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70 के दशक में अगर बिनोद बाबू ना मिले होते तो शायद झारखंड मुक्ति का गठन हो ही नहीं पाता...आईये सुनिए बहुत रोचक है किस्सा, JMM का संघर्ष से शिखर तक की कहानी

Jharkhand Desk: वर्ष 1972 में शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और एके राय ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और अलग राज्य की लड़ाई आरंभ की थी. 1984 तक विनोद बिहारी महतो अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव रहे. राजनीतिक हालात बदले और 1984 में निर्मल महतो जेएमएम के अध्यक्ष बने. निर्मल महतो के बाद 1987 में शिबू सोरेन ने कमान संभाली और करीब 38 वर्षों तक पार्टी के अध्यक्ष रहे.
 
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Jharkhand Desk: दिशोम गुरु शिबू सोरेन को 70 के दशक में अगर बिनोद बाबू (बिनोद बिहारी महतो) ना मिले होते तो शायद झारखंड की मौजूदा राजनीति कुछ और होती क्योंकि इस मुलाकात के बगैर झारखंड मुक्ति का गठन हो ही नहीं पाता. पार्टी बनाने का कांसेप्ट बिनोद बाबू का था. इसमें अहम किरदार निभाया था दिग्गज वामपंथी मजदूर नेता एके राय ने. 4 फरवरी 1972 के बिनोद बाबू के धनबाद आवास पर पार्टी के गठन के लिए बैठक हुई थी. तब शायद इनमें से किसी को अंदेशा भी नहीं होगा कि आगे चलकर यही झामुमो झारखंड का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनेगा.

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तब तीनों दिग्गज नेता अपने-अपने विषय को आंदोलन के जरिए आगे बढ़ा रहे थे. बिनोद बाबू शिवाजी समाज चलाते थे. इसका काम था कुड़मी समाज की बुराइयों को दूर करना. शिक्षा के प्रति जागरुक करना. इस समाज को अधिकार दिलाने में मदद करना. क्योंकि बिनोद बाबू पेशे से वकील भी थे. तब शिबू सोरेन सोनोत संथाल समाज के बैनर तले समाज की बुराईयों को दूर करने और महाजनों के शोषण के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे. आगे चलकर उन्होंने इसका नाम आदिवासी सुधार समिति कर दिया था. जबकि ए.के.राय एक चर्चित मजदूर नेता थे.

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घंटों मंथन के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के नाम पर सहमति बनी. कहा जाता है कि 70 के दशक में बांग्लादेश में चल रहे मुक्ति वाहिनी संघर्ष और वियतनाम संघर्ष से प्रभावित होकर यह नाम रखा गया. इस बैठक में प्रेम प्रकाश हेंब्रम, कतरास के पूर्व राजा पूर्णेंदु नारायण सिंह, शिवा महतो, जादू महतो, शक्तिनाथ महतो, राज किशोर महतो, गोविंद महतो समेत कुछ और लोग मौजूद थे. तब सर्वसम्मति से बिनोद बिहारी महतो को झामुमो का पहला अध्यक्ष, शिबू सोरेन को महासचिव, पूर्णेंदु नारायण सिंह को उपाध्यक्ष, टेकलाल महतो को सचिव और चूड़ामणि महतो को कोषाध्यक्ष चुना गया था.

झारखंड मुक्ति मोर्चा का पहला स्थापना दिवस 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्प ग्राउंड में हुआ. कल्पना से परे भीड़ उमड़ी. धनबाद समेत हजारीबाग, गिरिडीह, देवघर, जामताड़ा से आदिवासी समाज के लोग पारंपरिक हथियार के साथ पहुंचे. बिनोद बाबू से प्रभावित कुड़मी और गैर आदिवासी समाज के लोगों के साथ-साथ एके राय समर्थक मजदूरों को जबरदस्त जुटान हुआ. एक लाख से ज्यादा भीड़ थी. एके रॉय ने कहा था कि हरा और लाल झंडा के संगम ने शोषण और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है. शिबू सोरेन ने पार्टी के कार्यक्रम को गांव-गांव तक पहुंचाने का आह्वान किया था. रातभर भाषणों का दौर चला था. इसी स्थापना दिवस ने झामुमो को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई.

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यह बदलाव का दौर था. तीनों नेताओं के बीच माफिया राज से निजात की सहमति बनी थी. इसी दौरान अक्टूबर 1972 में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण हो गया. हजारों मजदूर छांट दिए गये. स्थानीय लोगों की जगह बिहार के आरा, छपरा और यूपी के बलिया के लोगों को रखा जाने लगा. उसी वक्त ये तीनों नेता समझ गये थे कि संयुक्त रुप से लड़े बिना झारखंड हित की रक्षा मुश्किल होगी. 

1949 में जयपाल सिंह मुंडा की ओर से गठित झारखंड पार्टी ने 1952, 1957 और 1962 में शानदार प्रदर्शन किया. झारखंड पार्टी ने 1952 के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया और बिहार विधानसभा की 325 में से 32 सीटें जीत कर एक प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई. लेकिन 1962 के चुनाव में जयपाल सिंह मुंडा ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया, जिसके बाद झारखंड पार्टी का प्रभाव खत्म होता गया और 1972 में अमर शहीद बिरसा मुंडा की जयंती के दिन शिबू सोरेन ने विनोद बिहारी के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया.

और विनोद बिहारी महतो ने पहले आदिवासी और कुरमी समाज में अपनी पैठ बनाई. इसके साथ ही मुस्लिम, दलित, यादव और अन्य समाज के लोगों में भी जेएमएम का पकड़ बनता गया. 4 फरवरी 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का पहला स्थापना दिवस धनबाद के गोल्फ मैदान में बनाया गया. रैली निकाली गई, इसके बाद से जेएमएम का स्थापना दिवस मनाने की परंपरा चल निकली. आज भी उसी जगह पर स्थापना दिवस मनाया जाता है. झारखंड मुक्ति मोर्चा गठन के बाद कई नए कार्यकर्ता उभर कर सामने आए. नया नेतृत्व पैदा हुआ. झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के बाद ही अलग राज्य की असली लड़ाई शुरू हुई. 

वर्ष 1972 में शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और एके राय ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और अलग राज्य की लड़ाई आरंभ की थी. 1984 तक विनोद बिहारी महतो अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव रहे. राजनीतिक हालात बदले और 1984 में निर्मल महतो जेएमएम के अध्यक्ष बने. निर्मल महतो के बाद 1987 में शिबू सोरेन ने कमान संभाली और करीब 38 वर्षों तक पार्टी के अध्यक्ष रहे.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का गठन के पीछे अलग राज्य की लड़ाई को तेज करना था. शिबू सोरेन के नेतृत्व में आंदोलन ने गति पकड़ी. शिबू सोरेन ने संताल से लेकर, कोयलांचल और कोल्हान की यात्रा कर कार्यकर्ताओं के साथ खून-पसीना बहाया. आंदोलन के लिए हर घर से एक मुट्ठी चावल मांगा. लोगों ने साथ में चवन्नी और अठन्नी भी दिए, ताकि झारखंड राज्य की लड़ाई में उसका उपयोग हो सके.

जेएमएम का गठन 1972 में भले ही औपचारिक हो गया था, लेकिन भारत निर्वाचन आयोग से जेएमएम को निबंधित पार्टी का दर्जा 1980 में मिला. 1980 में ही शिबू सोरेन दुमका लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए, वहीं पहले चुनाव में ही जेएमएम को 11 सीटों पर जीत मिली. 1990 में जेएमएम ने 19 सीटें हासिल कर लालू प्रसाद के नेतृत्व में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लेकिन 1995 में जेएमएम को झटका मिला और सिर्फ 10 सीटें मिली.  2000 के चुनाव में जेएमएम के 12 विधायक थे. जबकि अलग झारखंड गठन के बाद हुए पहले चुनाव में जेएमएम को 17 सीटें मिली.

2009 के चुनाव में भी सीटों का इजाफा हुआ और जेएमएम के 18 विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे. वर्ष 2014 में भी जेएमएम विधायकों की संख्या में एक बढ़ोतरी हुई, लेकिन सहयोगी दल कांग्रेस-आरजेडी के खराब प्रदर्शन के कारण जेएमएम गठबंधन की सरकार नहीं बन सकी. वर्ष 2019 में जेएमएम के 30 विधायक चुनकर आए और जेएमएम के नेतृत्व में सरकार बनी. इसके बाद 2024 के चुनाव में जेएमएम का शानदार प्रदर्शन रहा और 34 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में फिर से सरकार बनी.