रिम्स जमीन घोटाले मामले में हाईकोर्ट का आदेश, कहा- दोषी लोगों से मुआवजा वसूले और पीड़ितों को मुआवजा दें
 

Jharkhand Desk: झारखंड हाईकोर्ट ने रिम्स की जमीन पर अतिक्रमण के मामले में प्रभावित फ्लैट खरीदारों को उचित मुआवजा देने और यह राशि दोषी अधिकारियों व बिल्डरों से वसूलने का निर्देश दिया है. अदालत ने साफ कहा कि निर्दोष खरीदारों का नुकसान सरकारी कोष से नहीं, बल्कि उन लोगों से भरपाई कराई जाए जिन्होंने सरकारी जमीन को निजी बताकर बेचने का अपराध किया है...
 

Jharkhand Desk: झारखंड हाईकोर्ट ने रांची के DIG ग्राउंड स्थित रिम्स की जमीन पर अवैध निर्माण के मामले में एसीबी जांच के निर्देश दिए हैं. साल 1964-65 से अधिग्रहित भूमि पर बनी बहुमंजिला इमारतों को गिराने के बाद फ्लैट खरीदारों के मुआवजे की जिम्मेदारी भ्रष्ट अफसरों और बिल्डरों पर तय करने को कहा है.

झारखंड हाईकोर्ट ने रिम्स की जमीन पर अतिक्रमण के मामले में प्रभावित फ्लैट खरीदारों को उचित मुआवजा देने और यह राशि दोषी अधिकारियों व बिल्डरों से वसूलने का निर्देश दिया है. अदालत ने साफ कहा कि निर्दोष खरीदारों का नुकसान सरकारी कोष से नहीं, बल्कि उन लोगों से भरपाई कराई जाए जिन्होंने सरकारी जमीन को निजी बताकर बेचने का अपराध किया है. झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार ने बताया कि यह फैसला चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुजीत नारायण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनाया है. मामले की विस्तृत सुनवाई 6 जनवरी को होगी.

कोर्ट ने इस पूरे घोटाले की जांच एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) से कराने का आदेश देते हुए यह भी टिप्पणी की कि आवश्यक हो तो आगे चलकर सीबीआई जांच की संभावना खुली रहेगी. अदालत ने संबंधित अफसरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और उनकी जिम्मेदारी तय करने को कहा, ताकि भविष्य में सरकारी भूमि की ऐसी अवैध सौदेबाजी दोबारा न हो सके.

सरकार ने हाईकोर्ट को बताया है कि रांची के मोरहाबादी और कोकर मौजा में रिम्स की करीब 9.65 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा किया गया, जिस पर मंदिर, बाजार, कच्चे मकान और बहुमंजिला अपार्टमेंट तक खड़े कर दिए गए. यह वही जमीन है, जो 1964-65 में चिकित्सा संस्थान के विस्तार और सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिग्रहित की गई थी, लेकिन बाद में राजस्व रिकॉर्ड, रजिस्ट्रेशन और नगर निगम की मिलीभगत से इसे निजी प्लॉट की तरह बेच दिया गया.

इसी अवैध सौदेबाजी के तहत DIG ग्राउंड के पास बनी एक चार मंजिला अपार्टमेंट सहित कई पक्के ढांचे तैयार हुए, जिनमें दर्जनों फ्लैट बेच दिए गए और लोगों ने जीवन भर की बचत लगा दी. अब हाईकोर्ट के आदेश पर इन संरचनाओं को अवैध घोषित कर गिराया जा रहा है, जिससे पीड़ित खरीदारों की आर्थिक सुरक्षा और आवासीय अधिकार का सवाल सामने आया है.

रिम्स परिसर और DIG ग्राउंड की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट के 3 दिसंबर 2025 के आदेश के बाद 72 घंटे की समय सीमा खत्म होते ही अभियान शुरू किया. इस आदेश में कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि रिम्स कैंपस और उससे सटे सरकारी भूखंडों से हर तरह का अतिक्रमण हटाया जाए और किसी भी प्रकार की रोक लगाने वाली याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जाएगा.

इसके बाद पिछले सप्ताह से रांची नगर निगम, पुलिस और रिम्स प्रबंधन की संयुक्त टीम बुलडोजर और जेसीबी की मदद से अवैध मकानों, दुकानों और चार मंजिला अपार्टमेंट को तोड़ रही है, जिससे पूरे इलाके में भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच लगातार अतिक्रमण हटाओ अभियान जारी है. हाईकोर्ट ने ताजा सुनवाई में इस अभियान की धीमी रफ्तार पर नाराजगी जताते हुए इसे तेजी से पूरा करने का निर्देश दोहराया.

हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि संबंधित अधिकारी शुरू से सतर्क रहते तो न रिम्स की जमीन बेची जाती और न ही लोगों को अपना घर उजड़ते देखने की नौबत आती. अदालत ने कहा कि बिल्डिंग प्लान पास करने, रजिस्ट्रेशन- म्युटेशन और रेरा स्वीकृति देने वाले अधिकारियों की भूमिका की सेवानिवृत्त या सेवा में मौजूद होने की परवाह किए बिना जांच होनी चाहिए और दोषी पाए जाने पर निलंबन व आपराधिक कार्रवाई की जाए.

दूसरी ओर, निर्दोष फ्लैट खरीदारों के लिए यह आदेश बड़ी राहत माना जा रहा है, क्योंकि कोर्ट ने साफ कर दिया कि उनका आर्थिक नुकसान किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और मुआवजा सुनिश्चित कर उन्हें न्याय दिलाया जाएगा. अब सारा ध्यान इस पर है कि एसीबी जांच कितनी तेजी से दोषियों तक पहुंचती है और सरकार कितनी जल्दी प्रभावित लोगों को मुआवजा दिलवाकर रिम्स की जमीन को पूरी तरह अतिक्रमण मुक्त कर पाती है. बता दें कि 20 दिसंबर को स्वत: संज्ञान याचिका पर खंडपीठ ने सुनवाई की थी और रविवार को ऑर्डर की कॉपी जारी हुई है.