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घाटशिला के युवाओं की राय सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे, “भले ही दोनों बड़ी पार्टियां जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं...लेकिन इस बार हम...

Jharkand Desk: जो घाटशिला के ही रहने वाले हैं, कहते हैं – “इस बार लोग सहानुभूति वोट की बात कर रहे हैं, लेकिन हम युवाओं के लिए असली मुद्दा काम है. यहां पढ़ाई के बाद नौकरी का कोई तरीका नहीं है. ज्यादातर युवाओं को बाहर ही जाना पड़ता है. इस बार हम वही चुनेंगे जो काम पर ध्यान दे.”
 
JHARKHAND POLITICS
Jharkand Desk: झारखंड की राजनीति इन दिनों गर्म है. स्वास्थ्य मंत्री स्वर्गीय रामदास सोरेन के निधन के बाद खाली हुई घाटशिला विधानसभा सीट पर अब सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है. 11 नवंबर को होने वाले इस उपचुनाव को लेकर सियासी गलियारों में गहमा-गहमी चरम पर है. एक ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से स्वर्गीय मंत्री के बेटे सोमेश चंद्र सोरेन मैदान में हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन पर दांव लगाया है. वहीं, तीसरे मोर्चे के रूप में जेएलकेएम से रामदास मुर्मू भी युवाओं के बीच तेजी से पसंद हो रहे हैं. 

घाटशिला विधानसभा सीट को लेकर घाटशिला के युवाओं की राय सुनकर राजनीतिक जानकार भी हैरान रह गए. यहां का युवा अब सिर्फ पार्टी नहीं, बल्कि काम और विकास को अहिमयत दे रहा है. सुजल, जो विशाखापट्टनम में दवा क्षेत्र में काम कर रहे हैं, बताते हैं – “भले ही दोनों बड़ी पार्टियां जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं, लेकिन बाबूलाल सोरेन ने सालों से यहां के खेल प्रोग्राम जैसे फुटबॉल और क्रिकेट मुकाबले को पैसे दिए हैं. युवाओं के बीच उनकी यह छवि काफी मजबूत हुई है, जिसके चलते उन्हें अच्छा समर्थन मिल सकता है.”

युवाओं के लिए यह है असली मुद्दा
वहीं शिवम, जो घाटशिला के ही रहने वाले हैं, कहते हैं – “इस बार लोग सहानुभूति वोट की बात कर रहे हैं, लेकिन हम युवाओं के लिए असली मुद्दा काम है. यहां पढ़ाई के बाद नौकरी का कोई तरीका नहीं है. ज्यादातर युवाओं को बाहर ही जाना पड़ता है. इस बार हम वही चुनेंगे जो काम पर ध्यान दे.”

दूसरी ओर जॉय का मानना है कि इस बार का चुनाव बहुत अनिश्चित है. “हर दिन लोगों की सोच बदल रही है. कोई पार्टी काम की बात कर रही है, तो कोई विकास की. तीसरे मोर्चे के रूप में जेएलकेएम भी युवाओं के बीच अच्छा काम कर रही है.”

11 नवंबर को होगा फैसला
वहीं वरुण, जो घाटशिला बाजार इलाके के रहने वाले हैं, कहते हैं – “स्वर्गीय रामदास सोरेन ने यहां की सड़कों और बाजारों की हालत सुधारने का काम किया था. इस कारण लोगों में उनके बेटे सोमेश चंद्र सोरेन के प्रति भाव जुड़ा है. लेकिन चुनाव के अंतिम दिनों तक कहना मुश्किल है कि जनता किसे चुनती है.”

इस तरह घाटशिला की जनता और खासकर युवा वोटर इस बार की अहम शक्ति बनकर उभरे हैं. हर पार्टी की नजर उन्हीं पर टिकी है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भावनाएं जीतती हैं या काम की उम्मीदें  – 11 नवंबर को इसका फैसला जनता के वोट से होगा.