झारखंड में मानसिक समस्या शिकार क्यों हो रहे बच्चे, क्या है इसके पीछे वजह इस रिपोर्ट में जानिए
Jharkhand Desk: दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या तेजी से बढ़ रही है. लगभग हर सात में से एक व्यक्ति इससे प्रभावित है. इस चुनौती से निपटने के लिए नए और प्रभावी इलाज की जरूरत है. बदलते सामाजिक परिवेश के कारण झारखंड सहित देशभर में मानसिक समस्या तेजी से बढ़ रही है, इसके जद में ना केवल बुजुर्ग बल्कि युवा के साथ-साथ किशोर भी इसके चपेट में आ रहे हैं. यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक हर 100 लोगों में 11 किसी ना किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में सबसे अधिक चिंता किशोर जो कल के भविष्य हैं उनमें बढ़ रही मानसिक समस्या ना केवल वर्तमान समय के लिए चिंता का सबब है, बल्कि भविष्य के लिए भी इस पर काबू पाना बड़ी चुनौती बनी हुई है.
यूनिसेफ के आंकड़ों
यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2015 में 13-17 साल के 7.3% किशोर मानसिक समस्या से ग्रसित थे. जो 2021 में 10-19 साल के किशोरों में कराए गए सर्वे में बढ़कर 14% हो गया है. मानसिक समस्या के कारण इन नौनिहालों में चिंता, आत्म सम्मान की कमी, डिजिटल लत, डिप्रेशन और फिर सुसाइड जैसी आत्मघाती कदम आज की तारीख में आम होती जा रही है. इससे बचाने के लिए झारखंड यूनिसेफ ने बड़ी पहल की है. इसके तहत शनिवार 11 अक्टूबर को रांची में स्वास्थ्य एवं शिक्षा विभाग के सहयोग से झारखंड यूनिसेफ ने एक कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन झारखंड के निदेशक शशि प्रकाश झा के अलावा कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ और यूनिसेफ के अधिकारियों ने विचार व्यक्त किए.
क्यों बढ़ रहे मानसिक समस्या
झारखंड में तेजी से बढ़ रहे मानसिक समस्या के मामले पर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है. झारखंड यूनिसेफ की प्रमुख कनीनिका मित्र कहती हैं कि सबसे बड़ी चिंता का कारण यह है कि यह आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं, जिसमें बच्चे भी शामिल हो रहे हैं. इसके कई कारण हैं और इसकी रोकथाम आवश्यक है. बच्चे शैक्षणिक तनाव, सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयों, हिंसा और स्कूलों एवं समुदायों में मनो-सामाजिक समर्थन की कमी जैसी बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
बच्चों को सहायता की जरूरत
कनीनिका कहती हैं मानसिक स्वास्थ्य के आसपास फैली व्यापक भ्रांतियां इन चुनौतियों को और गहरा कर देते हैं, जिससे बच्चे अक्सर अकेलापन और असहायता महसूस करते हैं. उन्होंने कहा कि 2015 में कराए गए मेंटल हेल्थ सर्वे में झारखंड में 11% लोग इसके शिकार पाए गए थे. सीआईपी रांची के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ निशांत गोयल कहते हैं कि यह बेहद ही चिंता का विषय है कि लोग किसी न किसी रूप में मानसिक समस्या से ग्रसित हो रहे हैं.
इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 2015 में जो नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे हुआ था उसमें देश भर में करीब 6 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक समस्या से ग्रसित पाए गए थे, जिन्हें इलाज की जरूरत थी. इन 06 करोड़ में करीब 35% लोग ऐसे थे जो 25 वर्ष से कम उम्र के थे. इसी तरह से बच्चों में भी सर्वे कराया गया था जिसमें 13% बच्चे मानसिक समस्या से ग्रसित पाए गए थे.
कोविड के बाद बढ़ी समस्या
डॉ निशांत गोयल कहते हैं कि कोविड के बाद यह समस्या और भी बढ़ी है. ऐसे में इन दोनों नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2.0 भारत सरकार के द्वारा चलाया जा रहा है. उसकी रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा कि वर्तमान स्थिति कैसी है. इस अवसर पर कार्यशाला को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन डायरेक्टर शशि प्रकाश झा ने कहा कि मैं माता-पिता से भी आग्रह करता हूं कि वह अपने बच्चों के साथ समय बिताए उनसे संवाद करें. उनके सपनों और उम्मीद के बारे में बात करें. क्योंकि ऐसे संवाद ही बच्चों में विश्वास, आत्मविश्वास और आजीवन मानसिक स्वास्थ्य की मजबूत नींव रखते हैं. उन्होंने बताया कि हमारे किशोर जीवन को हंसी सहजता और आत्मविश्वास के साथ जीना सीखना चाहिए. प्रत्येक युवा के भीतर असीम संभावनाओं की एक दुनिया छिपी होती है उन्हें किसी और से तुलना करने की आवश्यकता नहीं है.