एडवेंचर टूरिज्म के लिए देश में एकरूप सुरक्षा मानक तय, केंद्र सरकार ने जारी की नई मॉडल गाइडलाइन
देशभर में रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग और तैराकी जैसी साहसिक गतिविधियों के दौरान कई बार दुर्घटनाएं सामने आती रही हैं। इन खतरों को कम करने और पर्यटकों की जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने पूरे देश में साहसिक पर्यटन के लिए एक मॉडल सुरक्षा दिशानिर्देश (Model Safety Guidelines) तैयार किए हैं।
केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से आग्रह किया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में चल रही सभी साहसिक गतिविधियों पर कड़ी नजर रखें ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके। ये दिशानिर्देश "नेशनल एडवेंचर टूरिज्म सेफ्टी मैनेजमेंट फ्रेमवर्क" के अंतर्गत तैयार किए गए हैं, जो 15 भूमि आधारित, 7 जल आधारित और 7 वायु आधारित साहसिक गतिविधियों को कवर करते हैं।
पर्यटन मंत्रालय द्वारा इन दिशानिर्देशों को एडवेंचर टूर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सहयोग से तैयार किया गया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्यसभा में बताया कि इस कदम का उद्देश्य भारत में साहसिक पर्यटन के क्षेत्र में सुरक्षा के लिए एक समन्वित और मानकीकृत ढांचा बनाना है।
शेखावत ने बताया कि इन मॉडल गाइडलाइनों को सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को भेज दिया गया है। उनसे अनुरोध किया गया है कि वे सुरक्षा नियमों और लाइसेंसिंग मानकों को सभी ऑपरेटरों द्वारा सख्ती से लागू कराएं।
सुरक्षा से जुड़े इन दिशा-निर्देशों का प्रमुख उद्देश्य है:
- साहसिक गतिविधियों में जोखिम को न्यूनतम करना
- सेवा प्रदाताओं को सुरक्षा उपायों का मार्गदर्शन देना
- ऑपरेटरों को कौशल विकास के लिए प्रेरित करना
- अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों को अपनाना
- एक मजबूत आंतरिक व बाह्य ऑडिट प्रणाली लागू करना
इसके साथ ही मंत्री ने यह भी कहा कि साहसिक पर्यटन सहित देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों के विकास का दायित्व संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों का होता है। हालांकि, केंद्र सरकार अपनी योजनाओं जैसे 'स्वदेश दर्शन', 'PRASHAD योजना' और केंद्रीय एजेंसियों को पर्यटन अवसंरचना हेतु सहायता के तहत राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को वित्तीय सहयोग देती है।
परियोजनाओं की मंजूरी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय एजेंसियों के साथ विचार-विमर्श के बाद दी जाती है। इसके लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
मंत्री ने यह भी बताया कि इन परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी के लिए नियमित अंतराल पर केंद्रीय मंजूरी एवं निगरानी समिति तथा मिशन निदेशालय की बैठकों का आयोजन किया जाता है, ताकि कार्यों में तेजी लाई जा सके और राज्यों को मार्गदर्शन दिया जा सके।