Unnao Rape Case में Supreme Court का बड़ा फैसला, 'इस अपराधी को किसी केस में जमानत न मिले', कुलदीप सेंगर पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा...

Unnao Rape case: CJI ने पूछा कि क्या CBI का मामला यह था कि पीड़ित नाबालिग होता है, तो सरकारी कर्मचारी होने की अवधारणा अमान्य हो जाती है. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि बच्चे पर पेनिट्रेटिव यौन हमला अपने आप में POCSO के तहत एक अपराध है. और यह गंभीरता परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे कि ताकत का दुरुपयोग...
 

Unnao Rape case: सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप केस के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर की सजा निलंबित करने पर रोक लगा दी है. हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने रेप केस के मामले में उसकी सजा निलंबित कर दी थी और जमानत भी दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने सेंगर के वकील को नोटिस भी जारी किया है और दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. 

एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ CBI और अन्य वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सोमवार, 29 दिसंबर को CJI सूर्य कांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा,

आमतौर पर, जब किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट के आदेश के तहत जमानत पर रिहा किया जाता है, तो ऐसे व्यक्ति को सुने बिना अदालत के आदेश पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए. लेकिन प्रतिवादी (कुलदीप सेंगर) को IPC की धारा 304 भाग 2 के तहत एक अन्य मामले में दोषी ठहराया गया है और सजा सुनाई गई है. वह उस मामले में हिरासत में है. हम विशेष तथ्यों को देखते हुए विवादित आदेश पर रोक लगाते हैं. प्रतिवादी को विवादित आदेश के तहत हिरासत से रिहा नहीं किया जाएगा. पीड़िता को अलग से SLP (Special Leave Petition) दायर करने का कानूनी अधिकार है. उसे इस अदालत से अनुमति की आवश्यकता नहीं है. यदि उसे मुफ्त कानूनी सहायता की आवश्यकता है, तो SC कानूनी सेवा समिति यह देगी. वह अपने वकील के माध्यम से भी अपनी अपील दायर कर सकती है.

मामले पर अब अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की शुरुआत में ही यह साफ कहा कि हम फिलहाल हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के पक्ष में हैं और बहस सिर्फ स्टे के मुद्दे पर ही होगी. कोर्ट ने कहा कि सेंगर दूसरे मामले में जेल में बंद है, स्थिति अजीब है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आज इस मामले पर अंतिम फैसला नहीं कर रहे हैं. कुलदीप सेंगर के वकील ने हस्तक्षेप की अनुमति देने की अपील की. इस पर कोर्ट ने नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कहा कि सेंगर को रिहा नहीं किया जाएगा.

इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान CBI की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा,

हाई कोर्ट ने यह मानने में गलती की कि POCSO एक्ट के गंभीर अपराध के प्रावधान लागू नहीं होते, क्योंकि सेंगर को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता. POCSO एक्ट यौन अपराध और गंभीर यौन अपराध के मामलों के लिए है. यह गंभीरता तब होती है, जब अपराधी पीड़ित नाबालिग पर हावी होता है. सरकारी कर्मचारी शब्द POCSO एक्ट में परिभाषित नहीं है और इसलिए इसे संदर्भ के अनुसार समझा जाना चाहिए. POCSO के तहत एक सरकारी कर्मचारी का मतलब वह व्यक्ति होगा, जो बच्चे के संबंध में एक प्रभावशाली स्थिति में है. और उस स्थिति पर गंभीर अपराध के प्रावधान लागू होंगे. सेंगर उस समय इलाके में एक शक्तिशाली विधायक होने के नाते, स्पष्ट रूप से ऐसा दबदबा रखते थे.

CJI ने पूछा कि क्या CBI का मामला यह था कि पीड़ित नाबालिग होता है, तो सरकारी कर्मचारी होने की अवधारणा अमान्य हो जाती है. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि बच्चे पर पेनिट्रेटिव यौन हमला अपने आप में POCSO के तहत एक अपराध है. और यह गंभीरता परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे कि ताकत का दुरुपयोग. सेंगर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे और एन हरिहरन ने CBI के तर्कों का विरोध किया. उन्होंने तर्क दिया कि POCSO के तहत गंभीर अपराधों के लिए एक विधायक को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि एक कानून दूसरे कानून से परिभाषाएं तब तक नहीं ले सकता, जब तक कि कानून में स्पष्ट रूप से इसके लिए प्रावधान न हो. और IPC में सरकारी कर्मचारियों की अपनी परिभाषा है.

https://newshaat.com/national-news/on-what-basis-did-kuldeep-singh-sengar-get-bail-on-what/cid17999856.htm

हालांकि, CJI ने सरकारी कर्मचारी की परिभाषा से सांसदों/विधायकों को बाहर रखने पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि अगर इस तर्क को मान लिया जाता है, तो एक कांस्टेबल या पटवारी सरकारी कर्मचारी होगा, लेकिन विधायक/सांसद नहीं होंगे और उन्हें छूट मिल जाएगी. बेंच ने कहा कि "सरकारी कर्मचारी" की परिभाषा और POCSO फ्रेमवर्क के तहत संबंधित कानूनी मुद्दे पर फैसला करने की जरूरत है. इसके बाद कोर्ट ने CBI की याचिका पर कुलदीप सेंगर के वकील को नोटिस जारी किया और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया. और दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी.