छठ में आओगे क्या?” — मां, मोहब्बत और मातृभूमि का उत्सव...BHU छात्र की अनकही मोहब्बत के बीच आत्म-खोज की कहानी  

Chhath Puja Special 2025: डॉ. डुमरेन्द्र राजन एक संवेदनशील कवि, दार्शनिक और शिक्षक हैं. उन्होंने दर्शनशास्त्र की पढ़ाई पटनाकॉलेजऔर बनारसहिंदूविश्वविद्यालय(BHU)से की है तथा पटनाविश्वविद्यालयसे पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है. वर्तमान में वे कोल्हनविश्वविद्यालयमें सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं, जहां वे झारखंडलोकसेवाआयोग(JPSC)के माध्यम से चयनित हुए हैं.
 

Chhath Puja Special 2025: भारत की सांस्कृतिक और भावनात्मक गहराइयों को स्पर्श करती हुई डॉ. डुमरेन्द्र राजन की नई पुस्तक छठ में आओगे क्या?  मांमोहब्बत और मातृभूमि का अंतर्द्वंद्व एक संवेदनशील उपन्यास है, जो प्रेम, कर्तव्य और संस्कृति के संगम पर खड़ा है. यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक अनुभव है—जो बनारस के घाटों से लेकर बिहार की मिट्टी और पूर्वांचल की आत्मा तक फैला हुआ है.

उपन्यास की कथा एक शोध छात्र के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के हॉस्टल में रहता है. उसकी जिंदगी में प्रेम का अंकुर तब फूटता है जब गंगा के घाटों और बनारस की गलियों में जीवन की सरलता, संगीत और अध्यात्म एक साथ बहते हैं. लेकिन इस प्रेम कहानी के पीछे छिपी है एक गहरी परत—कर्तव्य और राष्ट्रभक्ति की.

कहानी धीरे-धीरे बिहार और पूर्वांचल के सबसे बड़े लोकपर्व छठ पूजा की ओर बढ़ती है, जो न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि मां के स्नेह, प्रतीक्षा और त्याग का प्रतीक भी है। डॉ. राजन ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में दिखाया है कि कैसे छठ हर मां के लिए अपने बेटे के लौटने की उम्मीद बन जाती है, कैसे खरना की खीर, लोकगीतों की मिठास और अस्त होते सूर्य की आराधना में मातृत्व, प्रेम और श्रद्धा एकाकार हो जाते हैं.

लेकिन कथा यहां ठहरती नहीं — शोध छात्र का एक दूसरा चेहरा भी है. वह भारत की एक खुफिया एजेंसी के लिए काम करता है, और उसे पूर्वोत्तर भारत में एक मिशन पर भेजा जाता है. यहां से कहानी एक नए मोड़ पर पहुंचती है — प्रेम और कर्तव्य, आस्था और राष्ट्र के बीच संघर्ष का। लेखक ने बड़ी संवेदनशीलता से दिखाया है कि कैसे नायक अपने प्रेम, अपनी संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा देता है.

इस उपन्यास की भाषा अत्यंत काव्यात्मक है. डॉ. राजन ने बनारस की घाटों की आत्मा, बिहार की मिट्टी की महक और पूर्वोत्तर की प्रकृति का सौंदर्य अपने शब्दों में इस तरह पिरोया है कि पाठक कहानी का हिस्सा बन जाता है. यह उपन्यास सिर्फ पढ़ा नहीं जाता, जिया जाता है.

लेखक परिचय:
डॉ. डुमरेन्द्र राजन एक संवेदनशील कवि, दार्शनिक और शिक्षक हैं. उन्होंने दर्शनशास्त्र की पढ़ाई पटना कॉलेज और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से की है तथा पटना विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है. वर्तमान में वे कोल्हन विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं, जहां वे झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) के माध्यम से चयनित हुए हैं.

सामाजिक कार्यों में सक्रिय डॉ. राजन कविता, चिंतन और मार्गदर्शन को जीवन का आधार मानते हैं. वे UGC-NET अभ्यर्थियों को दिशा प्रदान करते हैं और युवाओं में संवेदनशीलता तथा सांस्कृतिक चेतना जगाने का कार्य करते हैं.

उनकी लेखनी में दर्शन की गहराई और कविता की मिठास का अनूठा संगम देखने को मिलता है. छठ में आओगे क्या?” उनकी लेखनी की परिपक्वता और भारतीय जीवन के प्रति उनके गहन प्रेम का जीवंत प्रमाण है — एक ऐसी कहानी जो हर उस व्यक्ति के दिल को छू जाएगी, जिसने कभी मां की आंखों में इंतजार देखा है या मातृभूमि की मिट्टी को महसूस किया है.