राष्ट्रीय गीत को धर्म और राजनीति से जोड़ने पर तीखी प्रतिक्रिया: वंदे मातरम विवाद में सरकार को संयम और देश को संवाद की सलाह, 15 अगस्त तक जागरूकता अभियान चलाने की मांग
National News: केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा वंदे मातरम का विरोध करने वालों की सूची जारी किए जाने के बाद पूरे देश में नई बहस शुरू हो गई है। कई सामाजिक संगठनों और विशेषज्ञों ने इसे एक खास समुदाय से जोड़कर देखने पर कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि राष्ट्रीय गीत पर अनावश्यक राजनीतिक ताप पैदा किया जा रहा है।
धार्मिक बनाम राष्ट्रभाव—मुद्दा कहां भटका?
प्रतिक्रिया देने वालों का कहना है कि वंदे मातरम का विरोध धीरे-धीरे धार्मिक छाया में ढलता जा रहा है, जो किसी भी रूप में देशहित में नहीं है। उनका स्पष्ट मत है कि यह गीत मातृभूमि के सम्मान का प्रतीक है, न कि किसी धर्म या संप्रदाय से जुड़ा विचार।
“या तो कार्रवाई करें, या राजनीति बंद करें”
वक्तव्य में दो टूक कहा गया है कि यदि कोई समूह या व्यक्ति कानून का उल्लंघन कर रहा है तो सरकार कानूनी प्रावधानों के तहत कार्रवाई करे। लेकिन यदि मामला सिर्फ राजनीतिक बहस का आधार है, तो इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। कहा गया कि किसी भी गीत, कविता या विचार को जबरन लागू करना लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत है।
जागरूकता बनाम दंड—कौन बेहतर रास्ता?
समूहों ने जोर देकर कहा है कि वंदे मातरम को धार्मिक चश्मे से देखने का नजरिया बदलने की जरूरत है। दंडात्मक कदमों की जगह संवाद, समझ और जन-जागरूकता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि लोग इसे राष्ट्र के गौरव के रूप में समझें, न कि किसी दबाव के रूप में।
15 अगस्त तक संवाद-श्रृंखला की सलाह
सरकार को सुझाव दिया गया है कि स्वतंत्रता दिवस तक देशभर में “वंदे मातरम रात्रि”, सांस्कृतिक कार्यक्रम, यात्राएं और सामूहिक गान के आयोजन किए जाएं।
लेकिन साफ चेतावनी भी दी गई है कि कोई भी कार्यक्रम लोगों पर थोपने की कोशिश न करे और न ही इसमें साम्प्रदायिक रंग शामिल होने पाए।
“जबरदस्ती होगी तो समर्थन नहीं”
वक्तव्य के अंत में स्पष्ट कहा गया है कि वंदे मातरम के प्रति सम्मान अटूट है, लेकिन इसे जबरदस्ती, राजनीति या धार्मिक दबाव से जोड़ने की किसी भी कोशिश का समर्थन नहीं किया जा सकता।
चर्चा अभी जारी है, लेकिन यह संदेश साफ है कि समाधान टकराव में नहीं, बल्कि सहमति और संवेदनशील संवाद में है।







