Bihar Election 2025: पहले चरण का नामांकन खत्म, लेकिन महागठबंधन में अब भी सीटों का संग्राम जारी!
Bihar political news: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शुक्रवार को पूरी हो गई। 18 जिलों की 121 सीटों पर 1198 उम्मीदवारों ने पर्चा दाखिल किया, लेकिन महागठबंधन अब भी सीट बंटवारे की अंतिम घोषणा नहीं कर पाया है। नामांकन की मियाद खत्म हो गई, पर राजद, कांग्रेस, वाम दलों और वीआईपी पार्टी के बीच तालमेल की तस्वीर अभी भी धुंधली है। नतीजा यह कि कई सीटों पर साथी दल एक-दूसरे के आमने-सामने उतर आए हैं।
121 सीटों पर 125 उम्मीदवारों ने बढ़ाया गठबंधन का गणित
पहले चरण में 121 विधानसभा क्षेत्रों के लिए महागठबंधन के कुल 125 प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। इनमें राजद ने 72, कांग्रेस ने 24, वाम दलों ने 21, वीआईपी ने 6 और आईआईपी ने 2 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। दिलचस्प यह कि चार सीटों पर गठबंधन के दो-दो उम्मीदवार मैदान में हैं, जबकि दोनों चरण मिलाकर यह संख्या 10 तक पहुंच गई है।
सिकंदरा और कुटुंबा में ‘दोस्ती’ से ज्यादा ‘दुश्मनी’ का मुकाबला
सिकंदरा सीट से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी राजद के टिकट पर मैदान में हैं, तो वहीं कांग्रेस ने विनोद चौधरी को प्रत्याशी बनाया है।
इसी तरह कुटुंबा सीट पर भी गठबंधन की दरार साफ झलक रही है- कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम को टिकट दिया, जबकि राजद ने सुरेश पासवान को उम्मीदवार बना दिया। इन दोनों सीटों पर होने वाली सीधी टक्कर ने गठबंधन के अंदर की खींचतान को सतह पर ला दिया है।
क्या महागठबंधन में बढ़ रही ‘फ्रेंडली फाइट’ की तैयारी?
नामांकन प्रक्रिया के बाद जिस तरह से सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाई है, उसने महागठबंधन की एकजुटता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कुछ सीटों पर यह रणनीतिक टकराव है, ताकि स्थानीय समीकरणों का लाभ मिल सके, जबकि कई जगह यह सीधा असंतोष है। तेजस्वी यादव ने भले ही अपने कुछ प्रत्याशियों को सिंबल देना शुरू कर दिया है, पर कांग्रेस और वाम दलों के नेताओं की नाराज़गी अब खुलकर सामने आने लगी है।
चुनावी रण में गठबंधन की ‘एकजुटता’ की परीक्षा
पहले चरण का नामांकन खत्म होने के बाद अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि क्या तेजस्वी यादव और उनके साथी अगले कुछ दिनों में बिखरते मोर्चे को फिर एकजुट कर पाएंगे या नहीं। क्योंकि अगर सीट शेयरिंग की उलझनें यूं ही बनी रहीं, तो बिहार के चुनावी रण में महागठबंधन की ताकत उसकी कमज़ोरी बन सकती है।







