वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट की मोहर, चुनाव आयोग को राहत

चुनाव आयोग की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम टिप्पणी की। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि वह इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाएगी, जिससे चुनाव आयोग को बड़ी राहत मिली है। हालांकि कोर्ट ने आयोग की समयसीमा और प्रक्रिया को लेकर कुछ तीखे सवाल भी पूछे और नागरिक पहचान के लिए दस्तावेजों पर नई दिशा देने की बात कही।
अदालत ने दिए तीन दस्तावेजों को पहचान के रूप में मान्यता देने के संकेत
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि मतदाता पहचान के लिए आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी को अधिकृत पहचान पत्रों के रूप में स्वीकार किया जाए। यह संकेत चुनावी पारदर्शिता और नागरिकों की भागीदारी को संतुलित करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ: “यह नागरिकता की जाँच है, न कि पुनरीक्षण”
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को बताया कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया मनमानी और भेदभावपूर्ण है। उन्होंने तर्क दिया कि आयोग सिर्फ दस्तावेजों की मांग नहीं कर रहा, बल्कि माता-पिता के प्रमाण-पत्र तक मांग रहा है, जो नागरिकता की जाँच जैसा व्यवहार है।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल: “बिहार में इतनी देर से क्यों शुरू हुआ SIR?”
कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि अगर यह एक नियमित प्रक्रिया है, तो इसे बिहार जैसे राज्य में इतनी देर से क्यों शुरू किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कोई अवैध प्रक्रिया नहीं है, लेकिन समय का चयन चुनावी संतुलन को बिगाड़ सकता है।
चुनाव आयोग का पक्ष: “हम मतदाताओं के बिना अस्तित्वहीन हैं”
चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि आयोग किसी भी नागरिक को मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही ऐसा कर सकता है जब तक कि कानून इसकी अनुमति न दे। उन्होंने कहा, “हम धर्म, जाति, भाषा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करते और न ही कर सकते हैं। हम एक संवैधानिक संस्था हैं, हमारा अस्तित्व ही नागरिकों से जुड़ा है।”
अगली सुनवाई की तारीख तय: 28 जुलाई
सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तय की है। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि कोर्ट आगे क्या दिशा-निर्देश देता है और चुनाव आयोग इस बीच किन सुधारात्मक उपायों को अपनाता है।
इस मामले ने एक बार फिर यह उजागर किया है कि मतदाता सूची का पारदर्शी और न्यायसंगत प्रबंधन लोकतंत्र की नींव है। यदि नागरिकों की पहचान को लेकर असमंजस बना रहा, तो यह न केवल वोटिंग अधिकारों को प्रभावित करेगा बल्कि चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करेगा।