हाईकोर्ट के आदेश के 11 महीने बाद भी नहीं मिला प्रमोशन, CISF अधिकारियों में आक्रोश
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के सैकड़ों अधिकारियों का प्रमोशन सालों से रुका हुआ है। 25-30 साल की उत्कृष्ट सेवा देने के बावजूद हज़ारों इंस्पेक्टर आज भी उसी रैंक पर हैं, जिस पर वे करियर की शुरुआत में थे। कई अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, बिना एक भी सम्मानजनक प्रमोशन पाए।
सब-इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर और फिर असिस्टेंट कमांडेंट (AC) बनने की राह CISF में न के बराबर दिखती है। वहीं BSF, CRPF, ITBP जैसे अन्य अर्धसैनिक बलों में चार-चार प्रमोशन मिल चुके हैं। इस भारी असंतुलन से हज़ारों अधिकारी हताश हैं। कई ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है।
एक दशक पुरानी लड़ाई, 11 महीने पुराना आदेश फिर भी कार्रवाई शून्य
हीरा सिंह जैसे अधिकारी, जिन्होंने 34 वर्षों तक "Meritorious Service" दी, बिना AC बने ही रिटायर हो गए। उन्होंने देरी से DPC (Departmental Promotion Committee) कराने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। एक अन्य केस में 540 इंस्पेक्टरों ने दावा किया कि वे 24 साल से AC की पोस्ट के लिए इंतजार कर रहे हैं। कुल संख्या करीब 2700 है, जो प्रमोशन की बाट जोह रहे हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल CISF को कैडर समीक्षा कर प्रमोशन देने का आदेश दिया था — वो भी चार महीने के भीतर। लेकिन 11 महीने बीत जाने के बाद भी कोई अमल नहीं हुआ। अब अवमानना याचिका दाखिल करने की तैयारी है।
गृह राज्य मंत्री ने दिया भरोसा, लेकिन हकीकत अलग
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में कहा था कि समय-समय पर कैडर रिव्यू होता है और प्रमोशन दिए जाते हैं। लेकिन वास्तविकता ये है कि पिछले 35 वर्षों में सिर्फ एक बार कैडर समीक्षा हुई भी 2018 में, संसद की स्थायी समिति के दबाव पर। उसमें भी कोई नया पद नहीं बनाया गया।
2018 में राज्यसभा में गृह मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि "इंस्पेक्टर 5 साल में AC बन जाता है।" जबकि उस वक्त 20 साल से अधिक का ठहराव (Stagnation) इंस्पेक्टर रैंक में चल रहा था। अधिकारी इसे 'जानबूझ कर दी गई भ्रामक जानकारी' बताते हैं, जिससे कमेटी को गुमराह किया गया।
न यूनियन, न आवाज़- मनोबल तोड़ने वाला सिस्टम
CISF अधिकारियों को यूनियन बनाने का अधिकार नहीं है, न ही वे एसोसिएशन बना सकते हैं। उनके हितों की रक्षा की जिम्मेदारी DG (महानिदेशक) और IG (महानिरीक्षक) पर होती है, लेकिन इस मोर्चे पर विभाग की चुप्पी अफसोसनाक रही है।
याचिकाकर्ता दिवाकर पांडे और अन्य ने कोर्ट में दलील दी कि सहायक कमांडेंट की पोस्ट ही इतनी कम है कि प्रमोशन 19–20 साल में हो रहा है, जबकि नियम 5 साल में प्रमोशन के लायक मानते हैं।
एक केस ने 69 अधिकारियों का भविष्य रोक दिया
18 अगस्त 2020 को UPSC ने AC भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी। 2021 में परिणाम आया, और 69 अभ्यर्थी चयनित हुए जिनमें से कई को CISF अलॉट किया गया। लेकिन 26 अप्रैल 2022 को दिवाकर पांडे केस के कारण हाईकोर्ट ने इस प्रक्रिया पर स्टे लगा दिया। अब भर्ती से लेकर LDCE के तहत चयनित अफसर, सभी फंसे हुए हैं। सीधा असर 69 भावी अधिकारियों पर पड़ा है जिन्हें अभी तक जॉइनिंग लेटर नहीं मिला।
क्या कोई सुनवाई होगी?
21 दिसंबर 2022 को इस पर अंतिम सुनवाई होनी थी, लेकिन CISF की ओर से कोई ठोस जवाब कोर्ट में पेश नहीं किया गया। आज भी सैकड़ों अधिकारी प्रमोशन की उम्मीद में अधर में हैं न रैंक बढ़ी, न मान-सम्मान।
इन हालात में सवाल यह है कि जब देश की सुरक्षा में समर्पित अधिकारी ही अपने अधिकारों से वंचित हों, तो क्या यह व्यवस्थागत विफलता नहीं?