बिहार में महिला रोजगार योजना पर उठा विवाद, 10 हजार की मदद अब बनी प्रशासन के लिए चुनौती
Bihar political update: बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद जिस मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना को सरकार की बड़ी उपलब्धि और महिला सशक्तिकरण का उदाहरण बताया जा रहा था, वही योजना अब विवादों के घेरे में आ गई है। 10 हजार रुपये की इस आर्थिक सहायता योजना को लेकर सामने आई नई जानकारियों ने प्रशासनिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह योजना जीविका से जुड़ी महिला स्वयं सहायता समूहों की सदस्यों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से लागू की गई थी। चुनावी दौर में इसे एनडीए की जीत का एक अहम कारण भी माना गया, लेकिन अब इसके क्रियान्वयन में सामने आई गड़बड़ियों ने पूरे मामले को राजनीतिक और प्रशासनिक बहस के केंद्र में ला दिया है।
पुरुषों के खातों में पहुंची राशि, वसूली का आदेश जारी
विवाद की शुरुआत दरभंगा जिले के जाले प्रखंड से जारी एक आधिकारिक जीविका पत्र के वायरल होने के बाद हुई। इस पत्र में स्वीकार किया गया है कि “तकनीकी त्रुटि” के कारण योजना की 10 हजार रुपये की राशि कुछ पुरुष लाभार्थियों के खातों में भी ट्रांसफर हो गई है, जबकि यह योजना केवल महिलाओं के लिए थी।
पत्र में ऐसे पुरुषों से अपील की गई है कि वे यह राशि तुरंत सरकारी खाते में वापस जमा करें। इस दस्तावेज के सामने आने के बाद न केवल प्रशासन में हलचल मच गई, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गई हैं।
चुनावी मदद समझकर खर्च कर चुके लोग, अब परेशानी में
जिन पुरुषों के खातों में यह राशि आई, उनमें से कई लोगों ने इसे चुनावी मौसम में सरकार की ओर से मिली सहायता मानकर खर्च कर दिया। खासकर गरीब और बेरोजगार परिवारों के लिए यह रकम उस वक्त राहत की तरह थी। अब जब वसूली का पत्र सामने आया है, तो लोग खुद को असमंजस और दबाव में महसूस कर रहे हैं।
स्थानीय स्तर पर यह चर्चा तेज है कि जिन लोगों ने पहले ही पैसे खर्च कर दिए हैं, उनके लिए अब राशि लौटाना आसान नहीं होगा। इससे योजना लाभार्थियों में नाराज़गी भी देखने को मिल रही है।
विपक्ष ने साधा निशाना, उठे वोट खरीद के आरोप
इस पूरे मामले को लेकर विपक्षी दलों, खासकर राजद, ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। विपक्ष का आरोप है कि चुनाव से ठीक पहले इतनी बड़ी राशि का डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर करना एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति थी, जिसमें हड़बड़ी के कारण भारी प्रशासनिक चूक हो गई।
विपक्ष का कहना है कि भुखमरी और बेरोजगारी से जूझ रहे लोगों ने इस रकम को तुरंत खर्च किया होगा और अब उनसे पैसा वापस मांगना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि यह सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़े करता है।
पारदर्शिता और सिस्टम पर सवाल
इस विवाद ने महिला रोजगार योजना की पारदर्शिता, डेटा सत्यापन और योजना लागू करने की टाइमिंग—तीनों पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। अब यह मामला सिर्फ तकनीकी गलती तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और चुनावी नैतिकता से जुड़ी बहस का रूप ले चुका है।
आने वाले दिनों में सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और वसूली की प्रक्रिया को कैसे संभालती है, इस पर पूरे राज्य की निगाहें टिकी हुई हैं।







