Patna AIIMS Crisis: बीमार लोग कतार में, नेता तकरार में- पटना एम्स में ठप इलाज
Patna: बिहार की राजधानी का एम्स अस्पताल, जहां हर रोज़ हजारों ज़िंदगियों को इलाज की उम्मीद मिलती है, आज खुद इलाज मांगता नज़र आ रहा है. बीते छह दिनों से रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल जारी है, और इसका असर अब सिर्फ ओपीडी या ऑपरेशन तक सीमित नहीं रहा यह पूरे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर संकट गहराता जा रहा है.
मरीजों के लिए दरवाज़े बंद
एम्स प्रशासन की मानें तो रोज़ाना यहां करीब 4000 से ज्यादा मरीज इलाज के लिए आते हैं. मगर पिछले कुछ दिनों से अस्पताल की ओपीडी सुनसान है और ऑपरेशन थिएटर में ताले लटके हैं. मंगलवार को अकेले 80 सर्जरी कैंसिल कर दी गईं. सुबह 5 बजे से कतार में खड़े मरीजों को दिन चढ़ते ही ये खबर मिल रही है कि डॉक्टर नहीं हैं. एक बुज़ुर्ग मरीज ने रोते हुए कहा, गलती चाहे जिसकी भी हो, सज़ा तो हमारे बीमार बच्चों को मिल रही है.
हड़ताल पर क्यों हैं डॉक्टर?
इस पूरे विवाद की जड़ है 30 जुलाई की रात हुई एक कथित झड़प, जिसमें विधायक चेतन आनंद के गार्ड्स पर डॉक्टरों ने एम्स परिसर में हथियार लेकर घुसने और धमकाने का आरोप लगाया है. डॉक्टरों का कहना है कि विधायक और उनके समर्थकों ने हॉस्पिटल के भीतर हंगामा किया, और जब इस पर प्रतिक्रिया दी गई, तो उल्टे डॉक्टरों पर ही एफआईआर दर्ज हो गई. रेजिडेंट डॉक्टरों की मांग है कि विधायक चेतन आनंद के खिलाफ दर्ज एफआईआर को वापस लिया जाए, तभी वे काम पर लौटेंगे.
विधायक का पलटवार
वहीं विधायक चेतन आनंद किसी भी समझौते के मूड में नहीं दिख रहे। उन्होंने साफ कह दिया है कि, "मेरे साथ मारपीट हुई है, मैं माफी क्यों मांगूंगा’’ .उन्होंने इस मामले को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के सामने भी उठाया है। ऐसे में टकराव और तेज़ होता दिख रहा है.
प्रशासन की अपील, मगर डॉक्टर अड़े
मंगलवार को हालात इतने बिगड़ गए कि खुद पटना के आईजी और एसपी सिटी एम्स पहुंचे और डॉक्टरों से काम पर लौटने की अपील की. जिसके बाद डॉक्टरों ने कहा, जब तक एफआईआर वापस नहीं ली जाती, काम पर नहीं लौटेंगे।
समर्थन में अन्य मेडिकल संस्थान भी उतरे
अब यह आंदोलन सिर्फ एम्स की चारदीवारी में सीमित नहीं रहा। पटना के IGIMS और अन्य मेडिकल कॉलेजों के जूनियर डॉक्टरों ने भी हड़ताली डॉक्टरों के समर्थन में ओपीडी बहिष्कार की चेतावनी दी है। यानी अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो बिहार में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह ठप हो सकती हैं।
एम्स डायरेक्टर की चिंता
एम्स के निदेशक डॉ. सौरभ वार्ष्णेय ने भी कहा कि, डॉक्टरों के बिना अस्पताल की व्यवस्था अधूरी है। बिना डॉक्टर के एम्स, एक खाली इमारत जैसा है। हम मरीजों को निराश कर रहे हैं, ये दुर्भाग्यपूर्ण है।
मरीज कब तक भुगतेंगे?
इस पूरे विवाद में सबसे बड़ा नुकसान आम मरीजों को हो रहा है, जिन्हें न राजनीति समझ आती है न ही प्रशासन की चुप्पी। इलाज की उम्मीद लेकर आने वाले लोगों को हर दिन मायूसी का सामना करना पड़ रहा है। सवाल उठता है कि इस टकराव का अंत कब होगा? और क्या स्वास्थ्य सेवाएं सियासत का शिकार बनती रहेंगी?







