सेपक टकरा खेल का विश्वकप टूर्नामेंट पटना में होगा, जानिए कैसे खेला जाता है यह खेल

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2024 में कला संस्कृति एवं खेल विभाग को दो भागों में बांटकर खेल विभाग को अलग किया था. उसके बाद से बिहार सरकार का खेल विभाग लगातार नई-नई उपलब्धियां से न सिर्फ बिहार के खिलाड़ियों को उत्साहित कर रहा है बल्कि देश और दुनिया में अपनी पहचान बना रहा है. अब बिहार सरकार का खेल विभाग पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए सेपक टकरा खेल के विश्वकप टूर्नामेंट का आयोजन करने जा रहा है. इस नायाब खेल के आयोजन से बिहार के खिलाड़ियों को और ज्यादा उत्साह बढ़ेगा.
खेल विभाग की ओर से बिहार में पहली बार सेपक टकरा विश्व कप चैंपियनशिप का आयोजन पटना के पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स (कंकड़बाग) में आयोजित करेगा जो 16 मार्च से 26 मार्च तक चलेगा. वैसे तो सेपक टकरा खेल के बारे में अधिकांश लोगों को जानकारी नहीं रहती है लेकिन बिहार के खेल से जुड़े युवाओं का इसके प्रति जागरूकता बढ़ेगी.

बिहार सरकार ने इस खेल के लिए कैबिनेट में मंजूरी दी है. इस खेल के लिए करीब 13 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है. पटना में होने वाले सेपक टकरा विश्व कप टूर्नामेंट में 16 देश के खिलाड़ी शामिल होंगे. इसमें भारत के खिलाड़ी के अलावा इटली, फ्रांस, जर्मनी, जापान, साउथ कोरिया, चीन, इंडोनेशिया, सिंगापुर, ईरान, इटली, फ्रांस, जर्मनी, स्वीटजरलैंड, संयुक्त राष्ट अमेरिका, ब्राजील एवं ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी प्रतिनिधित्व करेंगे. यह खेल पुरुष और महिला दोनों मिलकर खेलेंगे. इसमें पुरुष एवं महिला एथलीटों की संख्या 96-96 रहेगी.
अधिकांश लोगों के मन में यह चल रहा होगा कि पटना में होने वाले सेपक टकरा खेल क्या है? बता दें कि इस खेल का रोमांच दुनिया में अपनी जगह बनाने लगा है और भारत में भी इस खेल को खेला जाने लगा है. वर्ष 1992 में इस गेम के लिए इंटरनेशनल सेपक टकरा फेडरेशन का गठन किया गया है. इस खेल को सबसे पहले मलेशिया में खेला जाता था. धीरे-धीरे यह इंडोनेशिया समेत पूर्वोत्तर देशों में भी फैल गया. अब यह खेल लगभग दुनिया के सभी देशों में खेला जाने लगा है. सेपक टकरा गेम बड़ा ही अजीब है. कह सकते हैं कि यह फुटबॉल और वॉलीबॉल का मिक्स्चर है. यानी वॉलीबॉल की तरह इसमें दोनों टीमों के बीच नेट लगी होती है और बॉल को एक-दूसरे के पाले में गिराने की कोशिश होती है, लेकिन यहां हाथ का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता. हाथ की जगह यहां पैर इस्तेमाल किए जाते हैं. पटना के लोगों को कुछ अलग देखने का मौका मिलने वाला है.