Bihar Politics: चुनावी हार के बाद आरजेडी में भूचाल, बगावती नेताओं की सूची तैयार—कड़ी कार्रवाई के संकेत
Bihar political News: बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद आरजेडी अब गहरे संगठनात्मक बदलाव के मोड में आ गई है। पार्टी के भीतर असंतोष, नाराजगी और जवाबदेही की मांग अब खुले मंच पर सामने आ रही है। सोमवार को पटना प्रमंडल की समीक्षा बैठक में उम्मीदवारों और पदाधिकारियों ने उन नेताओं की पूरी सूची प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल को सौंप दी, जिन्होंने चुनाव के दौरान पार्टी को नुकसान पहुंचाया। शीर्ष नेतृत्व—लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के संकेत पर इन बागियों पर कड़ी कार्रवाई लगभग तय मानी जा रही है।
तेजस्वी से नाराजगी: “दरवाज़ा और दिल संगठन के लिए खोलें”
बैठक के अंतिम दिन जिला अध्यक्षों, प्रधान महासचिवों, पूर्व विधायकों व पूर्व सांसदों ने बेझिझक अपनी बातें रखीं। कई नेताओं ने शिकायत की कि चुनाव से पहले और बाद में शीर्ष नेतृत्व तक अपनी बात पहुंचाना लगभग नामुमकिन था। कार्यकर्ताओं का साफ कहना था कि तेजस्वी यादव को जमीनी कार्यकर्ताओं से संवाद बढ़ाना होगा, तभी पार्टी फिर से मजबूत हो पाएगी।
A-to-Z फार्मूला और जातीय राजनीति पर उठे सवाल
मीटिंग में तेजस्वी यादव की A-to-Z राजनीति पर भी सवाल खड़े हुए।
नेताओं का कहना था कि:
• 90 फ़ीसदी बहुसंख्यक सामाजिक आधार को साधे बिना पार्टी आगे नहीं बढ़ सकती।
• अतिपिछड़ों और अल्पसंख्यकों की समस्याओं में खुद शामिल होना होगा।
• चुनाव प्रचार में जातीय हिंसा भड़काने वाले गानों का इस्तेमाल पार्टी की छवि को भारी नुकसान पहुंचा गया।
गरीब कार्यकर्ताओं की आवाज: “अगर पार्टी गरीब का है, तो उसे टिकट भी दे”
कई कार्यकर्ताओं ने यह सवाल प्रमुखता से उठाया कि गरीब, ईमानदार और जमीनी कार्यकर्ता चुनाव कैसे लड़ें? उन्होंने सुझाव दिया कि पार्टी कम-से-कम दस आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवारों को अपने संसाधनों से चुनाव लड़वाए, वरना “गरीबों की पार्टी” का दावा खोखला साबित होगा।
पटना में संगठन कमजोर, बाहरी प्रभाव पर आपत्ति
हार के मुख्य कारणों में पटना में संगठनात्मक कमजोरी भी बताई गई। नेताओं ने कहा कि जहां राजनीतिक लड़ाई सबसे तीखी होती है, वहीं संगठन को मजबूत करने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की गई। समीक्षा बैठक में हरियाणा से जुड़े चेहरों की अचानक बढ़ी सक्रियता पर भी नाराजगी जताई गई, जिसे कार्यकर्ताओं ने “बाहरी दखल” बताया।
अब कार्रवाई तय—अनुशासन या संगठन संकट?
कुल मिलाकर, आरजेडी की यह समीक्षा बैठक एक सामान्य औपचारिकता नहीं, बल्कि सख्त कार्रवाई की दिशा में बढ़ते कदम का संकेत है। पार्टी के भीतर अब यह साफ संदेश दिया गया है- जो अनुशासन में नहीं, वह संगठन में नहीं।
आरजेडी के लिए यह समय सिर्फ आत्ममंथन का नहीं, बल्कि अस्तित्व बचाने का दौर बन चुका है।