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भारत अपने बाघों की गणना कैसे करता है? कैमरा ट्रैप बताएंगे टाइगर की असल पहचान...जानें ये फॉर्मूला...

National Tiger Census 2026: इस सर्वे के दौरान देशभर के जंगलों में कैमरा ट्रैप, पगमार्क, डीएनए सैंपल, ड्रोन और सैटेलाइट तकनीक की मदद से बाघों की संख्या, उनके आवास और शिकार प्रजातियों की स्थिति का विस्तृत डेटा जुटाया जाएगा...
 
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National Tiger Census 2026: राष्ट्रीय बाघ गणना ऑल-इंडिया टाइगर एस्टीमेशन प्रक्रिया है, जिसे हर चार वर्ष में आयोजित किया जाता है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा वाइल्डलाइफ सर्वे माना जाता है. इस सर्वे के दौरान देशभर के जंगलों में कैमरा ट्रैप, पगमार्क, डीएनए सैंपल, ड्रोन और सैटेलाइट तकनीक की मदद से बाघों की संख्या, उनके आवास और शिकार प्रजातियों की स्थिति का विस्तृत डेटा जुटाया जाएगा. NTCA और WII मिलकर इसका संचालन करेंगे, जिसमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तराखंड जैसे प्रमुख बाघ राज्यों पर विशेष फोकस रहेगा. साल राष्ट्रीय बाघ गणना -2022 के अनुसार भारत में 3,167 बाघ दर्ज किए गए थे, और 2026 की गणना यह बताएगी कि संरक्षण प्रयास कितने सफल रहे.

एक बार फिर टाइगर स्टेट बनने तैयार एमपी, All India Tiger Estimation 2026,  जानें पूरी प्रक्रिया

साल 2026 में होने वाली राष्ट्रीय बाघ गणना को लेकर पीलीभीत टाइगर रिजर्व में तैयारियां तेज हो गई है. वन महकमे से जुड़े लोग तो इस जटिल प्रक्रिया को समझते हैं, मगर शायद ही आम लोग इसके बारे में कुछ जानते होंगे. यह प्रक्रिया जनगणना जितनी सरल नहीं होती है. दरअसल, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा हर 4 वर्षों के अंतराल में राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की संख्या का अनुमान लगाया जाता है, आम बोलचाल की भाषा में इसे बाघ गणना भी कहते हैं.

कैसे होती है बाघों की गिनती?
एनटीसीए द्वारा वर्ष 2022 में बाघ गणना की गई थी, ऐसे में वर्ष 2026 में इस प्रक्रिया को पूरा किया जाना है. मगर बाघों समेत अन्य वन्यजीवों की गिनती करना इंसानों की गिनती जितना आसान नहीं होता है, यह अपने आप में बेहद जटिल प्रक्रिया होती है. बाघों की गणना करने की प्रक्रिया, जनगणना जितनी सरल नहीं होती. इसके लिए घने जंगलों के बीच बाघों की संभावित मौजूदगी वाले स्थानों में मौजूद पेड़ों पर ठीक आमने-सामने 2 ट्रैप कैमरे लगाए जाते हैं, जिनमें लगा सेंसर किसी भी वन्यजीव के आने-जाने पर उनकी तस्वीर कैद कर लेता है.इसके बाद एक तय समय तक कैमरे में कैद की गई लाखों तस्वीरों में से बाघों की तस्वीरों को अलग किया जाता है. बाघों की धारियां, मानवों के फिंगरप्रिंट जैसी यूनिक होती हैं. बाघों के शरीर पर मौजूद धारियों की तस्वीरों के आधार पर विशेषज्ञ संख्या का अनुमान लगाते हैं. वहीं कैमरे में कैद हुई अन्य जानवरों की गिनती भी इसी आधार पर ही की जाती है.

कैसे होती है बाघों की गिनती?
एनटीसीए द्वारा वर्ष 2022 में बाघ गणना की गई थी, ऐसे में वर्ष 2026 में इस प्रक्रिया को पूरा किया जाना है. मगर बाघों समेत अन्य वन्यजीवों की गिनती करना इंसानों की गिनती जितना आसान नहीं होता है, यह अपने आप में बेहद जटिल प्रक्रिया होती है. बाघों की गणना करने की प्रक्रिया, जनगणना जितनी सरल नहीं होती. इसके लिए घने जंगलों के बीच बाघों की संभावित मौजूदगी वाले स्थानों में मौजूद पेड़ों पर ठीक आमने-सामने 2 ट्रैप कैमरे लगाए जाते हैं, जिनमें लगा सेंसर किसी भी वन्यजीव के आने-जाने पर उनकी तस्वीर कैद कर लेता है.इसके बाद एक तय समय तक कैमरे में कैद की गई लाखों तस्वीरों में से बाघों की तस्वीरों को अलग किया जाता है. बाघों की धारियां, मानवों के फिंगरप्रिंट जैसी यूनिक होती हैं. बाघों के शरीर पर मौजूद धारियों की तस्वीरों के आधार पर विशेषज्ञ संख्या का अनुमान लगाते हैं. वहीं कैमरे में कैद हुई अन्य जानवरों की गिनती भी इसी आधार पर ही की जाती है.

पीटीआर में लगाए गए थे 700 अधिक कैमरे
2022 की राष्ट्रीय बाघ गणना के दौरान, PTR को 365 ग्रिड में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक 2 वर्ग किलोमीटर को कवर करता था. वहीं दुधवा टाइगर रिजर्व व इसमें शामिल (दुधवा नेशनल पार्क, कतर्नियाघाट और किशनपुर) सहित, 887 ग्रिड में विभाजित किया गया था. बाघों की तस्वीरें लेने के लिए प्रत्येक ग्रिड में दो कैमरा ट्रैप लगाए गए थे. बाघों के शिकार जिसमे विशेष रूप से बड़े खुर वाले जानवरों का आकलन करने के लिए दुधवा में 114 और पीटीआर में 54 ट्रांसेक्ट लाइन स्थापित की गई थी.