चौधरी तो मंच पर मौजूद थे, लेकिन NDA के अन्य घटक दल गायब रहे।
क्या ये संयोग था या संकेत?
राजनीतिक विश्लेषक इसे "सावन में सियासी सेंधमारी" मान रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि ललन सिंह ने इस भोज के जरिए फिर से मटन-डिप्लोमेसी शुरू की है, जिससे वे पहले भी मुंगेर में जनता को साध चुके हैं। लेकिन इस बार पेंच वक्त में है सावन, यानी आस्था और संयम का महीना।
शिवभक्ति, यानी मांसाहार से दूरी। ऐसे में एक केंद्रीय मंत्री द्वारा भोज में मटन परोसना, विरोधियों के लिए सीधा सियासी हथियार बन गया।
NDA में सब कुछ ठीक नहीं?
इस भोज के जरिए सामने आई सबसे बड़ी बात यह भी रही कि NDA के अंदरूनी रिश्तों की परतें भी खुलने लगी हैं। कार्यक्रम में भाजपा या HAM जैसे सहयोगी दलों की अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह NDA की टूटन की आहट है? या फिर चुनावी बिसात पर चल रहे नए दांव-पेच?
ललन सिंह के मटन भोज ने साफ कर दिया है कि बिहार की राजनीति अब सिर्फ भाषणों से नहीं, भोजनों से भी तय हो रही है। और सावन जैसे धार्मिक महीनों में इस तरह के आयोजन सिर्फ एक ‘भोजन’ नहीं, बल्कि सियासी मैसेज बन जाते हैं। अब देखना यह है कि यह मटन पार्टी किसे फायदा पहुंचाएगी। भोजन कराने वाले को या सवाल उठाने वालों को?