हाजीपुर लोकसभा: चाचा से चिराग ने जीता हाजीपुर अब बचाने की चुनौती, शिवचन्द्र से है टक्कर, समझिए समीकरण  

 

बिहार का हाजीपुर लोकसभा सीट पर 20 मई को मतदान होना है। यह सीट पिछले कई सालों से चर्चा में बना हुआ है। वजह है यहाँ से लंबे समय तक सांसद रहे दिवंगत नेता रामविलास पासवान। क्योंकि रामविलास पासवान के निधन के बाद यहाँ पहली बार चुनाव हो रहा है। रामविलास पासवान ने अपने जीते जी यह सीट विरासत के रूप में अपने छोटे भाई पशुपति पारस को दी थी। लेकिन उनके निधन के बाद इस सीट को लेकर रामविलास पासवान के भाई और बेटे के बीच ही तलवार खिंच गई। हालांकि विरासत की लड़ाई तो चाचा से चिराग पासवान ने जीत ली। अब चिराग के सामने उस विरासत को बचाए रखने की चुनौती है। क्योंकि इस बार वो हाजीपुर से एनडीए के उम्मीदवार हैं। वहीं उनके सामने राजद की तरफ से शिवचंद्र राम मैदान में हैं। 

रामविलास ने पारस को सौंपी हाजीपुर की विरासत 

हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से सबसे लंबे समय तक रामविलास पासवान सांसद चुने गए। हालांकि इमरजेंसी से पहले तक यहाँ कांग्रेस का दबदबा रहा। लेकिन इमाजेंसी के बाद यहाँ का पूरा सियासी गणित ही बदल गया। 1977 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान ने पहली बार यहाँ से जीत हासिल की। उनकी ये जीत ऐतिहासिक बन गई क्योंकि उस समय रामविलास पासवान को 89.3% वोट मिले थे जो लंबे समय तक एक रिकॉर्ड रहा। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उठी सहानुभूति की लहर में 1984 में कांग्रेस की वापसी हुई। लेकिन फिर कांग्रेस यहाँ कभी भी जीत नहीं पाई। 1984 और 2009 में सिर्फ दो बार ही रामविलास पासवान यहाँ चुनाव हारे। 2009 में उन्हें जदयू के राम सुंदर दास ने हराया जो बिहार के मुख्यमंत्री रहे चुके थे। 2019 में रामविलास पासवान ने अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस के लिए सीट खाली कर दी। पशुपति कुमार पारस ने चुनाव जीता भी।

विरासत की लड़ाई में चिराग ने दी चाचा को पटखनी  

रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत के लिए लड़ाई छिड़ गई। उनके भाई पशुपति पारस और बेटे चिराग पासवान एक दुसरे के खिलाफ पारिवारिक से लेकर राजनीतिक लड़ाई जग जाहिर है। इसका असर है कि रामविलास पासवान की लोजपा में टूट हो गई। पारस और चिराग ने अपनी अलग-अलग पार्टी बना ली। अब हाजीपुर को लेकर चिराग भी दावा ठोकते है कि ये उनकी पिता की विरासत है इसलिए ये सीट उनके पास होनी चाहिए। वही पशुपति पारस दोबारा से इस सीट पर अपना कब्जा चाहते थे। उनका तर्क है कि उन्हें खुद ये सीट रामविलास पासवान ने सौंपी है इसलिए ये उनकी है। दोनों ही एनडीए का हिस्सा होते हुए भी दावा बंद नहीं किया। जब एनडीए में सीट शेयरिंग हुई तो चिराग ने चाचा पारस को पटखनी दे दी। हाजीपुर के साथ और 4 सीटें चिराग की पार्टी के खाते में आई। जबकि पारस के हाथ एक भी सीट नहीं लगी।

2024 की लड़ाई चिराग पासवान और शिवचन्द्र राम के बीच 

इस बार हाजीपुर के चुनाव में एकतरफ चिराग पासवान है तो दूसरी तरफ राजद के शिवचन्द्र राम हैं। 2019 में भी राजद ने शिवचंद्र राम को ही उम्मीदवार बनाया था। जो पशुपति पारस से करीब 2 लाख वोटों के अंतर से हार गए थे। एक बार फिर राजद ने उनपर भरोसा जताया है। अब ये बड़ा प्रश्न है कि जो शिवचंद्र राम पारस, पशुपति पारस को नहीं हरा सके वो चिराग को कितनी चुनौती देंगे। इधर चिराग रिकॉर्ड मतों से जीतने का दावा भी कर रहे हैं। 

 हाजीपुर का जातीय समीकरण 

जानकारों की माने तो पासवान से जब भी सवर्ण मतदाता विमुख हुए, उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। सामाजिक समीकरण के लिहाज से पासवानों की आबादी रविदास जाति से कुछ अधिक है. महागठबंधन के राजद उम्मीदवार शिवचंद्र राम को माय समीकरण और अतिपिछड़ों के अलावा अपने स्वजातीय मतदाताओं पर भरोसा है। राजद ने आसपास की सीटों पर एनडीए की ऐसी घेराबंदी की है, जिसका राजनीतिक लाभ हाजीपुर में भी दिख सकता है। चिराग पासवान के साथ एनडीए की ताकत और जनाधार है। जदयू के साथ होने से पिछड़ा वोट में भी चिराग के समर्थक बड़ी संख्या में सेंधमारी का दावा करते हैं। मसलन इस इलाके में कुर्मी मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं। इनके अलावे सहनी-मल्लाह मतदाता भी यहाँ काफी निर्णायक भूमिका में हैं और मुकेश सहनी की पार्टी का राजद के साथ होना शिवचन्द्र राम को फायदा दिला सकता है।

विधानसभा में 4-2  से I.N.D.I.A गठबंधन लीड पर 

अब आपको बताते हैं हाजीपुर के लोकसभा क्षेत्र के अंर्तगत आने वाले 6 विधानसभा सीट के बारे में। जिसमें 3 पर राजद, 2 पर भाजपा और 1 पर कांग्रेस का कब्ज़ा है। यानि विधानसभा में यहाँ I.N.D.I.A गठबंधन  ज्यादा मजबूत है।