इस बार कई मायनों में अहम रहा झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र, सत्र के समापन पर CM हेमंत सोरेन समेत अन्य मंत्रियों ने दी अपनी प्रतिक्रिया
Jharkhand Desk: झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र कई मायनों में अहम रहा. 5 दिसंबर से 11 दिसंबर तक चले इस सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष कई मुद्दों पर आमने सामने होता दिखा. विपक्ष सरकार को छात्रों के लंबित छात्रवृत्ति, धान के एमएसपी दर घोषणा अनुरूप बढ़ाने, विधि व्यवस्था जैसे मुद्दों पर घेरने में जुटी रही. हालांकि सत्तारूढ़ दल के नेता सदन के अंदर बाहर जवाब देते दिखे.
शीतकालीन सत्र के समापन के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि विपक्ष अपनी भूमिका में व्यस्त है और सत्ता पक्ष अपने कामों को धरातल पर उतरने में पूरी तरह जुटा हुआ है. ऐसे में यह सत्र कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा है. इधर स्पीकर रबीन्द्रनाथ महतो ने बताया कि सत्र में कुल 301 प्रश्न स्वीकार हुए जिसमें 121 अल्पसूचित, 148 तारांकित और 32 अतारांकित थे इनमें से अधिकांश प्रश्नों के उत्तर विभागों से प्राप्त हो गए हैं.
इस शीत सत्र में 129 शून्यकाल और 42 ध्यानाकर्षण सूचनाएं आईं, जिनमें से 20 को स्वीकार किया गया साथ ही 39 गैर-सरकारी संकल्प भी सदन के समक्ष रखे गए, जो जन-अपेक्षाओं को लेकर सदस्यों की सक्रियता को दर्शाते हैं. अध्यक्ष ने कहा कि इस सत्र की प्रमुख उपलब्धियों में द्वितीय अनुपूरक बजट का अनुमोदन शामिल है, जिसमें महिला और बाल विकास विभाग को विशेष प्राथमिकता दी गई. उन्होंने सदन में कभी-कभार हुई तीखी नोकझोंक पर चिंता जताते हुए सभी सदस्यों से आने वाले सत्रों में और अधिक शालीन व सकारात्मक संवाद की अपील की.
राज्य सरकार एफआरजीएफ के तहत 16 हजार करोड़ का लेगी ऋण
शीतकालीन सत्र को लेकर वित्त सह संसदीय कार्य मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि यह संक्षिप्त सत्र था लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष के द्वारा इसके समय का सदुपयोग किया गया. जिसका मुझे काफी खुशी है विपक्ष कुछ मुद्दों पर जरूर अपनी भूमिका बनाई रखी लेकिन जो सदन की गरिमा होनी चाहिए वह बनी रही.
उन्होंने विपक्ष के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि राज्य के पास पैसे की कोई कमी नहीं है और राजस्व संग्रह और खर्च सभी सामान्य स्थिति में है. उन्होंने कहा कि जीडीपी हमारा ठीक है इसके तहत हम 3% तक ऋण ले सकते हैं जिसमें हम उससे कम है इसके तहत हमलोगों ने निर्णय लिया है कि .8% यानी 16000 करोड़ ऋण ले सकते हैं उसे हमलोग लेंगे.
बता दें कि एफआरजीएफ यानी Fiscal Responsibility and Growth Fund के तहत राज्यों द्वारा लिए जाने वाले ऋण की कोई निश्चित राशि नहीं होती, बल्कि यह FRP यानी Fiscal Responsibility and Budget Management नियमों के तहत राज्यों की सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के प्रतिशत के रूप में तय होती है. जिसे केंद्र सरकार निर्धारित करती है और यह हर साल बदल सकती है, लेकिन आमतौर पर यह GDP का 3% से 5% के बीच रहती है. जिसमें कुछ शर्तों के साथ अतिरिक्त उधार की अनुमति भी मिल सकती है और यह सीमा राज्यों के वित्तीय स्थिति पर निर्भर करती है.