बिहार में वोटर लिस्ट सुधार बना सियासी और संवैधानिक घमासान का कारण, सुप्रीम कोर्ट और संसद में छिड़ी बहस

 

बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर राजनीतिक गलियारों में बवाल मचा हुआ है। चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची को अद्यतन और शुद्ध करने के उद्देश्य से शुरू की गई यह प्रक्रिया अब संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक विवाद का विषय बन गई है। विपक्ष का आरोप है कि इसके माध्यम से मतदाताओं को जानबूझकर सूची से हटाया जा रहा है, जबकि चुनाव आयोग इस कदम को निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने की दिशा में जरूरी बता रहा है।

कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में हेरफेर कर लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। इस मुद्दे पर विपक्ष सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है, जहां इस प्रक्रिया की वैधता को चुनौती दी गई है।

संसद में बाधित कार्यवाही, चर्चा की मांग
मानसून सत्र के दौरान SIR पर बहस की मांग को लेकर विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा है। हालांकि, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया है कि पहले "ऑपरेशन सिंदूर" पर चर्चा की जाएगी, जिसके बाद ही एसआईआर से संबंधित विषय को उठाया जाएगा। इस निर्णय पर विपक्ष ने नाराज़गी जताई है।

SIR: क्या है यह प्रक्रिया?
24 जून को भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की शुरुआत की। इसमें बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर मतदाता जानकारी की पुष्टि कर रहे हैं। आयोग का दावा है कि शहरीकरण, युवाओं के नामांकन और प्रवास को ध्यान में रखते हुए यह कदम जरूरी था, क्योंकि पिछले दो दशकों से ऐसी कोई व्यापक प्रक्रिया नहीं हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई
गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में SIR प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, जिससे लाखों लोगों का मताधिकार खतरे में है। याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के उल्लंघन का भी हवाला दिया गया है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि मतदाता सत्यापन के लिए आधार और राशन कार्ड को मान्यता क्यों नहीं दी गई।

डेटा पर विवाद: क्या वाकई 92% मतदाता शामिल हुए?
चुनाव आयोग का दावा है कि बिहार के 7.89 करोड़ में से 7.24 करोड़ मतदाताओं ने इस प्रक्रिया में हिस्सा लिया है, जो लगभग 92% भागीदारी दर्शाता है। लेकिन विपक्ष और कई रिपोर्ट्स इस आंकड़े को संदेहास्पद बता रही हैं। उनका आरोप है कि BLO ने मतदाताओं की जानकारी के बिना ही फार्म अपलोड किए और कई मृत लोगों के नाम पर भी फार्म भरे गए।

35 लाख मतदाता लापता: चुनाव आयोग का खुलासा
27 जुलाई को जारी प्रेस नोट में आयोग ने बताया कि करीब 35 लाख मतदाता लापता पाए गए हैं—इनमें से कुछ अन्य राज्यों में चले गए, कुछ की मृत्यु हो चुकी है, जबकि कुछ ने फॉर्म नहीं भरे या रजिस्ट्रेशन से इनकार किया। आयोग ने स्पष्ट किया कि 1 अगस्त से पहले किसी नाम को हटाने से पहले उनकी स्थिति की पुष्टि की जाएगी।

1 अगस्त से दावे-आपत्तियों की प्रक्रिया शुरू
चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि 1 अगस्त से मसौदा सूची प्रकाशित की जाएगी और 1 सितंबर तक मतदाता या राजनीतिक दल दावे और आपत्तियां दर्ज कर सकेंगे। इस दौरान बिना 'स्पीकिंग ऑर्डर' और उचित सूचना के कोई नाम हटाया नहीं जाएगा। जरूरत पड़ने पर जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पास अपील की जा सकती है।

चुनाव आयोग ने कोर्ट में दायर हलफनामे में बताया कि सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से परामर्श किया गया और 1.5 लाख से अधिक बूथ एजेंटों को तैनात किया गया था। लेकिन ADR और अन्य संगठनों ने दावा किया कि किसी भी दल ने इस तरह के पूर्ण बदलाव की मांग नहीं की थी।

बिहार से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा विवाद
चुनाव आयोग का इरादा है कि यह SIR प्रक्रिया भविष्य में पूरे देश में लागू की जाएगी। देशभर में करीब 97 करोड़ मतदाता हैं, इसलिए कोई भी प्रणालीगत गलती बड़े स्तर पर मताधिकार को प्रभावित कर सकती है। बिहार के अनुभव ने यह संकेत दिए हैं कि अन्य राज्यों में भी इसी तरह के प्रवास और शहरीकरण के कारण ऐसी समस्याएं उभर सकती हैं।

न्यायिक प्रक्रिया और पारदर्शिता पर सवाल
आलोचक मानते हैं कि SIR की प्रक्रिया न्यायसंगत तरीके से नहीं चलाई जा रही है। उनका आरोप है कि कई स्थानों पर BLO ने फिजिकल वेरिफिकेशन किए बिना ही फॉर्म भर दिए और मतदाताओं के पास अपील या शिकायत का कोई ठोस साधन नहीं है।

हालांकि, चुनाव आयोग का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 24 के तहत अपील का विकल्प मौजूद है, लेकिन इसके प्रति मतदाताओं में जागरूकता और पहुंच अभी भी सीमित है।