Indigo का अहंकार की बन गया उसका काल, कर्मचारी की चिट्टी ने खोल दी सारी पोल: लिखा है, 'कोई नतीजा नहीं. कोई जवाबदेही नहीं. बस डर
New Delhi: इंडिगो के एक कर्मचारी का खुला पत्र सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. कर्मचारी ने पत्र लिखकर कंपनी के अंदर सालों से चल रही समस्याओं, कर्मचारियों के बढ़ते संकट और मैनेजमेंट की अनदेखी का खुलासा किया है. इसमें कर्मचारी ने बताया है कि कैसे भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो धीरे-धीरे अंदर से खोखली हो गई. यह सब रातों-रात नहीं हुआ. इसके बजाय यह सालों की चेतावनियों को नजरअंदाज करने, काम करने की खराब परिस्थितियों और डर के माहौल का नतीजा है.
पत्र लिखने वाले कर्मचारी ने बताया कि 2006 में जब इंडिगो शुरू हुई थी, तब टीम को अपने काम पर गर्व था. लेकिन, धीरे-धीरे यह गर्व अहंकार में बदल गया और विकास लालच में. कंपनी के अंदर एक नई सोच पनपने लगी- हम इतने बड़े हैं कि फेल नहीं हो सकते. पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि इंडिगो ने जानबूझकर कुछ रूट्स पर बहुत ज्यादा फ्लाइट्स चलाईं ताकि दूसरी एयरलाइंस, जैसे नई आई आकासा एयर को नुकसान हो. यात्री भले ही इंडिगो की समय की पाबंदी और बाजार में दबदबे से खुश थे. लेकिन, कर्मचारी का कहना है कि यह सब स्टाफ की भलाई और ऑपरेशनल व्यवस्था की कीमत पर हुआ.
पत्र का एक बड़ा हिस्सा कंपनी में बढ़ते हुए ऊंचे पदों के बारे में है. कर्मचारी का दावा है कि ऐसे लोग भी वाइस प्रेसिडेंट बन गए जो ठीक से ईमेल भी नहीं लिख पाते थे. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इन पदों से ESOPs (कर्मचारियों को शेयर देने की योजना) और पावर मिलती थी. पत्र के अनुसार, कर्मचारियों को इन बढ़ते हुए लीडरशिप लेयर्स को सही ठहराने के लिए 'निचोड़ा' गया. इनमें पायलट, इंजीनियर और ग्राउंड स्टाफ शामिल थे. जो पायलट ड्यूटी के समय थकान और ऑपरेशनल दबाव के बारे में चिंता जताते थे, उन्हें डांटा जाता था. धमकाया जाता था या अपमानित किया जाता था. यह सब कभी-कभी हेड ऑफिस के सीनियर मैनेजमेंट की ओर से किया जाता था. पत्र में लिखा है, 'कोई नतीजा नहीं. कोई जवाबदेही नहीं. बस डर
पत्र में बताया गया है कि कर्मचारी भावनात्मक और शारीरिक रूप से थक चुके हैं. केबिन क्रू यात्रियों का स्वागत करने के बीच गैली (रसोई) में रोते थे. इंजीनियरों को बिना किसी खास देखरेख या आराम के एक साथ कई विमानों पर काम करना पड़ता था. यहां तक कि यात्रियों से बात करने का तरीका भी बदल गया था. कर्मचारियों को यात्रियों को 'कस्टमर' कहने का निर्देश दिया गया था. इसका कारण यह था: 'अगर आप उन्हें यात्री कहेंगे तो वे सोचेंगे कि वे एयरलाइन के मालिक हैं.' कर्मचारी का तर्क है कि यह सोच बदलने से उन लोगों से एक तरह का अलगाव पैदा हुआ जो वास्तव में अपनी जान इंडिगो को सौंपते हैं.
कर्मचारियों की बेबसी का खुलासा
पत्र में भारत के एविएशन रेगुलेटर की भी कड़ी आलोचना की गई है. लेखक के अनुसार, जो पायलट विदेश जाना चाहते थे, उनके लाइसेंस के सत्यापन में जानबूझकर देरी की गई. ऐसी फुसफुसाहटें थीं कि 'अनौपचारिक कीमतों' पर काम जल्दी हो सकता है. जब थकान के नियम ऐसे बदले कि शेड्यूल और खराब हो गए तो कर्मचारियों के पास कोई यूनियन, कोई प्रतिनिधित्व या कोई ऐसा मजबूत वॉचडॉग नहीं था जो हस्तक्षेप कर सके.
एयरलाइन का भारी विस्तार, रिकॉर्ड मुनाफा और इंडस्ट्री में दबदबा, उस कर्मचारी वर्ग के बिल्कुल विपरीत है जिसे लेखक ने 'हद तक धकेल दिया गया' बताया है. पत्र लिखने वाले कर्मचारी का का तर्क है कि आज उपभोक्ताओं को जो संकट दिख रहा है - उड़ानों में रुकावट, देरी और कर्मचारियों की कमी - वह सालों के सिस्टमैटिक तनाव का 'अंतिम परिणाम' है.
पत्र में अंत में लिखा है, 'हम सालों से टूटे हुए हैं। हमने सिस्टम को टूटते हुए देखा, जबकि लीडरशिप यूरोप में उड़ रही थी और हम एक घंटे के अतिरिक्त आराम के लिए प्रार्थना कर रहे थे.' हालांकि, इंडिगो ने अभी तक इस वायरल पत्र पर कोई बयान जारी नहीं किया है, लेकिन इस पोस्ट ने एविएशन इंडस्ट्री और यात्रियों के बीच चर्चाओं का एक नया दौर शुरू कर दिया है. कई यात्रियों का कहना है कि उनके हाल के यात्रा अनुभव भी पत्र में बताई गई निराशाओं से मेल खाते हैं.