सुपौल स्वास्थ्य विभाग में फर्जी डिग्री का खेल: डीपीएम पर कार्रवाई, पत्नी पर मेहरबानी- विभाग सवालों के घेरे में

 

Bihar News: भ्रष्टाचार मुक्त जागरूकता अभियान के तहत आरटीआई कार्यकर्ता सह जन सुराज नेता अनिल कुमार सिंह द्वारा चलाए गए ऑपरेशन आरोग्य पार्ट-2 के बाद फर्जी डिग्री पर नौकरी करने वाले तत्कालीन जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम) मो. मिन्नतुल्लाह पर कार्रवाई शुरू हो गई है। हालांकि, उसी फर्जी डिग्री के आधार पर निर्मली अस्पताल की प्रबंधक बनी उनकी पत्नी निखत जहाँ परवीन पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इसे लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

जानकारी के अनुसार, फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति के मामले में मो. मिन्नतुल्लाह के खिलाफ सदर थाना और सरायगढ़-भपटियाही थाना में धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसके बावजूद, उनकी पत्नी पर विभागीय कार्रवाई न होना चर्चा का विषय बना हुआ है।

बताया जाता है कि 7 फरवरी 2022 को डीपीएम बनने के बाद मो. मिन्नतुल्लाह ने विभाग में मजबूत पकड़ बना ली। इसके एक साल बाद 28 मार्च 2023 को उन्होंने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर अपनी पत्नी को निर्मली अस्पताल का प्रबंधक बनवा दिया। आरोप है कि वह लंबे समय तक कार्यालय आए बिना ही वेतन लेती रहीं।

नए जिलाधिकारी सावन कुमार के पदभार संभालने के बाद मामले की परतें खुलनी शुरू हुईं। स्थिति बिगड़ती देख मो. मिन्नतुल्लाह ने 2 अगस्त को अवकाश पर रहते हुए ही सिविल सर्जन सह सदस्य सचिव, जिला स्वास्थ्य समिति को ई-मेल के जरिए इस्तीफा भेज दिया। इसके बाद उनकी पत्नी ने भी पति के स्वास्थ्य का हवाला देते हुए त्यागपत्र सौंप दिया। इसके बावजूद, दोनों के खिलाफ अब तक निर्णायक विभागीय कार्रवाई नहीं होने से संदेह और गहराता जा रहा है।

सीएमजे यूनिवर्सिटी की फर्जी डिग्री का मामला

जांच में सामने आया है कि मो. मिन्नतुल्लाह और उनकी पत्नी—दोनों ने मेघालय की चंद्र मोहन झा (सीएमजे) यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री प्राप्त करने का दावा किया था। जबकि मेघालय सरकार ने इस विश्वविद्यालय द्वारा 2010 से 2013 के बीच जारी सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों को अवैध घोषित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में भी विश्वविद्यालय की याचिका खारिज हो चुकी है और यूजीसी ने इसे फर्जी करार दिया है।

दो थानों में दर्ज एफआईआर

मो. मिन्नतुल्लाह के खिलाफ पहली प्राथमिकी 19 दिसंबर को सिविल सर्जन डॉ. ललन कुमार ठाकुर द्वारा सदर थाना में दर्ज कराई गई, जबकि दूसरी प्राथमिकी 22 दिसंबर को सरायगढ़-भपटियाही थाना में दर्ज हुई। दोनों मामलों में धोखाधड़ी और संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की मांग की गई है।

विभागीय मिलीभगत के आरोप

फर्जी डीपीएम और उनकी पत्नी को बचाने के आरोप अब सीधे स्वास्थ्य महकमे पर लग रहे हैं। इस्तीफा देने के महीनों बाद भी प्रभार हस्तांतरण नहीं हुआ है और कई महत्वपूर्ण फाइलें व दस्तावेज लापता बताए जा रहे हैं। न तो अब तक बर्खास्तगी की कार्रवाई हुई है और न ही उनके कार्यकाल में हुए कथित घोटालों की जांच आगे बढ़ी है।

इन परिस्थितियों में सिविल सर्जन और प्रभारी डीपीएम की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस पूरे मामले में निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई करता है या फर्जीवाड़े के आरोपी सिस्टम की कमजोरी का फायदा उठाते रहेंगे।