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Chhath Sandhya Arghya: छठ महापर्व का आज तीसरा दिन, जानें-सूर्य को संध्या अर्घ्य देने के नियम

Chhath Puja Special 2025: छठ के महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर से हो चुकी है और आज इस त्योहार का तीसरा दिन है. इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और भारत में छठ पूजा को आस्था का महापर्व कहा जाता है. यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रतीक है. 
 
CHHATH PUJA 2025

Chhath Puja Special 2025: छठ के महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर से हो चुकी है और आज इस त्योहार का तीसरा दिन है. इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और भारत में छठ पूजा को आस्था का महापर्व कहा जाता है. यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रतीक है. उत्तर भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है. छठ पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह प्रकृति, शुद्धता और आत्मसंयम का भी अद्भुत उदाहरण है. 

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छठ पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है. माना जाता है कि इस व्रत की शुरुआत त्रेतायुग में हुई थी, जब माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य देव की उपासना की थी. एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में कुंती पुत्र कर्ण, जो सूर्य पुत्र थे, प्रतिदिन सूर्यदेव की आराधना करते थे, यही छठ व्रत की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है. यह पूजा सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद से आरोग्यता व समृद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती है.

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अपने परिवार की खुशहाली की उपासना-कामना की जाती है. यह त्योहार छठी मैय्या और सूर्यदेव को समर्पित किया जाता है, जो कि कार्तिक और चैत्र दोनों मास में मनाया जाता है. छठ पूजा का यह व्रत संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है. लेकिन, सवाल ये उठता है कि इस व्रत में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है. चलिए जानते हैं.

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डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व

छठ महापर्व में डूबते सूर्य को अर्घ्य देना कृतज्ञता और संतुलन का प्रतीक माना जाता है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और जीवन के हर उतार-चढ़ाव को स्वीकार करने की भावना दर्शाता है. मान्यताओं के अनुसार, यह अर्घ्य सूर्यदेव की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित है, जो कि सूर्य की अंतिम किरण होती है. 

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शाम को सूर्य को अर्घ्य देने की विधि

छठ पूजा के तीसरे दिन शाम को सभी व्रती महिलाएं इकट्ठी होकर सूर्य देव की पूजा-उपासना करती हैं. छठ पूजा में शाम का अर्घ्य बहुत पवित्र माना जाता है. इस समय व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान सूर्य और छठी मइया का आभार व्यक्त करती हैं. सूर्यास्त से पहले व्रती स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं और बांस की सूप में फल, ठेकुआ, नारियल, दीपक और गन्ना रखती हैं. 

फिर, नदी या घर के आंगन में जल से भरे पात्र के सामने खड़ी होकर सूर्य देव की दिशा में मुख करके 'ऊं सूर्याय नमः' मंत्र के साथ अर्घ्य देती हैं. इस दौरान छठी मइया के भजन गाए जाते हैं और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. अर्घ्य के बाद व्रती पूरी रात जागरण करती हैं और अगली सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी करती हैं.

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सूर्य को अर्घ्य देने का सही तरीका (Surya Arghya Niyam)

सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सबसे अच्छा पात्र है तांबे के बर्तन. अगर तांबे के पात्र से सूर्य को अर्घ्य दिया जाए तो उससे एक तरीके की ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो शरीर के लिए बहुत अच्छी होती है. सूर्य को अर्घ्य देने का सबसे अच्छा समय होता है सूर्योदय. आप चाहे तो सूर्य को अर्घ्य सूर्योदय के एक घंटे बाद भी दे सकते हैं. 

सबसे पहले सूर्य को जल अर्पित किए जाने वाले जल में लाल चंदन, सिंदूर और लाल फूल को मिलाएं. अर्घ्य देते समय सूर्य की किरणों पर भी ध्यान देना चाहिए कि किरणें हल्की हो न कि बहुत तेज. अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र ‘ओम सूर्याय नमः’ का 11 बार जप करना चाहिए. इसके बाद सूरज की ओर मुंह करते हुए 3 बार परिक्रमा करनी चाहिए. सूर्य को अर्घ्य देने के लिए केवल तांबे के बर्तन या ग्लास का ही इस्तेमाल करना चाहिए. इस दौरान गायत्री मंत्र का भी जाप करना भी शुभ माना जाता है. सूर्य पूर्व दिशा में निकलता है इसलिए अर्घ्य भी उसी दिशा में अर्पित करना फलदायी है.