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झमटिया श्रावण महोत्सव की अनुभूति: बीते कल की स्मृति और भविष्य के संकल्प के बीच एक यात्रा

 
झमटिया श्रावण महोत्सव की अनुभूति

Begusarai: गंगा तट पर अवस्थित झमटिया गांव में आयोजित श्रावण महोत्सव, न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र बना है, बल्कि यह अब सामाजिक जागरूकता और बिहार के उत्थान के संदेशों के प्रसार का भी एक सशक्त मंच बन गया है। वर्ष 2017 से बछवाड़ा पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री प्रभाकर कुमार राय के आमंत्रण पर इस आयोजन में भाग लेते आ रहे एक प्रशासनिक अधिकारी की आत्मानुभूति, इस बार फिर सबके सामने आई – एक ऐसी यात्रा, जिसमें अतीत की स्मृतियां, वर्तमान का अनुभव और भविष्य की आशा, तीनों गहराई से जुड़े हुए हैं।

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अतीत से जुड़ी संवेदनाएं

इस वर्ष जब वे पटना से झमटिया की ओर निकले, तब मौसम में बारिश की बूंदें थीं और मन में विचारों की धाराएं। मैरीन ड्राइव और फोरलेन के नए रास्तों से गुजरते हुए उन्होंने अपने बाल्यकाल की एक स्मृति साझा की – समस्तीपुर जिले के पांडवस्थान की। यह वही स्थान है, जहां 1991 में खुदाई के दौरान मिले प्राचीन अवशेषों और स्वर्ण मुद्राओं को लेकर क्षेत्र में हलचल मच गई थी। उसी समय, एक किशोर मन में प्रशासनिक सेवा की चिंगारी जली थी, जब उसने देखा कि कैसे अराजकता को रोकने के लिए प्रशासन ने हस्तक्षेप किया।

प्रेरणा बनी ‘पांडवस्थान’

पांडवस्थान न सिर्फ एक पुरातात्विक स्थल है, बल्कि यह उस काल की झलक भी देता है जब हजारों वर्ष पहले बिहार की धरती पर सभ्यता ने आकार लिया था। उन्होंने अपने अनुभवों में बताया कि कैसे पांडवस्थान से प्राप्त अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि यहां 6000 वर्ष पूर्व भी व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियां सक्रिय थीं।

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महाभारत के मार्गों का रहस्य

महाभारत काल की घटनाओं पर भी उन्होंने रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि कैसे श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम ने इन्द्रप्रस्थ से राजगृह पहुंचने के लिए अपेक्षाकृत लंबा परंतु सुरक्षित मार्ग चुना। यह मार्ग उत्तर कुरु से होते हुए मिथिला के पांडवस्थान को छूता था, जो आज भी उस ऐतिहासिक यात्रा का मूक साक्षी बना हुआ है।

वर्तमान में झलकता गौरव

झमटिया के श्रावण महोत्सव में सम्मिलित होते हुए उन्होंने यह भी कहा कि आज जब हम अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त हैं, तब हमें यह सोचना चाहिए कि हमारे पूर्वज संसाधनों के बिना भी दुनिया के अग्रणी समाजों में क्योंकर गिने जाते थे। अगर उस काल में बिहार ज्ञान, शौर्य और व्यापार में अग्रणी था, तो आज भी वह स्थान क्यों न पा सके?

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बेगूसराय: उद्यमिता की संभावनाओं का केंद्र

उन्होंने विशेष रूप से बेगूसराय के औद्योगिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यहाँ "राष्ट्रकवि दिनकर उद्यमिता विश्वविद्यालय" की स्थापना होनी चाहिए। यह संस्थान स्थानीय युवाओं के लिए स्टार्टअप्स और स्वरोजगार के नए द्वार खोल सकता है और बिहार के आर्थिक परिदृश्य को बदल सकता है।

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यात्रा जो सिर्फ भौगोलिक नहीं, वैचारिक भी थी

झमटिया की भीड़ में काँवरियों की आस्था, पांडवस्थान की स्मृतियाँ और मार्ग में बिखरे प्राकृतिक सौंदर्य के बीच यह यात्रा सिर्फ एक स्थल तक पहुंचने की नहीं थी, यह उस विचार तक पहुंचने की थी, जहाँ एक राज्य के पुनरुत्थान की संभावना बसती है।