साल 2025 की बड़ी घटनाओं को पलटकर देखें..जहां ये साल राज्यवासियों के लिए हेमंत सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लिया तो दूसरी तरफ राजनीति के मैदान में सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव भी मिला देखने को
Jharkhand Desk: साल 2025 अब अपने आख़िरी पड़ाव पर है. ऐसे में अब बीते साल भर की बड़ी घटनाओं को पलटकर देख रहे हैं इसी कड़ी में अगर बात झारखंड की करें तो साल 2025 राज्यवासियों के लिए काफी अहम रहा है. हेमंत सरकार 2.0 ने अपनी दूसरे पारी के पहले साल में राज्य के लोगों के लिए कई ऐतिहासिक निर्णय लिए तो वहीं राजनीति के मैदान में सत्ता और विपक्ष के बीच लगातार टकराव भी देखने को मिला. एक तरफ राज्य स्थापना दिवस जैसे आयोजनों ने एकता का संदेश दिया, तो दूसरी ओर डीजीपी विवाद ने सरकार की कार्यशैली और साख पर सवाल खड़े कर दिए. विधानसभा के भीतर विपक्ष ने सरकार को हर मुद्दे पर घेरा. बालू संकट, भर्ती घोटाले, केंद्र से फंड को लेकर खींचतान, ईडी और एसीबी की कार्रवाई समेत कई मुद्दे साल भर सुर्खियों में रहे और इसपर जमकर सियासत भी हुई.

भाजपा संगठन में उठा-पटक, बाबूलाल पर भरोसा बरकरार
विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर सिर्फ नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी जाएगी, लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी पर भरोसा जताते हुए उन्हें पूरे साल दोनों पदों पर बनाए रखा. इसी बीच चुनाव के दौरान आनन-फानन में कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए रवींद्र कुमार राय को पार्टी ने दायित्व मुक्त कर दिया. अक्टूबर महीने में राज्यसभा सांसद आदित्य साहू को एक झटके में कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गई. आदित्य साहू पहले से ही राज्यसभा सांसद होने के साथ-साथ पार्टी के प्रदेश कार्यालय महामंत्री की भूमिका निभा रहे थे.

रघुवर दास की भाजपा में वापसी
ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सक्रिय राजनीति में वापसी की. 10 जनवरी को उन्होंने दोबारा भाजपा की सदस्यता ली. इसके बाद वे काफी सक्रिय नजर आए. प्रदेश से लेकर कई जिलों का दौरा किया और समय-समय पर प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हेमंत सरकार पर हमला बोलते रहे.

घाटशिला उपचुनाव से निकाय चुनाव की राह साफ
घाटशिला उपचुनाव में एक बार फिर झामुमो ने जीत का परचम लहराया. पार्टी प्रत्याशी सोमेश सोरेन को जनता का भरपूर समर्थन मिला. वहीं चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा. भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी, लेकिन नतीजा शून्य रहा. इसी दौरान कोर्ट की फटकार के बाद नगर निकाय चुनाव का रास्ता भी साफ हो गया. ओबीसी आरक्षण तय हुआ और साल 2020 से लटके चुनाव को कराने की तैयारी शुरू हो गई. माना जा रहा है कि नए साल में स्थानीय सरकार की तस्वीर साफ होगी.

डीजीपी अनुराग गुप्ता बने सियासी टकराव की वजह
अप्रैल में सेवानिवृत्ति के बाद डीजीपी अनुराग गुप्ता को दो साल का एक्सटेंशन दिया गया, जिसे केंद्र सरकार ने असंवैधानिक करार दिया. बाबूलाल मरांडी ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. हालांकि कोर्ट के किसी अंतिम फैसले से पहले ही नवंबर में अनुराग गुप्ता ने इस्तीफा देकर विवाद को खत्म कर दिया. यह पूरा मामला पुलिस प्रशासन के राजनीतिकरण की मिसाल के रूप में देखा गया.

SIR को लेकर आदिवासी हितों की जंग
14 सितंबर को झारखंड में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर जबरदस्त सियासी घमासान छिड़ गया. सत्ता पक्ष ने इसे आदिवासी विरोधी बताते हुए वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की आशंका जताई. भाजपा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया और अवैध प्रवासियों से स्थानीय हितों को खतरा बताया.

कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक तनाव
सरहुल उत्सव के दौरान सिरमटोली सरना स्थल को लेकर सरकार और संगठनों के बीच कई दिनों तक तनातनी चली. फ्लाईओवर रैंप हटाने की मांग को लेकर रांची बंद बुलाया गया और काले झंडे दिखाए गए. मार्च महीने में हजारीबाग में धार्मिक जुलूस पर पथराव के बाद तनाव फैल गया. वहीं एसटी दर्जा की मांग को लेकर कुड़मी आंदोलन सुर्खियों में रहा. रेल टेका और डहर छेका आंदोलनों ने कुड़मी और आदिवासी समाज को आमने-सामने ला खड़ा किया. इसके जवाब में आदिवासी संगठनों ने सिलसिलेवार रैलियां निकालीं.
![]()
आर्थिक संकट के आरोप और स्थापना दिवस का आयोजन
विपक्ष ने राज्य की वित्तीय स्थिति को गंभीर बताते हुए फंड की कमी से योजनाएं लटकने का आरोप लगाया. सरकार ने साफ कहा कि फंड की कोई कमी नहीं है. नवंबर में राज्य के 25वें स्थापना दिवस पर कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया. हालांकि विपक्ष ने इसे दिखावा बताया. स्थापना दिवस के मौके पर “आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार” अभियान को एक बार फिर चलाया गया.

झामुमो की कमान पूरी तरह हेमंत सोरेन के हाथ
साल 2025 झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए भी खास रहा. पार्टी के 13वें महाधिवेशन में सर्वसम्मति से और शिबू सोरेन के आशीर्वाद से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को झामुमो का केंद्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. इस महाधिवेशन में गुरुजी शिबू सोरेन को पार्टी का संरक्षक घोषित किया गया और कार्यकारी अध्यक्ष का पद समाप्त कर दिया गया. इस फैसले के साथ ही पार्टी संगठन में एक नए दौर की शुरुआत मानी जा रही है.







