यूपी बीजेपी अध्यक्ष चयन: दिल्ली के फैसले से बदले सियासी समीकरण, संगठन–सरकार के बीच दिखी खींचतान
National News: भारतीय जनता पार्टी में आम तौर पर संगठनात्मक फैसले बिना ज्यादा शोर-शराबे के तय हो जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष के चयन ने इस बार पार्टी के भीतर असाधारण हलचल पैदा कर दी है। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, अध्यक्ष पद को लेकर चली लंबी खींचतान ने साफ कर दिया कि यह फैसला आसान नहीं था और इसमें केंद्रीय नेतृत्व की सीधी दखल रही।
सूत्र बताते हैं कि इस मुद्दे पर बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से तीन बार आमने-सामने की बातचीत करनी पड़ी। केंद्रीय नेतृत्व और प्रदेश नेतृत्व के बीच सहमति बनाने के लिए लंबी बैठकों का दौर चला। इन बैठकों ने यह संकेत दिया कि प्रदेश अध्यक्ष का चयन केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं था, बल्कि इसके पीछे गंभीर रणनीतिक सोच काम कर रही थी।
पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, यूपी बीजेपी अध्यक्ष का अंतिम फैसला दिल्ली में लिया गया और नाम भी वहीं से तय हुआ। हालांकि मुख्यमंत्री की राय को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया गया, लेकिन उनकी पसंद को प्राथमिकता नहीं मिली। इतना जरूर ध्यान रखा गया कि जिस नाम पर मुख्यमंत्री किसी भी हालत में सहमत नहीं थे, उसे सूची से बाहर रखा गया। इसके बावजूद अंतिम मुहर पूरी तरह हाईकमान की ही रही।
बताया जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को साफ संदेश दिया है कि सरकार चलाना मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है, जबकि संगठन पर नियंत्रण पार्टी नेतृत्व के हाथ में रहेगा। सूत्र यह भी कहते हैं कि 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए दिल्ली यह स्पष्ट करना चाहती है कि प्रदेश संगठन की दिशा और रणनीति केंद्र से ही तय होगी, ठीक उसी तरह जैसे 2017 में मुख्यमंत्री पद का फैसला दिल्ली में हुआ था।
बीजेपी के अंदरूनी हलकों में इस घटनाक्रम को संगठन और सरकार के बीच शक्ति संतुलन के नए संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। लंबे समय तक चली चुप्पी के बाद केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उत्तर प्रदेश को लेकर यह रुख अपनाना कई राजनीतिक संदेश देता है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी में नेतृत्व और प्रभाव की लड़ाई कभी सार्वजनिक मंचों पर नहीं आती, बल्कि बंद कमरों में रणनीति और फैसलों के जरिए तय होती है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में ऐसी स्थितियां पहले भी देखी जा चुकी हैं, जिनके असर दूरगामी रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, 2027 का विधानसभा चुनाव केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका प्रभाव पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति और भविष्य की दिशा तय करने में भी अहम भूमिका निभाएगा। ऐसे में आने वाले समय में दिल्ली और लखनऊ के बीच राजनीतिक तालमेल और संतुलन पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।