जहाँ हालात हार मान जाते हैं, वहीं बिहार के खिलाड़ी जीत लिखते हैं: एक ने अपंगता को हराया, दूसरी ने गरीबी को- शम्स आलम और रानी कुमारी की जीत ने रचा नया इतिहास
Patna Desk: संघर्ष जब हौसले से टकराता है, तब सिर्फ जीत नहीं मिलती, इतिहास बनता है। बिहार के दो खिलाड़ी- पैरा स्विमर शम्स आलम और ड्रैगन बोट खिलाड़ी रानी कुमारी आज इसी सच्चाई के सबसे मजबूत उदाहरण हैं। शारीरिक बाधा, गरीबी और सामाजिक सीमाओं को पीछे छोड़ते हुए इन दोनों ने राष्ट्रीय मंच पर बिहार का नाम रोशन किया है और यह साबित किया है कि अब बिहार में खेल सिर्फ शौक नहीं, बल्कि भविष्य बन रहा है।
गंगा की लहरों में लिखी शम्स आलम की जीत की कहानी
मधुबनी जिले के राठोस गांव में जन्मे शम्स आलम का जीवन चुनौतियों से भरा रहा। बचपन से तैराकी के शौकीन शम्स बेहतर भविष्य की तलाश में मुंबई पहुंचे और वहां पढ़ाई के साथ खेल में खुद को साबित किया। मार्शल आर्ट में सफलता के बाद वे एशियाई खेलों के दावेदार माने जाने लगे, लेकिन तभी जिंदगी ने उन्हें सबसे बड़ी परीक्षा में डाल दिया। रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर के बाद सर्जरी हुई और वे पैराप्लेजिया से पीड़ित हो गए।
जहां अधिकतर लोग टूट जाते हैं, वहीं शम्स ने हार मानने से इनकार कर दिया। तैराकी उनके लिए खेल नहीं, बल्कि जिंदगी से लड़ने का हथियार बन गई।
2017 में खुले समुद्र में 8 किलोमीटर तैरकर उन्होंने विश्व रिकॉर्ड बनाया। 2019 में पोलैंड में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया। पटना में 14वें नेशनल तक्षशिला ओपन वाटर स्विमिंग के दौरान 13 किलोमीटर की ऐतिहासिक तैराकी कर एक और वर्ल्ड रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हुआ।
शम्स आलम को बिहार खेल रत्न, कर्ण इंटरनेशनल अवॉर्ड और बिहार टास्क फोर्स में नियुक्ति जैसे सम्मान मिले हैं। हैदराबाद में आयोजित 25वीं पैरा स्विमिंग चैंपियनशिप में दो स्वर्ण और दो रजत पदक जीतकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि सीमाएं शरीर की होती हैं, सपनों की नहीं। 2026 में वे ऑस्ट्रेलिया वर्ल्ड सीरीज में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
गरीबी से पदक तक: शेखपुरा की रानी कुमारी की उड़ान
शेखपुरा जिले के अरियरी प्रखंड के हुसैनाबाद गांव की रानी कुमारी की कहानी ग्रामीण बिहार की उन बेटियों की कहानी है, जो सीमित साधनों में भी बड़े सपने देखती हैं। दिहाड़ी मजदूर पिता और आर्थिक तंगी के बीच पली-बढ़ी रानी को खेल के लिए शुरुआत में ताने भी झेलने पड़े, लेकिन मैदान में उनके प्रदर्शन ने सबका नजरिया बदल दिया।
महाराष्ट्र के नांदेड़ में आयोजित 12वीं सीनियर नेशनल ड्रैगन बोट प्रतियोगिता में रानी ने चार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। बिहार टीम ने कुल 11 पदक जीते, जिनमें रानी की भूमिका बेहद अहम रही। प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी, दूसरे राज्य में अभ्यास का खर्च और कर्ज लेकर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना — इन सबके बावजूद रानी का आत्मविश्वास कभी कमजोर नहीं पड़ा।
आज रानी कुमारी उन बेटियों की प्रेरणा हैं, जो खेल को अब तक सिर्फ लड़कों का क्षेत्र मानती थीं।
बदलती सोच, उभरता नया बिहार
शम्स आलम और रानी कुमारी की कहानियां साफ संकेत देती हैं कि बिहार में खेल को लेकर सोच बदल रही है। सरकारी योजनाएं, स्कॉलरशिप, बेहतर प्रशिक्षण और ‘मेडल लाओ–नौकरी पाओ’ जैसी पहल खिलाड़ियों को आगे बढ़ने का भरोसा दे रही हैं।
गंगा की लहरों में तैरता हौसला हो या नाव पर दौड़ती जीत ये दोनों खिलाड़ी यह संदेश दे रहे हैं कि बिहार अब सिर्फ संभावनाओं का राज्य नहीं, बल्कि उपलब्धियों की धरती बन चुका है।







