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बिहार विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर तेजस्वी यादव को लगेगा बड़ा झटका...

Bihar Desk: अप्रैल 2026 में बिहार कोटे की राज्यसभा में 5 सीटें खाली हो रही हैं, जिनके लिए निर्वाचन होगा. इन 5 में 4 सीटें एनडीए की हैं, जबकि 2 सीटों पर आरजेडी के सदस्य राज्यसभा गए थे. चूंकि आरजेडी के पास अब सिर्फ 25 विधायक हैं और उसके सहयोगी दलों के पास एमएलए हैं, इसलिए एक भी सदस्य को राज्यसभा भेज पाना संभव नहीं होगा...
 
TEJASWI YADAV

Bihar Desk: तेजस्वी यादव को बिहार विधानसभा चुनाव में हार का जबरदस्त झटका लगा. 2015 से 2020 तक आरजेडी के आगे बढ़ते रहने का सिलसिला तो थम ही गया, आगे भी बड़े झटके खाने के लिए तेजस्वी को तैयार रहना पड़ेगा. तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी को इस बार विधानसभा चुनाव में जितनी सीटें मिली हैं, उतने में एक सदस्य को भी राज्यसभा भेज पाना असंभव है. चूंकि एनडीए का विधानसभा में 202 सीटों पर कब्जा है, इसलिए उसकी तो बल्ले-बल्ले रहेगी.

Bihar Election: तेजस्वी यादव का बड़ा आरोप, कम अंतर से हार-जीत वाली सीटों पर  वोट छांटना चाहती है भाजपा

अप्रैल 2026 में बिहार कोटे की राज्यसभा में 5 सीटें खाली हो रही हैं, जिनके लिए निर्वाचन होगा. इन 5 में 4 सीटें एनडीए की हैं, जबकि 2 सीटों पर आरजेडी के सदस्य राज्यसभा गए थे. चूंकि आरजेडी के पास अब सिर्फ 25 विधायक हैं और उसके सहयोगी दलों के पास एमएलए हैं, इसलिए एक भी सदस्य को राज्यसभा भेज पाना संभव नहीं होगा. इसका नतीजा यह होगा कि राज्यसभा में आरजेडी के सदस्यों की संख्या घटेगी.

राज्यसभा में बिहार के लिए 16 सदस्यों का कोटा हैं. आरजेडी के अभी 5 सदस्य हैं. इनमें प्रेमचंद गुप्ता और अमरेंद्र धारी सिंह की सदस्या अप्रैल 2026 में समाप्त हो जाएगी. मनोज झा और संजय यादव का कार्यकाल 2030 तक है, जबकि फैयाज अहमद का कार्यकाल 2028 में समाप्त हो रहा है. महागठबंधन की प्रमुख घटक कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह भी राज्यसभा में हैं. उनका कार्यकाल भी 2030 में ही खत्म होगा.

एनडीए की बात करें तो अप्रैल 2026 में उसके 4 सदस्यों का कार्यकाल खत्म होगा. इनमें जेडीयू कोटे के सदस्य और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, रामनाथ ठाकुर के अलावा भाजपा और आरएलएम के एक-एक सदस्य हैं. एनडीए के लिए रिक्त स्थानों पर अपने लोगों को भेजने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन आरजेडी के लिए तो यह असंभव है.

राज्यसभा निर्वाचन में विधायकों की ही भूमिका होती है. दूसरे शब्दों में कहें तो विधायक ही राज्यसभा सदस्य को चुनते हैं. बिहार में एक सदस्य के चुनाव में 41 विधायकों का समर्थन जरूरी है. इस हिसाब से देखें तो विपक्ष के हाथ इस बार खाली रहेंगे. इसका असर 2030 में खाली होने वाली सीटों पर होने वाले निर्वाचन पर भी पड़ेगा. इसलिए कि 2030 में जब सीटें रिक्त होंगी, तब भी संख्या एनडीए के घटक दलों की ही मजबूत रहेगी. हालांकि उसी साल विधानसभा के चुनाव भी होंगे, लेकिन उसके पहले ही राज्यसभा चुनाव का अवसर आएगा. यानी अभी जो एनडीए विधायकों की संख्या है, वह 2030 में भी राज्यसभा निर्वाचन के वक्त उतनी ही रहेगी. बिहार विधानसभा में 243 विधायक हैं. इनमें एनडीए के पास 202 तो 35 विधायक विपक्षी महागठबंधन के पास हैं.

राज्यसभा का चुनाव सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होता है. इसका जो पैमाना बना है, उसकी गणना कुल असेंबली सीट/6+1 (243/6+1 = 41) के आधार पर होती है. मसलन किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 41 फर्स्ट प्रेफरेंस वाले वोट की जरूरत पड़ेगी. महागठबंधन के तमाम वोट एकत्र करने पर भी संख्या 35 से आगे नहीं बढ़ेगी. ऐसे में आरजेडी को अब किसी को राज्यसभा भेज पाना कम से कम 2030 तक तो संभव नहीं हो पाएगा.

उपेंद्र कुशवाहा का कार्यकाल सिर्फ 2 साल का था. उनका कार्यकाल भी अप्रैल 2026 में समाप्त हो रहा है. उनके पास सिर्फ 4 विधायक हैं. इतने कम विधायकों के सहारे उनका अपने बूते राज्यसभा जाना संभव नहीं है. इसलिए उन्हें भी अगर राज्यसभा में रिपीट होना है तो एनडीए के बाकी दलों का समर्थन जरूरी होगा. बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को जितनी सीटें मिलीं, उससे वे संतुष्ट नहीं थे. तब एनडीए की अग्रणी पार्टी भाजपा ने उन्हें विधान परिषद में एक सीट के अलावा राज्यसभा की एक सीट का भी आश्वासन दिया था. कुशवाहा ने विधान परिषद की सीट मिलने की प्रत्याशा में अपने बेटे दीपक को नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल कराया है. भाजपा और जेडीयू की सहमति बनी तो उपेंद्र कुशवाहा खुद राज्यसभा जाएंगे.

आरजेडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला है. अव्वल तो सरकार बनाने के तेजस्वी के सपने पर पानी फिर गया. दूसरे राज्यसभा चुनाव में भी उसके लिए एक भी सीट जीत पाना असंभव दिख रहा है. उसके पास महज 25 एमएलए हैं. कांग्रेस के 6 और AIMIM 5 विधायकों को मिला कर भी उसके 36 वोट ही होते हैं, जबकि 41 वोट जरूरी हैं. कोई ट्रांसफर वोट भी आरजेडी की मदद नहीं करेगा, क्योंकि एनडीए के पास 203 विधायक हैं और वे खाली हो रहीं राज्यसभा की सभी 5 सीटें जीत सकते हैं. ऐसा होने पर राज्यसभा में आरजेडी सदस्यों की संख्या 5 से घट कर 3 रह जाएगी. इतना ही नहीं, 2028 और 2030 में तो यह शून्य पर आ जाएगी. यही हाल विधान परिषद चुनाव में भी होगा.

नीतीश कुमार ने जेडीयू से राज्यसभा जाने वालों के लिए अधिकतम 2 टर्म की अनकही लिमिट तय कर रखी है. अली अनवर और आरसीपी सिंह को तीसरी बार नीतीश ने राज्यसभा जाने का मौका नहीं दिया. जेडीयू के अभी अभी 5 सदस्य राज्यसबा में हैं. इनमें हरिवंश और रामनाथ ठाकुर का कार्यकाल अप्रैल 2026 में खत्म होगा. पिछले कुछ सालों से नीतीश कुमार ने एक अलिखित परंपरा कायम कर रखी है. जो दोनों सीटें खाली होंगी, उन सदस्यों का यह दूसरा कार्यकाल है. इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश अपने बनाए नियम से पीछे हटते हैं या कायम रहते हैं.