झारखंड में कांग्रेस-JMM के बिगड़ते रिश्ते पर, देखिये दिल्ली के नेता ने क्या कहा...
Jharkhand Desk: बिहार में विधानसभा चुनाव भले हो रहे हों, लेकिन इसकी तपिश झारखंड की राजनीति तक पहुंच गई है. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने कांग्रेस और राजद पर 'राजनीतिक धूर्तता' का आरोप लगाते हुए कहा है कि गठबंधन की वजह से उसे बिहार में चुनाव लड़ने का उचित अवसर नहीं मिला. पार्टी का कहना है कि वह बिहार में कम से कम छह सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस और राजद की राजनीति के चलते ऐसा नहीं हो सका. जेएमएम नेताओं के मुताबिक, 2020 की तरह इस बार भी उनके साथ धोखा हुआ है.
राज्य सरकार के नगर विकास मंत्री सुदिव्य सोनू ने इस पर दुख जताया और राजद और कांग्रेस पर सम्मान न देने का आरोप लगाया. हालांकि उन्होंने मुख्य रूप से इसके लिए राजद को दोषी ठहराया. मीडिया में कांग्रेस और झामुमो के गठबंधन पर दरार को लेकर कई खबरें सामने आ चुकी है. लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव प्रणव झा इस पर अपनी जुदा राय रखते हैं. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे के कार्यालय प्रभारी सह राष्ट्रीय सचिव प्रणव झा का कहना है कि झारखंड में महागठबंधन की सरकार में कांग्रेस-झामुमो का रिश्ता काफी परिपक्व है.
दरअसल, वे तीन दिवसीय दौरे पर दिल्ली से झारखंड आये हैं. इस दौरान वे शुक्रवार को रामगढ़ के प्रभात खबर कार्यालय में आए और बिहार चुनाव पर कांग्रेस की रणनीति व चर्चाओं पर बातचीत की. उन्होंने कहा कि बिहार चुनाव में झामुमो को गठबंधन में सीट नहीं मिलने की जानकारी से वे बहुत दु:खी और असहज हैं. देशभर में महागठबंधन की एकजुटता प्रदर्शित करने में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी विधायक कल्पना सोरेन का हमेशा भागीदार व प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
सवाल: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में झामुमो को सीट नहीं मिलने और झामुमो की नाराजगी पर क्या कहना है?
जवाब: झारखंड में महागठबंधन की सरकार में कांग्रेस और झामुमो मजबूत रिश्ते में है. बिहार के परिपेक्ष्य में झामुमो की नाराजगी जाहिर करना उचित है. बिहार में राजद महागठबंधन के सहयोगी दलों के साथ सीट समझौते पर निर्णय ले रही थी. कांग्रेस पिछले चुनाव की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पिछली बार 70 सीट की जगह इस बार 61 सीट पर उम्मीदवार हैं. उसमें भी 52 सीटों पर सीधे चुनावी मैदान में हैं जबकि नौ पर महागठबंधन के दल फ्रेंडली चुनाव लड़ रहे हैं. इस तरह 18 सीट कांग्रेस के कम हैं. कांग्रेस पार्टी सीटों को लेकर राजद के साथ खुद ही तालमेल बिठाने को लेकर नामांकन के अंतिम क्षण तक परेशान रही है. कांग्रेस अपने उम्मीद्वारों को टिकट सिंबल नामांकन के एक-दो दिन पहले तक दिया है. बिहार में महागठबंधन के साथ हिस्सेदारी की जबावदेही राजद के पास था.
सवाल: झारखंड में महागठबंधन कितना मजबूत है?
जवाब: झारखंड में महागठबंधन की सरकार काफी मजबूत स्थिति में है. नेतृत्वकर्ता हेमंत सोरेन टीम लीडर की तरह अपनी भूमिका निभा रहे हैं. चुनाव के समय भी झामुमो ने कांग्रेस, राजद, वामदल के साथ सीटों पर समझौता करने में दक्षता व दूरदर्शिता दिखाया था.
सवाल: क्या आप कांग्रेस पार्टी में अनुशासन की कमी मानते हैं?
जवाब: लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनुशासन चाबुक मारकर स्थापित नहीं किया जा सकता. कांग्रेस पार्टी के अंदर बयान-बाजी की आजादी है. लेकिन आखिर में हमारे केंद्रीय नेता के दिशा निर्देश और बयान का पालन सभी लोग करते हैं.
सवाल: कांग्रेस पार्टी में मुद्दों की राजनीति और लहर बनाने में सफलता के बावजूद टिकट बंटवारें में विवाद क्यों हो रहा है?
जवाब: कांग्रेस पार्टी ऐसे उम्मीद्वारों का चयन करती है, जो सर्वे रिपोर्ट के आधार पर सामने आते हैं. इसमें से कई उम्मीदवार संगठन और विचारधारा में शामिल नहीं रहे होते हैं, लेकिन उनका स्ट्राइक रेट जीतने का है. तो पार्टी ऐसे उम्मीदवारों पर भी दांव लगाती है. ऐसे में कुछ विवाद तो सामने आते ही हैं. जिसका पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति समय रहते समाधान करती है.
सवाल : झारखंड सरकार की किन उपलब्धियों को आप बताना चाहेंगे?
जवाब: मईयां सम्मान योजना, कृषि व स्वास्थ्य योजना समेत सभी मंत्रालयों की उपलब्धियां झारखंड के सालगिराह के अवसर पर सामने लाया जायेगा. लेकिन झारखंड राज्य में शांति, खुशहाली व सौहार्दपूर्ण वातारण का माहौल है. भाजपा शासित राज्यों की तरह अराजकता, अशांति और आपसी भेदभाव से जिस तरह जनता परेशान है, वह झारखंड में नहीं है.
सवाल : क्या डबल इंजन की सरकार विकास का पैमाना तय करती है?
जवाब: बिहार में पिछले 20 वर्षों से डबल इंजन की सरकार है. वहां पलायन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई और नये औद्योगिक इकाई की स्थापना नहीं हुई है. केंद्र की सरकार राज्यों को अनुदान देने में भेदभावपूर्ण रवैया अपना रहे हैं. केंद्र द्वारा विपक्षी दल शासित राज्यों की सरकार को सहयोग देना तो दूर की बात है, उल्टा उन्हें परेशान किया जाता है. यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.