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Bihar Election 2025: एम-वाई समीकरण पर विपक्ष की थ्योरी फेल, मुस्लिम-यादव गठजोड़ पहले से अधिक मज़बूत

 
बिहार election

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राज्य की सियासत का सबसे चर्चित शब्द फिर से सुर्खियों में है-एम-वाई समीकरण यानी मुस्लिम–यादव गठजोड़। विपक्षी दलों और कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की ओर से यह चर्चा छेड़ी गई कि यह पारंपरिक समीकरण अब कमजोर पड़ गया है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।

मल्लाह-यादव बनाम मुस्लिम-यादव की थ्योरी

बीते कुछ हफ्तों में यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हुई कि मुस्लिम वोट बैंक अब ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम या छोटे दलों की ओर झुक सकता है, और महागठबंधन की जगह “मल्लाह–यादव” समीकरण उभर रहा है। हालांकि, समाज के प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं, मौलानाओं और सामाजिक संगठनों ने एक सुर में कहा है कि “वोट बिखराव समुदाय के हित में नहीं है।”
यह संदेश मस्जिदों से लेकर सोशल मीडिया तक स्पष्ट रूप से फैल चुका है कि एकजुटता ही राजनीतिक सशक्तिकरण की कुंजी है।

तेजस्वी यादव पर भरोसा कायम

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार महागठबंधन और विशेषकर तेजस्वी यादव के प्रति मुस्लिम समुदाय में भरोसा पहले से गहरा हुआ है। तेजस्वी की हाल की सभाओं में मुस्लिम बहुल इलाकों की भारी भीड़ इसका संकेत देती है। यादव मतदाता तो परंपरागत रूप से राजद के साथ रहे ही हैं, अब मुस्लिम समाज का झुकाव भी उसी दिशा में दिखाई दे रहा है।

ओवैसी फैक्टर का असर सीमित

ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल इलाके में कुछ उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर उसका असर सीमित है। कई स्थानों पर मुस्लिम मतदाता खुलकर कह रहे हैं कि “वोट बिखरना किसी के लिए फायदेमंद नहीं, नुकसान सिर्फ हमारा होगा। ऐसे में विपक्ष का यह नैरेटिव कि “एम-वाई समीकरण कमजोर पड़ गया है”, धरातल पर टिकता नहीं दिख रहा।

जमीन पर मजबूत होती एकजुटता

बिहार के राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एम-वाई समीकरण अब सिर्फ चुनावी फार्मूला नहीं रहा, बल्कि यह राजनीतिक स्थिरता और भरोसे का प्रतीक बन गया है। जहां एक ओर विपक्ष भ्रम फैलाने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर राजद और महागठबंधन इस गठजोड़ को और मजबूत करने में जुटे हैं।