"आदिवासी उलगुलान जन आक्रोश महारैली", कुर्मी जाति को एसटी सूची में शामिल करने के विरोध में आदिवासी जन आक्रोश महारैली
Jharkhand Desk: कुर्मी जाति को एसटी सूची में शामिल करने के विरोध में आदिवासी जन आक्रोश महारैली निकाली गई. आदिवासी समाज के लोगों ने पारंपरिक हथियारों के साथ प्रदर्शन किया और कुर्मी जाति को एसटी में शामिल करने का विरोध किया.

अब जिला में पहली बार कचहरी मैदान में आदिवासियों का जुटान हुआ. आदिवासी संगठनों ने "आदिवासी उलगुलान जन आक्रोश महारैली" का आयोजन किया.
जिसमें कुड़मी समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने की मांग के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया गया. आदिवासी संगठनों का कहना है कि कुड़मी समुदाय को एसटी का दर्जा देने से आदिवासियों के अधिकारों पर डाका पड़ जाएगा. जिससे वे आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से और भी पिछड़ जाएंगे.
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इस महारैली में शामिल लोगों ने कुड़मी समुदाय के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. आदिवासी नेताओं ने कहा कि किसी भी कीमत पर वे कुड़मियों को आदिवासी बनने नहीं देंगे. आदिवासी संगठनों ने एकजुट होकर कहा कि वे अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ेंगे और कुड़मियों की मंशा को कभी सफल नहीं होने देंगे.
आदिवासी संगठन के नेताओं ने कहा कि आदिवासी समाज से कुड़मियों का समाज बिल्कुल अलग है. कुड़मियों को आदिवासी का दर्जा मिलेगा तो ये लोग मूल आदिवासियों को धक्के मारकर बाहर कर देंगे. कोई भी तथाकथित कुड़मी नेता अपना माइलेज लेने के लिए कुड़मी को आदिवासी का दर्जा दिलाने की बात करे तो आदिवासी उसका मुंहतोड़ जवाब दे सके.
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आदिवासी समन्वय समिति के अध्यक्ष ने कहा कि भारत के संविधान के तहत देश में किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता दी गई है. जाति को धर्म के बंधन में नहीं रखा गया है. इसलिए आदिवासी सरना भी है, ईसाई भी है, जम्मू-कश्मीर और असम जैसे इलाकों में आदिवासी मुस्लिम भी हैं बौद्ध भी है और अन्य धर्मावलंबी भी हैं.
संविधान में ही हमें धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है लेकिन चंद नेता राजनीतिक लाभ लेने और आदिवासी, सरना, ईसाई में फूट डालने के लिए राजनीतिक शिगूफा छोड़ते हैं, ऐसा बिल्कुल नहीं होने देंगे. आदिवासी नेताओं ने कहा कि कुड़मियों को आदिवासी का दर्जा दिलाना गैरकानूनी और असंवैधानिक है, सुप्रीम कोर्ट भी इसे खारिज कर चुका है.







