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क्या झारखंड की राजनीति में सबकुछ ठीक या फिर ‘नया गेम’ शुरू?

Jharkhand Desk: इस एक लाइन ने पूरे झारखंड में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया. वजह भी साफ थी- बिहार चुनाव के दौरान सीट शेयरिंग को लेकर झामुमो और महागठबंधन में जारी तनातनी ने पहले ही संकेत दे दिया था कि रिश्तों में दरार गहरी हो रही है...
 
HEMANT SOREN

Jharkhand Desk: अब नया बम झारखंड में हेमंत अब जीवंत होंगे… 14 नवंबर को बिहार चुनाव परिणाम के तीसरे दिन 17 नवंबर को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक ने सोशल मीडिया पर यह पोस्ट किया था. उस समय से ही यह कयास लगने लगे थे कि संभव है कि झारखंड में कुछ राजनीतिक उथल-पुथल हो. इस एक लाइन ने पूरे झारखंड में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया. वजह भी साफ थी- बिहार चुनाव के दौरान सीट शेयरिंग को लेकर झामुमो और महागठबंधन में जारी तनातनी ने पहले ही संकेत दे दिया था कि रिश्तों में दरार गहरी हो रही है. बिहार सीमा से लगी 12 सीटों पर लड़ने का दावा करने वाला झामुमो जब सीटें नहीं मिलीं तो उसने सीधा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. तब से ही चर्चा थी कि – बिहार की हार, झारखंड की राजनीति बदल देगी! इसकी पृष्ठभूमि बनी और सियासी कहानी क्रमवार बढ़ती गई है.

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बिहार में हार… और झारखंड में वार?

दरअसल, इसकी वजह बिहार चुनाव के दौरान से ही दिख रही थी, क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर जिस तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा और महागठबंधन के दलों में समन्वय की कमी दिखी, वह कुछ तो संकेत कर रही थी. बिहार झारखंड सीमा से लगी 12 सीटों पर झामुमो चुनाव लड़ने का दावा कर रहा था तो दूसरी ओर महागठबंधन की ओर से झामुमो के लिए किसी भी प्रकार की तवज्जो नहीं देना, इसकी पृष्ठभूमि तैयार करता हुआ दिखा. बाद में यह भी चर्चा हुई कि जेएमएम को 3 सीटें दिए जाने पर सहमति बन गई है. लेकिन, तभी खबर आई कि झामुमो ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है. महागठबंधन में सीटें नहीं मिलने पर जेएमएम ने उम्मीदवार खड़े नहीं किए और बिहार चुनाव बाद झारखंड में गठबंधन को लेकर समीक्षा यानी रिव्यू की बात कही थी. बिहार में चुनाव हुए फिर परिणाम भी आए और महागठबंधन की करारी हार हुई. इसके बाद अजय आलोक के इस पोस्ट ने झारखंड में सियासी सरगर्मी भी तेज कर दी.

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इसके बाद तो भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की लगातार चुप्पी और फिर महागठबंधन को लेकर हेमंत सोरेन की लंबी खामोशी और संशय के माहौल में पत्नी कल्पना सोरेन के साथ दिल्ली दौरा और वहां कथित तौर पर भाजपा नेताओं से गुप्त मुलाकात… जाहिर है कयासों ने सियासी कहानी गढ़ दी है. दरअसल, इसकी पृष्ठभूमि भी साफ-साफ दिख रही है क्योंकि, पिछले कुछ दिनों से हेमंत सोरेन और कांग्रेस की दूरी साफ-साफ दिख रही है. मुख्यमंत्री का सरकार आपके द्वार कार्यक्रम में उपस्थित नहीं होना और कार्यक्रम कैंसल होना भी कुछ तो संकेत कर रहा था. बता दें कि पिछले साल इसी कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री जिला-जिला जाते थे और जिक्र करते थे कि सरकार AC कमरे से नहीं गांव से चल रही है, पर इस बार किसी जिले में मुख्यमंत्री का कार्यक्रम नहीं हुआ.

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बात और आगे तब बढ़ती दिखी जब दुमका में फ्लाईंग इंस्टिट्यूट के उद्घाटन कार्यक्रम के मौके पर सीएम हेमंत सोरेन के मंच पर सहयोगी कंग्रेस एवं राजद के मंत्री और विधायक नदारद रहे. बता दें कि इससे पहले महागठबंधन में जब भी मुख्यमंत्री ने सरकारी कार्यक्रम किया तो दोनों दल के मंत्री मौजूद रहते थे. इसके आगे की कहानी बढ़ी तो मोरहाबादी मैदान में नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम के पोस्टर से राजद और कांग्रेस के नेताओं के पोस्टर नहीं लगे थे.पोस्टर नहीं लगने के बाद कांग्रेस और राजद के कुछ नेताओं के बीच यह बात चर्चा का विषय रही. इसके बाद तो झारखंड में इस सियासी सस्पेंस को और मजबूत किया मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की चुप्पी और उनके दिल्ली दौरे ने.

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पत्नी कल्पना सोरेन के साथ हेमंत सोरेन का दिल्ली में कई दिनों तक रहना और वहां भाजपा नेताओं के साथ कथित गोपनीय मुलाकातों की खबरें, गठबंधन में असहजता के संकेत देती दिख रही हैं. उसके बाद सरकार-आपके-द्वार जैसे बड़े कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी, दुमका फ्लाइंग इंस्टिट्यूट के मंच से कांग्रेस-राजद के नेताओं की दूरी और सरकारी पोस्टरों से सहयोगियों की गायब तस्वीरों ने सवालों को और गहरा कर दिया. अब परिस्थिति इस मोड़ पर है कि सियासत सिर्फ अफवाहों पर नहीं चल रही, बल्कि घटनाएं खुद कहानी लिख रही हैं. फिलहाल स्थिति साफ नहीं है और न ही किसी स्तर पर आधिकारिक पुष्टि, लेकिन सत्ता गलियारों की भाषा बताती है कि झारखंड की राजनीति अगले कुछ दिनों शांत नहीं रहने वाली.