CM सोरेन के लिए कानूनी मोर्चे पर मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही, ED समन अवहेलना मामले में राहत नहीं, 15 जनवरी तक टली सुनवाई

Jharkhand Desk: ये पूरा विवाद जमीन घोटाले की जांच के दौरान ईडी द्वारा जारी किए गए समन का पालन न करने से जुड़ा है. ईडी की शिकायत पर रांची के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) ने मामले का संज्ञान लिया था. इसी आदेश को रद्द कराने के लिए हेमंत सोरेन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है...
 

Jharkhand Desk: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए कानूनी मोर्चे पर मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समन की कथित अवहेलना से जुड़े मामले में गुरुवार को झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, लेकिन मुख्यमंत्री को किसी भी प्रकार की अंतरिम राहत नहीं मिली. जस्टिस अनिल कुमार चौधरी की अदालत में हुई इस सुनवाई में हेमंत सोरेन की ओर से रांची सिविल कोर्ट (एमपी/एमएलए कोर्ट) द्वारा लिए गए संज्ञान आदेश को चुनौती दी गई थी. मुख्यमंत्री पक्ष ने अदालत से कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज रिकॉर्ड पर लाने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया. हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई तक किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी जाएगी.

ये पूरा विवाद जमीन घोटाले की जांच के दौरान ईडी द्वारा जारी किए गए समन का पालन न करने से जुड़ा है. ईडी की शिकायत पर रांची के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) ने मामले का संज्ञान लिया था. इसी आदेश को रद्द कराने के लिए हेमंत सोरेन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उनके अधिवक्ताओं प्रदीप चंद्रा, दीपांकर रॉय और श्रेय मिश्रा ने दलील दी कि मामले की पूरी तस्वीर साफ करने के लिए कुछ और कागजात दाखिल करना जरूरी है.

15 जनवरी 2026 को होगी अगली महत्वपूर्ण सुनवाई

अदालत ने मुख्यमंत्री पक्ष के आग्रह को स्वीकार करते हुए मामले को 15 जनवरी 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया है. कोर्ट ने निर्देश दिया है कि अगली तारीख तक सभी आवश्यक दस्तावेज अनिवार्य रूप से पेश किए जाएं. तब तक निचली अदालत की कार्यवाही और संज्ञान आदेश प्रभावी रहेंगे, क्योंकि हाईकोर्ट ने फिलहाल अंतरिम रोक लगाने से परहेज किया है.

प्रवर्तन निदेशालय का आरोप है कि जांच के दौरान बार-बार समन भेजने के बावजूद हेमंत सोरेन उपस्थित नहीं हुए, जो कानून की अवहेलना है. अब सबकी नजरें जनवरी में होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, क्योंकि वही सुनवाई ये तय करेगी कि मुख्यमंत्री को इस आपराधिक शिकायत वाद से राहत मिलेगी या उन्हें निचली अदालत के ट्रायल का सामना करना होगा.