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बिहार विधानसभा में पांच साल का सियासी फेरबदल: दलबदल से भाजपा को सबसे बड़ा फायदा, एडीआर रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े, जाने पूरी ख़बर...

 
बिहार इलेक्शन

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले जारी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट ने पिछले पांच वर्षों की सियासत का दिलचस्प चित्र पेश किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 के चुनाव के बाद राज्य में दलबदल का दौर लगातार तेज़ रहा है। कुल 17 विधायक निर्वाचित होने के बाद अपनी मूल पार्टियों को छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए, यानी हर साल औसतन तीन से चार विधायकों ने सियासी पाला बदला।

इस राजनीतिक अदला-बदली में सबसे ज़्यादा फायदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हुआ। एडीआर के अनुसार, भाजपा ने तीन अलग-अलग दलों से कुल सात विधायकों को अपने साथ जोड़ा। वहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) दोनों ने पांच-पांच नए चेहरे अपनी पार्टी में शामिल किए।

राजनीतिक समीकरणों के इस फेरबदल में भाजपा के खेमे में राजद के दो विधायक भारद बिंद और संगीता कुमारी के साथ-साथ कांग्रेस के मुरारी प्रसाद गौतम और सिद्धार्थ सौरव जैसे नाम शामिल हुए। दूसरी ओर, राजद ने एआईएमआईएम के चार विधायक मोहम्मद इज़हार असफी, मोहम्मद अंजार नईमी, शाहनवाज़ और सैयद रुकनुद्दीन अहमद को अपने पाले में लाने में सफलता पाई। इसके अलावा जदयू की बीमार भारती ने भी राजद का दामन थामा।

उधर, जदयू ने भी मौके का पूरा फायदा उठाते हुए राजद के तीन विधायक -चेतन आनंद, नीलम देवी और प्रहलाद यादव के साथ बसपा के मोहम्मद ज़मा खान और लोजपा के राज कुमार सिंह को पार्टी में शामिल किया। दिलचस्प यह है कि राजद ने जहां पांच विधायकों को खो दिया, वहीं भाजपा और भाकपा (माले) जैसे दलों से एक भी विधायक ने इस्तीफा नहीं दिया।

एडीआर की रिपोर्ट में विधानसभा के कामकाज पर भी विस्तार से जानकारी दी गई है। नवंबर 2020 से जुलाई 2025 तक कुल 15 सत्र हुए, जिनमें 146 बैठकें हुईं औसतन हर साल विधानसभा सिर्फ 29 दिन बैठी। इनमें दूसरा और पांचवां सत्र सबसे लंबे रहे, जिनमें 22-22 बैठकें आयोजित हुईं।

इस अवधि में 251 विधायकों ने कुल 22,505 प्रश्न पूछे। भाजपा विधायक अरुण शंकर प्रसाद (275 प्रश्न) और कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह (231 प्रश्न) सवाल पूछने में सबसे सक्रिय रहे। पांच सालों में विधानसभा में कुल 99 विधेयक पेश किए गए और खास बात यह कि सभी विधेयक उसी दिन पारित भी कर दिए गए।

यह रिपोर्ट न केवल बिहार की राजनीतिक हलचल का आईना पेश करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे सियासी समीकरण हर कुछ महीनों में बदलते रहे कभी जोड़-तोड़ की राजनीति में, तो कभी सत्ता समीकरणों के नए खेल में।