मोतिहारी में 58 साल बाद फिर लौटा सूखा: खेत सूने, आंखें नम, किसान बोले, “सरकार और बादल दोनों ने धोखा दिया”
मोतिहारी के रक्सौल अनुमंडल में इस बार मौसम की बेरुखी ने किसानों की कमर तोड़ दी है। करीब 58 साल बाद सुखाड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई है। खेतों में धान की बालियां नहीं हैं, सिर्फ मायूसी फैली है। किसान सरकार की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं, लेकिन अब तक कोई मुआवजा या राहत की घोषणा नहीं हुई है।
मौसम ने भी साथ छोड़ा, और सरकार ने भी
रामगढ़वा इलाके के किसान बताते हैं कि उन्होंने तीन से चार बार पानी से पटवन कर बिचड़ा गिराया, फिर भी बारिश नहीं हुई। जब आसमान ने साथ नहीं दिया, तो उन्होंने बोरिंग कर खेतों की रोपनी की। एक कठ्ठे में 10,000 रुपये तक का खर्च आया, लेकिन अब हालत ये है कि “एक दाना भी घर नहीं जाएगा”।
1967 जैसा सूखा है ये
कुछ बुजुर्ग किसानों ने बताया कि ऐसी स्थिति 1967 में आखिरी बार देखी थी, जब जेपी (जयप्रकाश नारायण) ने राहत कमेटी बनाकर मदद की थी और अटल बिहारी वाजपेयी खुद गांवों में रोटियां बांटते थे। उस वक्त भी खेत सूख चुके थे, लेकिन दिलों में उम्मीद थी। आज उम्मीद भी मुरझा रही है।
अब सरकार से आस-मुआवजा की मांग तेज
किसानों का कहना है कि इस बार खर्च तो हुआ, लेकिन फसल बर्बाद हो गई। ऐसे में अगर सरकार आगे नहीं आई, तो कर्ज, भूख और पलायन यही रास्ता बचेगा। किसानों की मांग है कि जल्द से जल्द क्षेत्र को सुखाड़ग्रस्त घोषित कर मुआवजा दिया जाए, ताकि वे दोबारा खेत में जाने की हिम्मत जुटा सकें।
खाली खेत, भरे कर्ज और टूटा भरोसा
रामगढ़वा, पकड़ीदयाल, और ढाका जैसे क्षेत्रों में स्थिति एक जैसी है। जमीन सूखी है, किसान थके हुए हैं और सरकार अब तक खामोश है। मजदूरी भी नहीं बची, खेती भी नहीं रही, अब करें तो क्या करें? यही सवाल हर गांव में गूंज रहा है।
एक ओर जहां अखबारों में सरकार की उपलब्धियों की खबरें हैं, वहीं पूर्वी चंपारण के ये गांव हर रोज़ अपना पेट और सब्र दोनों खाली कर रहे हैं।अब देखना ये है कि क्या सरकार इस दर्द को सुनेगी, या ये भी एक मौसम की तरह गुज़र जाएगा... चुपचाप।







