शिक्षा विभाग ने जोड़ा ‘अन्य’ कॉलम, अब आदिवासी बच्चे भी दर्ज करा सकेंगे अपना ‘धर्म’
Ranchi: केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त पहल के तहत चल रहे डहर (डिजिटल हैबिटेशन मैपिंग एंड रियल-टाइम मॉनिटरिंग) 2.0 सर्वे में शिक्षा विभाग ने अहम बदलाव करते हुए धर्म कॉलम में ‘अन्य’ (Others) का विकल्प जोड़ दिया है. इस संशोधन के बाद ऐसे आदिवासी बच्चे जो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन या बौद्ध धर्म से स्वयं को नहीं जोड़ते, वैसे लोग अब सरना या आदिवासी धर्म के रूप में अपनी पहचान दर्ज करा सकेंगे.
अब तक सर्वे प्रपत्र में केवल छह धर्मों के विकल्प होने के कारण आदिवासी समाज में नाराजगी देखी जा रही थी. विभिन्न जनजातीय संगठनों का कहना था कि इससे आदिवासी बच्चों की वास्तविक गणना प्रभावित हो रही है और उनकी धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान सरकारी आंकड़ों में दर्ज नहीं हो पा रही. लगातार उठती आपत्तियों और मांगों के बाद शिक्षा विभाग ने 11 दिसंबर 2025 से पोर्टल में ‘अन्य’ कॉलम को सक्रिय कर दिया है. विभागीय स्तर पर स्कूलों को निर्देश दिए गए हैं कि सर्वे के दौरान संशोधित प्रारूप के अनुसार प्रविष्टियां की जाएं.
इस फैसले का स्वागत करते हुए आदिवासी नेता अजय तिर्की ने कहा कि डहर 2.0 सर्वे में ‘अन्य’ कॉलम जुड़ना आदिवासी समाज के लिए एक जरूरी और सकारात्मक कदम है. इससे बच्चों की सही पहचान दर्ज होगी और सरकार के सामने वास्तविक आंकड़े आएंगे. यह सिर्फ तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि आदिवासी अस्तित्व की स्वीकारोक्ति है. उन्होंने कहा कि सही गणना से ही योजनाओं का लाभ सही लाभुकों तक पहुंच सकता है.
डहर 2.0 सर्वे के तहत 3 से 18 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों का डेटा एकत्र किया जा रहा है, चाहे वे विद्यालय में नामांकित हों या ड्रॉपआउट. इसी रिपोर्ट के आधार पर हर वर्ष समग्र शिक्षा अभियान की वार्षिक कार्य योजना और बजट को अंतिम रूप दिया जाता है.
मामले पर शिक्षा पदाधिकारी बादल ने कहा कि डहर 2.0 सर्वे विभागीय निर्देशों के तहत संचालित किया जा रहा है. योजना में जो भी बदलाव किए जाते हैं, वे उच्च स्तर से प्राप्त निर्देशों के अनुसार ही लागू किए जाते हैं. धर्म कॉलम में ‘अन्य’ विकल्प जोड़ना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. उन्होंने बताया कि सर्वे का उद्देश्य सभी वर्गों के बच्चों का सही और समावेशी आंकलन सुनिश्चित करना है.
जनजातीय भाषा विभाग की प्रतिक्रिया
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अधिकारियों का मानना है कि इस संशोधन से आदिवासी समाज की भाषा, संस्कृति और धार्मिक पहचान को सरकारी नीतियों में उचित स्थान मिलेगा, जिससे भविष्य में शिक्षा और जनजातीय कल्याण से जुड़ी योजनाएं अधिक प्रभावी बन सकेंगी.







