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सी. पी. राधाकृष्णन: उपराष्ट्रपति पद से दक्षिण भारत और विपक्षी एकजुटता पर सीधा वार

 
सी. पी. राधाकृष्णन

भाजपा ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया है। यह फैसला अचानक नहीं लिया गया, बल्कि लंबे राजनीतिक गणित और रणनीति का हिस्सा है। सी. पी. राधाकृष्णन का नाम पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह संतुलन साधने की क्षमता रखता है।

सी. पी. राधाकृष्णन का राजनीतिक करियर तमिलनाडु से शुरू हुआ और वह आरएसएस से गहरे जुड़े हुए रहे हैं। उन्हें भाजपा का “कोयंबटूर का वाजपेयी” भी कहा जाता है क्योंकि उनकी छवि सौम्य, सुलझी हुई और विवाद-रहित रही है। यही कारण है कि भाजपा ने उन्हें इस अहम पद के लिए चुना है। उनका नाम सामने लाकर पार्टी ने विपक्ष के सामने भी एक पेचीदा स्थिति खड़ी कर दी है। उनकी साफ-सुथरी छवि के कारण विपक्ष के लिए सीधा विरोध करना आसान नहीं होगा।

महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भाजपा संसदीय दल की अहम बैठक के बाद बीते रविवार देर शाम को राधाकृष्णन के नाम का ऐलान किया था. तमिलनाडु के रहने वाले सी पी राधाकृष्णन इस समय महाराष्ट्र के गवर्नर हैं और अतीत में वे झारखंड, पुडुचेरी, तेलंगाना जैसे राज्यों में राज्यपाल की भूमिका निभा चुके हैं.

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा, ''सभी के साथ चर्चा हुई और सुझाव मांगे गए, जिसके बाद तय हुआ कि हमारे उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में सीपी राधाकृष्णन को हम एनडीए का प्रत्याशी बनाएंगे. इनका जन्म 20 अक्टूबर, 1957 को हुआ.'' भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संसदीय बोर्ड की बैठक में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी कार्यालय पहुंचे. इसके अलावा संसदीय बोर्ड की बैठक में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी के शीर्ष नेता भी शामिल हुए. सीपी राधाकृष्णन दो बार के पूर्व लोकसभा सांसद भी हैं. वे आरएसएस से भी जुड़े रहे. 

उन्होंने 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा. साल 1998 के चुनाव में 150,000 से अधिक मतों के अंतर से और 1999 के चुनावों में 55,000 के अंतर से जीत भी हासिल की. इसके अलावा, वे तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और साल 2020-2022 तक केरल में भाजपा के इनचार्ज के रूप में काम किया. अगले साल 12 फरवरी, 2023 को उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया. वहीं, 19 मार्च, 2024 को उन्हें तेलंगाना और पुडुचेरी के राज्यपाल के तौर पर अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई. फिर 27 जुलाई, 2024 को उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया था.

यह चुनावी रणनीति दक्षिण भारत की राजनीति को साधने की भी कोशिश है। भाजपा लंबे समय से तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। सी. पी. राधाकृष्णन का वहां गहरा प्रभाव है और उनकी स्वीकृति पार्टी के लिए आने वाले समय में वोटों और गठबंधनों में फायदा पहुँचा सकती है। इसके साथ ही उनका अनुभव महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी काम आएगा। 

उनके चयन के पीछे कई अहम कारण हैं। पहला, वे आरएसएस की विचारधारा से जुड़े हैं और संगठन के साथ मजबूत तालमेल रखते हैं। दूसरा, उनका राजनीतिक करियर लंबा और बेदाग रहा है। तीसरा, वे एक गैर-विवादित चेहरा हैं, जिनके बारे में विपक्ष भी व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचता रहा है। चौथा, उनका सियासी अंदाज़ बहुत संतुलित और सौहार्दपूर्ण है, जिससे वे हर पार्टी के नेताओं के साथ सहज रिश्ते बनाए रखते हैं। और पाँचवाँ, भाजपा को दक्षिण भारत में उनकी लोकप्रियता का फायदा मिलेगा।

इस फैसले का सीधा असर विपक्षी खेमे पर भी पड़ेगा। विपक्ष पहले से ही उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर एकजुट नहीं हो पाया है। भाजपा की चाल ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। अगर विपक्ष कोई आक्रामक चेहरा उतारता है, तो उसकी तुलना सी. पी. राधाकृष्णन की शालीन छवि से होगी, जिससे विपक्ष कमजोर पड़ सकता है। वहीं अगर विपक्ष हल्के या समझौते वाले उम्मीदवार पर रुकता है, तो भाजपा की जीत और आसान हो जाएगी। संख्याबल के लिहाज से भी एनडीए मजबूत स्थिति में है। लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त संख्या में उनके पास आराम से बढ़त है। इसका मतलब है कि जीत लगभग तय मानी जा रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से यह भी संकेत दिया गया है कि अगर विपक्ष चाहे तो चुनाव निर्विरोध कराया जा सकता है, लेकिन यह अधिकतर एक राजनीतिक संदेश है, असली मकसद विपक्ष में दरार डालना है।

सी पी राधाकृष्णन के चयन ने एक बार फिर साबित किया कि भाजपा अपने कदम बड़े सोंच विचार के बाद उठाती है। यह कदम न सिर्फ उपराष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए है, बल्कि दक्षिण भारत में पार्टी की पकड़ को मजबूत करने और विपक्षी एकजुटता को तोड़ने की दीर्घकालिक रणनीति भी है।

इधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए गए महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने अपने X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर बधाई संदेश साझा करते हुए लिखा है कि "महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी.पी. राधाकृष्णन जी को एनडीए के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के निर्णय का स्वागत है। जदयू श्री सी.पी. राधाकृष्णन जी का समर्थन करेगा। उन्हें शुभकामनाएं।" इस संदेश के माध्यम से नीतीश कुमार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) एनडीए के इस निर्णय के साथ है और उम्मीदवार राधाकृष्णन को पूर्ण समर्थन देगी। इस राजनीतिक समर्थन को 2025 के चुनावी समीकरणों के संदर्भ में भी अहम माना जा रहा है, खासकर जब विभिन्न पार्टियों के बीच तालमेल और रणनीतियां तेज हो गई हैं। उनका समर्थन  संकेत भी हो सकता है कि नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए में एकजुटता बनाए रखने को लेकर गंभीर हैं और आने वाले दिनों में केंद्र की राजनीति में उनकी सक्रियता और निर्णायक भूमिका भी देखने को मिल सकती है।