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अपनी दरियादिली से शोषित वर्ग का हीरो बन दिल जीत गया 'गुंडा'!

 

एक अछूत के दर्द को नाटक के माध्यम से बखूबी पेश किया गया। शनिवार शाम परवाज अंतर्राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन जयशंकर प्रसाद लिखित एवं अविजित चक्रवर्ती द्वारा नाट्य रुपांतरित गुंडा की प्रस्तुति हुई।  नाटक प्रवीण सांस्कृतिक मंच की ओर से मंच पर पेश किया गया। जिसका निर्देशन चर्चित रंगकर्मी विज्येंद्र टॉक ने किया था। इस प्रस्तुति ने समाज के हाशिये पर पड़े वर्ग की समस्याओं को लेकर एक सवाल छोड़ा।

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नाटक में एक शख्स ने कुछ ऐसी दरियादिली दिखाई की पूरा बनारस उसे देखता रहा गया। काशी नरेश को छुड़वाने के लिए वह अंग्रेजों से भिड़ गया। वह जब चलता था तो देखने वाले दंग रह जाते थे। उसकी बोली के सामने कोई टिक नहीं पाता था। कभी मूछें चमकाता तो कभी गड़ासा चमकाते नजर आता। उसके सामने सबकी बोलती बंद हो जाती थी। लोग मन ही मन उसे गुंडा भी कहते थे। मगर वह दिल का राजा था। उसके संघर्ष पिछड़ों को न्याय दिलाने का था। यह नाटक बाबू ननकू पर आधारित है। जो 50 साल का हो गया है। मगर अब भी अपनी ताकत से गरीबों की आवाज बनता है।

इस कहानी में दर्शाया गया है कि किस प्रकार यह किरदार अपने पराक्रम से शोषितों के लिए लड़ता है और गुंडा कहलाता है। यह 18 वीं शताब्दि की घटना है। जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने से लेकर शोषितों के लिए रक्षक बनने का संघर्ष नाटक का तानाबाना है। वहीं कहानी के मुख्य किरदार की अपनी जिंदगी का संघर्ष और अकेलापन दर्शकों को सोचने पर विवश कर देता है। वह शोषित वर्ग की महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए  संघर्ष करता है। इस कहानी को अद्भूत मंच- सज्जा व लाईटिंग के साथ प्रस्तुत किया गया। जिसने इसकी जीवंतता में भरपूर योगदान दिया। गुंडा की प्रस्तुति पूर्व में कई बार बिहार समेत विभिन्न राज्यों में की जा चुकी है। जिसे दर्शकों की भरपूर प्रशंसा मिली है। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को बांधने में कामयाबी हासिल की। सभी पात्रों ने अपने अभिनय क्षमता से दर्शकों की वाहवाही लूटी। मुख्य किरदार गुंडा ने अपनी संवाद अदायगी से मन मोह लिया। वहीं कई दृश्यों ने मानवीय संवेदनाओं को झकझोरा तो कई ऐसे दृश्य रहे जिसने समाज की कुछ ऐसे तथ्यों को छूआ जिसपर दर्शक सोचने पर विवश हुए। नाटक में बैकग्राउंड लाईट जो शिवलिंग पर पड़ रही थी वह काफी प्रशंसनीय थी। वहीं मंच परिकल्पना प्रस्तुति में अपना भरपूरा योगदान दे रहा था। निर्देशन पक्ष अपनी मेहनत का गवाह बन रहा था। जिसे दर्शकों की ओर से भरपूर सराहना मिली।

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नाटक के पात्रों में ननकू सिंह - मृत्युंजय प्रसाद, पन्ना - रुबी खातून, दुलारी - सागरिका वर्मा, गेंदा - बिनीता सिंह, मलूकी - राहुल रंजन, कुबड़ा मौलबी - मो जफ्फर आलम, कथावाचक - रोहित चंद्रा, अभिषेक राज, कुमार स्पर्श, सैंटी, संटू, अरविंद जी, अंग्रेज — रास राज, अछूत — सैंटी, मनियार चाचा — बिज्येंद्र कुमार टॉक, हि​म्मत सिंह — कुमार स्पर्श, राहगीर — अ​रविंद कुमार, नारायण — विशाल यदुवंशी,सिपाही — 1.भारत कमार, 2.पुरुषोत्तम कुमार थे। ढोलक - कुमार स्पर्श एवं अभिषेक राज, सारंगी - अनीश मिश्रा, संगीत संयोजन - रोहित चंद्रा,  संगीत निर्देशक - राजू मिश्रा थे। मंच परिकल्पना - उमेश शर्मा, मंच निर्माण — सुनील कुमार, प्रकाश परिकल्पना — ​हरिशंकर रवि, वस्त्र परिकल्पना - परवेज अख्तर, रुप - सज्जा - जितेंद्र कुमार जीतू, कहानी — जयशंकर प्रसाद , नाट्य रुपांतरण - अविजित चक्रवर्ती, परिकल्पना एवं निर्देशन - विज्येंद्र कुमार टॉक ने किया।