INDIA INEQUALITY REPORT 2026: विकास के नारों के बीच बढ़ती खाई, भारत बना आय असमानता का सबसे बड़ा उदाहरण
Patna Desk: देश में विकास, आत्मनिर्भर भारत और विश्वगुरु बनने की राजनीतिक चर्चाओं के बीच वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2026 ने एक ऐसी तस्वीर पेश की है, जो इन दावों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत इस समय आय और संपत्ति की असमानता के मामले में दुनिया में शीर्ष पर पहुंच चुका है। अमीर और गरीब के बीच की दूरी इतनी तेज़ी से बढ़ी है कि कभी लोकतंत्र की रीढ़ माने जाने वाला मिडिल क्लास अब सिमटकर लगभग हाशिये पर आ गया है।
रिपोर्ट बताती है कि 1980 के दशक में भारत का मध्यम वर्ग अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में था, लेकिन बीते चार दशकों की आर्थिक यात्रा के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। वर्ष 2025 तक आते-आते देश की लगभग पूरी आबादी निचले 50 प्रतिशत आय वर्ग में सिमटती नजर आ रही है। यह केवल आंकड़ों का बदलाव नहीं, बल्कि उस आम नागरिक की कहानी है, जिसकी आमदनी महंगाई, बेरोजगारी और असमान आर्थिक नीतियों के दबाव में लगातार कमजोर होती चली गई।
कुछ हाथों में सिमटती जा रही दौलत
दूसरी ओर, संपत्ति का बड़ा हिस्सा बेहद सीमित वर्ग के पास केंद्रित होता जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के शीर्ष 10 प्रतिशत अमीरों के पास कुल संपत्ति का करीब 65 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि केवल टॉप 1 प्रतिशत आबादी अकेले 40 प्रतिशत दौलत पर काबिज़ है। आय वितरण की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है—शीर्ष 10 प्रतिशत लोग राष्ट्रीय आय का 58 प्रतिशत हिस्सा अर्जित कर रहे हैं, वहीं निचले 50 प्रतिशत लोगों को केवल 15 प्रतिशत आय से संतोष करना पड़ रहा है। टॉप 1 प्रतिशत की आय हिस्सेदारी 22.6 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।
चमकदार ग्रोथ बनाम आम आदमी की सच्चाई
यह रिपोर्ट अर्थशास्त्री लुकास चांसल, थॉमस पिकेटी सहित दुनिया भर के 200 से अधिक शोधकर्ताओं के आंकड़ों पर आधारित है। अर्थशास्त्री जयति घोष और नोबेल पुरस्कार विजेता जोसेफ स्टिग्लिट्ज के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति औसत सालाना आय करीब 6,200 यूरो, जबकि औसत संपत्ति लगभग 28,000 यूरो है। ये आंकड़े बताते हैं कि तेज़ आर्थिक वृद्धि के दावों के बावजूद आम नागरिक की आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर बनी हुई है।
महिलाओं की भागीदारी अब भी चिंता का विषय
रिपोर्ट का एक और गंभीर पहलू महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी से जुड़ा है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी केवल 15.7 प्रतिशत है और बीते एक दशक में इसमें कोई ठोस सुधार देखने को नहीं मिला है। यह स्थिति जेंडर असमानता को और गहरा करती है।
असमानता बढ़ी तो खतरे में पड़ेगी स्थिरता
डीएवी कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष डॉ. रामानंद पाण्डेय का कहना है कि यदि आय और अवसरों की यह असमानता इसी तरह बढ़ती रही, तो सामाजिक संतुलन और आर्थिक स्थिरता दोनों पर खतरा पैदा हो सकता है। उनके मुताबिक, वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2026 एक साफ चेतावनी है अगर दौलत और अवसरों का वितरण संतुलित नहीं हुआ, तो विकास का सपना केवल भाषणों और नारों तक ही सीमित रह जाएगा।







