झारखंड में नाम परिवर्तन गजट प्रक्रिया पर रोक, राजकीय प्रेस में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की जांच शुरू
झारखंड की राजकीय प्रेस से जारी होने वाले नाम परिवर्तन गजट नोटिफिकेशन पर वित्त विभाग ने तत्काल प्रभाव से प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। इस निर्णय का कारण, इस प्रक्रिया में सामने आई भारी अनियमितताएं और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रेस के सहायक अधीक्षक संजीव कुमार से विभाग ने स्पष्टीकरण भी मांगा है। लेकिन उन्होंने जवाब देने से परहेज करते हुए टालमटोल की नीति अपनाई, जिसके बाद विभाग ने उन्हें स्मार पत्र जारी किया है।
वित्त विभाग के संयुक्त सचिव कौशल किशोर झा को राजकीय प्रेस में चल रहे इस अनियमित कार्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। उनसे यह भी कहा गया है कि वे नाम परिवर्तन से जुड़े नोटिफिकेशन की प्रक्रिया पर अपना मंतव्य दें, क्योंकि बिना किसी सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के हो रहे नाम परिवर्तनों में वित्तीय गड़बड़ी की संभावना सामने आई है।
क्या है मामला?
विभाजन से पहले बिहार और उसके बाद झारखंड में राजकीय प्रेस और गजट नोटिफिकेशन की जिम्मेदारी वित्त विभाग के अधीन रही है। बिहार से आए संजीव कुमार को झारखंड की राजकीय प्रेस में सहायक अधीक्षक के पद पर तैनात किया गया। आरोप है कि उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति लिए बिना सीधे लोगों से आवेदन लेकर गजट नोटिफिकेशन जारी करना शुरू कर दिया।
15 नवंबर 2000 से 2014 तक नाम परिवर्तन की यह प्रक्रिया पूरी तरह मैनुअल रही। इस अवधि में कितने लोगों के नाम बदले गए, पुराने और नए नाम क्या थे, परिवर्तन का कारण क्या था – इस संबंध में कोई दस्तावेज या रिकॉर्ड संधारित नहीं किया गया। इतना ही नहीं, प्रत्येक आवेदन से लिए गए ₹155 शुल्क की राशि भी सरकारी खजाने में जमा नहीं की गई।
विभाग ने संजीव कुमार से इन सवालों पर जवाब मांगा:
- कुल कितने नाम बदले गए?
- किस आधार पर बिना अनुमति गजट जारी किया गया?
- नाम परिवर्तन की तिथि, शुल्क की राशि, पुराने और नए नाम की जानकारी कहां है?
- गजट की प्रति कहाँ संधारित है?
लेकिन अब तक इन सभी सवालों का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला है। इसलिए विभाग ने दोबारा स्मार पत्र भेजकर जवाब की मांग की है।
अन्य राज्यों में कैसे होती है प्रक्रिया?
उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में 6600 ग्रेड पे के अधिकारी की अनुमति के बाद ही नाम परिवर्तन का गजट नोटिफिकेशन जारी होता है। आवेदन के साथ संबंधित संचिका प्राधिकृत अधिकारी के पास जाती है और स्वीकृति मिलने के बाद ही प्रक्रिया आगे बढ़ती है। परंतु झारखंड में सहायक अधीक्षक ने अपने स्तर से ही पूरी प्रक्रिया को अंजाम देना शुरू कर दिया।
2014 के पहले के अधिकांश नाम परिवर्तन नोटिफिकेशन की एक भी प्रमाणित प्रति सरकारी प्रेस में उपलब्ध नहीं है। साथ ही इस संबंध में कोई डिजिटल या भौतिक रिकॉर्ड भी सुरक्षित नहीं रखा गया है।
गंभीर घोटाले की संभावना
विभागीय सूत्रों का कहना है कि इस पूरे मामले में एक बड़े घोटाले की आशंका है। कई मामलों में धार्मिक पहचान बदलकर, जैसे हिंदू से मुस्लिम और मुस्लिम से हिंदू नाम, गजट नोटिफिकेशन कराया गया है। कुछ फर्मों के नाम भी बदले गए हैं, जिन्होंने बदले हुए नाम पर बैंकों से ऋण लेकर धोखाधड़ी की है।
इतना ही नहीं, नाम परिवर्तन के आधार पर कई लोगों ने अपने आधार कार्ड में भी संशोधन कर उम्र को बदल लिया है और इसी बदली हुई उम्र के साथ सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होकर नौकरी भी पा ली है।
वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा है कि पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाएगी और जो भी दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। आने वाले समय में इस मामले से जुड़े और कई गंभीर खुलासे होने की संभावना है।