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PESA कानून लागू होते ही सरकार से कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के शुरू हो गए सवालों के लिस्ट, अब हाईकोर्ट में चुनौती की तैयारी

Jharkhand Desk: आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के राष्ट्रीय संयोजक विक्टर माल्टो ने इसे छलावा करार दिया है और कहा कि गजट नोटिफिकेशन के बाद सरकार के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी. उन्होंने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने झारखंड उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेशों की अवहेलना करते हुए एक बार फिर वही त्रिस्तरीय पंचायत राज प्रणाली लागू कर दी है, जिसे न्यायालय पहले ही संसदीय अधिनियम 1996 के खिलाफ बता चुका है...
 
PESA ACT

Jharkhand Desk: झारखंड सरकार ने मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में PESA नियमावली को मंजूरी दे दी है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया है लेकिन दूसरी ओर पेसा नियमावली को लेकर सरकार से कानूनी लड़ाई लड़ रहे आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है.

central government angry that PESA law not in Jharkhand

आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के राष्ट्रीय संयोजक विक्टर माल्टो ने इसे छलावा करार दिया है और कहा कि गजट नोटिफिकेशन के बाद सरकार के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी. उन्होंने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने झारखंड उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेशों की अवहेलना करते हुए एक बार फिर वही त्रिस्तरीय पंचायत राज प्रणाली लागू कर दी है, जिसे न्यायालय पहले ही संसदीय अधिनियम 1996 के खिलाफ बता चुका है.

आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने की पंचायती राज निदेशक को पद से हटाने की मांग,  राज्य में असंवैधानिक प्रावधान लागू करने का लगाया आरोप

आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के सवाल

उनका कहना है कि झारखंड उच्च न्यायालय ने WP (PIL) No. 1589/2021 मामले में आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट निर्देश दिया था कि राज्य सरकार को परंपरा और संसदीय अधिनियम 1996 (PESA Act) की भावना के अनुरूप नई नियमावली बनानी होगी. अदालत ने अपने आदेश के पैराग्राफ 12 में कहा था कि झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 संसदीय अधिनियम 1996 के संगत नहीं है.

संवैधानिक अनिवार्यता की अनदेखी - विक्टर मालतो

राज्य सरकार ने इस संवैधानिक अनिवार्यता की अनदेखी करते हुए पुनः झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 के प्रावधानों को ही अपनाया है, जो विशेष रूप से अनुसूचित क्षेत्रों में PESA कानून की धारा 3 और धारा 4(एम) के विपरीत हैं। इन धाराओं के तहत समुचित स्तर पर पंचायतों और ग्रामसभा को सात विशिष्ट शक्तियां अपवादों और उपांतरणों के अधीन प्राप्त है, जो स्थानीय स्वशासन और जनभागीदारी को सुनिश्चित करती हैं.

आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने इस निर्णय को “संविधान सम्मत स्वशासन के अधिकार पर आघात” बताया है और संकेत दिया है कि गैजेट प्रकाशित होते ही इस नियमावली को फिर से न्यायालय में चुनौती दी जाएगी। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह मुद्दा एक बार फिर आदिवासी स्वशासन बनाम प्रशासनिक केंद्रीकरण की बहस को हवा दे सकता है, जिससे राज्य की राजनीति में नया मोड़ आना तय है.