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स्विट्जरलैंड में महिलाओं के बुर्का और हिजाब पर प्रतिबंध, वारिस पठान बोले- भारत में हमें अपने संविधान पर गर्व है, जो पहनावे का स्वतंत्रता देता

 

बुर्का, नकाब, हिजाब, चादर, अबाया... मुस्लिम महिलाओं के शरीर को ढकने वाले ये कपड़े अकसर विवादों के केंद्र में रहे हैं. कहीं इस तरह के इस्लामिक ड्रेस को कोड को सख्ती से लागू करने की बात सामने आती है तो कहीं इन पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. हाल ही में यूरोपीय देश स्विटजरलैंड ने मुस्लिम महिलाओं के बुर्का और नकाब पहनने पर रोक लगा दी. अब वहां की मुस्लिम महिलाएं सार्वजनिक जगहों और आम जनता के पहुंच वाली निजी इमारतों में बुर्का नहीं पहन सकतीं. अगर वो 'बुर्का बैन' कानून का उल्लंघन करती हैं तो उन्हें जुर्माने के रूप में 1,000 स्विस फ्रैंक (94,651.06 रुपये) जुर्माना भरना होगा. 

स्विट्जरलैंड की 86 लाख की आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग 5 प्रतिशत है, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम निवासी तुर्की, बोस्निया और कोसोवो जैसे देशों से आए हैं. स्विटजरलैंड के University of Lucerne में एक स्टडी की गई थी जिसमें बताया गया कि देश में नकाब पहनने वाली महिलाओं की संख्या बेहद कम है. वहां की गिनी-चुनी महिलाएं ही नकाब पहनती हैं 

बुर्का और हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर एआईएमआईएम नेता वारिस पठान ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने इसपर कहा कि स्विट्जरलैंड में डॉ. भीमराव अंबेडकर की ओर से तैयार किया गया संविधान लागू नहीं है, लेकिन भारत में हमें अपने संविधान पर गर्व है जो हमें अपने पहनावे का स्वतंत्रता देता है.

वारिस पठान ने ये स्पष्ट किया कि भारत में सभी नागरिक को अपनी इच्छानुसार कपड़े पहनने का अधिकार है. उन्होंने कहा "हमारे देश में 'फ्रीडम ऑफ च्वाइस' है जहां हर व्यक्ति को अपनी पसंद का पहनावा चुनने की स्वतंत्रता है. स्विट्जरलैंड में क्या होता है इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. हमारे देश में संविधान है और हमें उसी का पालन करना चाहिए." उन्होंने ये भी कहा कि स्विट्जरलैंड का मामला भारत के लिए मायने नहीं रखता.

प्लेसिज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के बारे में वारिस पठान ने कहा कि ये कानून पूरी तरह से लागू होना चाहिए. इस कानून का उद्देश्य था कि 1947 तक के धार्मिक स्थल अपने मूल रूप में बने रहें और उनका स्वरूप बदला न जाए. उन्होंने कहा "हमारा मानना है कि ये कानून सिर्फ धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए था और इसका पालन करना जरूरी है." पठान ने ये भी कहा कि अगर इस कानून का सही तरीके से पालन होता है तो अराजकता और धार्मिक विवादों की घटनाएं रुक सकती हैं.