KARMA FESTIVAL 2025- भाई-बहन के सच्चे विश्वास का प्रतीक, पूरे झारखंड सहित राजधानी रांची में करमा पर्व को लेकर जबरदस्त उत्साह
Jharkhand Desk: करमा झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है. वैसे तो इस ख़ास पर्व को झारखंड ही नहीं बल्कि बिहार के अलावा ओडिशा, बंगाल, छत्तीसगढ़ और असम में आदिवासी समुदाय काफी धूमधाम से मनाते है. यह त्योहार ना केवल प्रकृति की पूजा का प्रतीक है बल्कि भाई-बहन के प्रेम और सामाजिक एकता का भी संदेश देता है. जैसे हम हर साल राखी के त्योहार को लेकर उत्सुक रहते हैं वैसे ही करमा त्योहार को लेकर भी हमारे अंदर उतनी ही उत्सुकता होती है.
कहते हैं पूरे आदिवासी समाज इसे सदियों से अपनी संस्कृति की धड़कन मानकर हर साल बड़ी धूमधाम से मनाते है. इस बार भी पूरे झारखंड के साथ-साथ राजधानी रांची में करमा पर्व को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है.

आस्था से जुड़ा भाई-बहन का अटुट पर्व
कहा जाता है भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला करमा पर्व, प्रकृति, आस्था और परंपरा का संगम है. करम देवता को धरती की उर्वरता और सुख-समृद्धि का देवता माना जाता है. महिलाएं और पुरुष करम वृक्ष की डाल की पूजा करते हैं और परिवार की खुशहाली और भाइयों की लंबी उम्र की कामना करते हैं. पूजा में बोए गए ‘जावा’ का विशेष महत्व होता है, जिसे अनाज और मिट्टी से तैयार किया जाता है और पूजा के बाद प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
कैसे की जाती है तैयारी
करमा पर्व से पहले गांव की महिलाएं और युवतियां घर-घर जाकर धान, मक्का, चना और गेहूं इकट्ठा करती हैं. इसी से जावा बोया जाता है. पर्व की रात करमा डाली की स्थापना होती है, जिसके चारों ओर गांव वाले एकत्र होकर गीत और नृत्य में भाग लेते हैं. महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं और पुरुष ढोल-मांदर की थाप पर थिरकते हैं. करमा गीतों में भाई-बहन का स्नेह, प्रकृति का महत्व और जीवन की खुशहाली का चित्रण पूरी तरह से झलकता है.

करमा कथा की परंपरा
करमा पर्व पर करमा और धरमा की कथा सुनाई जाती है. माना जाता है कि करमा जब घर छोड़कर चला गया तो गांव पर विपत्तियां टूट पड़ीं. उसका भाई धरमा उसे खोजकर घर लाया और करमा ने सबको कारण और समाधान बताया. इसके बाद करमा डाली की पूजा से गांव में सुख-शांति लौट आई. यही वजह है कि आज भी करमा कथा सुनना और सुनाना इस पर्व का अहम हिस्सा है.
भाई-बहन का अटूट प्रेम का प्रतीक करमा पर्व
करमा पर्व को भाई-बहन के प्रेम का पर्व भी कहा जाता है. बहनें इस दिन करम देवता से अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हैं. बदले में भाई अपनी बहनों को उपहार देकर रिश्ते की मजबूती का इजहार करते हैं. यह परंपरा राखी की तरह ही भाई-बहन के बंधन को मजबूत करती है. वहीं इस साल पूरे झारखंड में करमा पर्व को लेकर व्यापक तैयारियां की गई हैं. राजधानी रांची में कई सांस्कृतिक आयोजन होंगे, जिनमें करमा नृत्य, गीत और सामूहिक पूजा मुख्य आकर्षण होंगे.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी रांची में आयोजित कई कार्यक्रमों में शामिल होंगे और शुभकामनाएं देंगे. झारखंड सरकार की ओर से भी यह संदेश दिया गया है कि करमा पर्व ना केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है.
करमा त्योहार को लेकर सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
करमा पर्व सामूहिकता, भाईचारे और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है. वृक्ष की पूजा से यह पर्व हमें प्रकृति के महत्व की याद दिलाता है. आदिवासी समाज की यह अनोखी परंपरा आज पूरे समाज में लोकप्रिय हो रही हैं. शहरी क्षेत्रों में भी लोग उत्साहपूर्वक करमा पर्व मना रहे हैं और नई पीढ़ी को इसकी परंपराओं से जोड़ रहे हैं.
संकट में प्रकृति
जिस तरह से हम आधुनिक चीज़ों में उलझते जा रहे हैं और प्रकृति संकट में डुबती चली जा रही है. वैसे वैसे सामाजिक चुनौतियां बढ़ती जा रही है, और यही करमा पर्व हमें प्रकृति की रक्षा और आपसी सौहार्द की सीख देता है. यही वजह है कि यह त्योहार केवल आदिवासी समाज तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राज्य की साझा सांस्कृतिक पहचान बन चुका है. करमा पर्व आज भी वही उल्लास, उमंग और सामाजिक एकता का प्रतीक है, जैसा सदियों पहले था. यही कारण है कि हर साल यह पर्व लोगों के दिलों में नई ऊर्जा और आशा का संचार करता है.







