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महाराजगंज लोकसभा: हैट्रिक के प्रयास में सिग्रीवाल,आकाश से मुकाबला, समझिए समीकरण

 

- अनिकेत पाठक 

लोकसभा चुनाव छठे चरण में बिहार की 8  सीटों पर मतदान होना है। जिसमें एक सीट महाराजगंज भी है। इस लोकसभा सीट का अपना एक अलग इतिहास और महत्त्व है। राजपूत बहुल महाराजगंज को बिहार का चितौडगढ़ भी कहा जाता है। राजपूतों का अधिक संख्या में होने का असर यहाँ की राजनीति में भी साफ़ देखने को मिलता है। इस लोकसभा सीट से सबसे अधिक 13 बार राजपूत सांसद रहे हैं। जबकि चार बार भूमिहार और एक बार कायस्थ  को भी मौका मिला इस लोकसभा सीट से एक और खास बात ये है कि यहाँ से जीतने वाले एक उम्मीदवार ऐसे भी रहे जो बाद में देश के प्रधानमंत्री बने। वहीं एक ऐसा उम्मीदवार भी हैं जो यहां से कई बार सांसद रहे लेकिन अब जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। इस बार भी यहाँ राजपूत और भूमिहार उम्मीदवार आमने सामने हैं। पिछले दो बार से भाजपा के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल  जीत की हैट्रिक के लिए दम लगा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे आकाश सिंह मैदान में हैं।

1984 में आखिरी बार जीती थी कांग्रेस 

महाराजगंज लोकसभा सीट कभी कांग्रेस का अभेद्य दुर्ग हुआ करता था। शुरूआती कई लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के अलग-अलग प्रत्याशी यहाँ जीतते रहे। 1971 और फिर 1977 में इमरजेंसी के बाद कांग्रेस यहाँ लड़खड़ा गई। 1980 और 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की। लेकिन इसके बाद कांग्रेस यहाँ कभी भी जीत नहीं सकी। 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस का किला यहाँ पूरी तरह से ध्वस्त हो गया।

महाराजगंज से सांसद बने थे पूर्व PM चंद्रशेखर

1989 के लोकसभा चुनाव में महाराजगंज लोकसभा सीट पर चंद्रशेखर ने चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की। वही चंद्रशेखर आगे चलकर देश के 8 वें प्रधानमंत्री भी बने। हालांकि 1989 में चंद्रशेखर ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था। पहला यूपी का बलिया लोकसभा सीट और दूसरा बिहार का महाराजगंज लोकसभा सीट। उनको दोनों ही सीटों पर जीत मिली इसलिए उन्होंने महाराजगंज लोकसभा सीट को छोड़ दिया। इसलिए 1989 में ही महाराजगंज में उपचुनाव हुए जिसमें चंद्रशेखर के जनता दल के उम्मीदवार राम बहादुर सिंह ने जीत हासिल की।

लंबे समय तक प्रभुनाथ सिंह का रहा दबदबा 

महाराजगंज की राजनीति में 1998 के लोकसभा चुनाव के बाद एंट्री होती है प्रभुनाथ सिंह की। वही प्रभुनाथ सिंह जो हत्या के आरोप में फ़िलहाल उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। 1998 में समता पार्टी और फिर 1999 और 2004 में वो जदयू के उम्मीदवार के तौर पर महारागंज से सांसद चुने गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने लालू से हाथ मिला लिया। 2009 में जीते राजद सांसद उमाशंकर सिंह का निधन 2013 में हो गया। जिसके बाद हुए उपचुनाव में राजद उम्मीदवार के तौर पर प्रभुनाथ सिंह ने फिर से जीत हासिल की। ये उनकी आखिरी जीत थी।

सिग्रीवाल ने प्रभुनाथ के किले में लगाई सेंध 

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने प्रभुनाथ सिंह को मात दी और जीत हासिल की। 2019 में राजद की तरफ से प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह को उम्मीदवार बनाया गया। लेकिन उन्हें भी जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने पटखनी दी और लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए। माना जा रहा है कि इस बार भी महाराजगंज में भाजपा और राजद के बीच ही लड़ाई होगी।

इसबार आकाश से सिग्रीवाल की लड़ाई 

भाजपा ने एक बार फिर से जनार्दन सिंह सिग्रिवाल को मैदान में उतारा है। वहीं दूसरी तरफ से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे आकाश सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है। सीट शेयरिंग में ये सीट कांग्रेस के पास जाने से पिछली बार राजद के टिकट पर लड़े रणधीर सिंह नाराज चल रहे थे। आकाश को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद रणधीर सिंह ने राजद छोड़कर जदयू का दामन थाम लिया। जो सिग्रीवाल के लिए एक प्लस पॉइंट है। वही बात करें आकाश सिंह की तो 2019 में वो उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के टिकट पर पूर्वी चंपारण से लड़े थे लेकिन हार गए थे।

महाराजगंज में जातीय समीकरण

महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में में मतदाताओं की कुल संख्या 19 लाख के करीब है। जिसमें राजपूत संख्या करीब 4 लाख 38 हजार है। इसके बाद दूसरे नंबर पर भूमिहार मतदाता हैं. इनकी संख्या 4 लाख से कुछ ज्यादा है. 2 लाख 75 हजार ब्राह्मण और करीब ढाई लाख यादव मतदाता हैं। कुर्मी-कोइरी, एससी-एसटी और वैश्य मतदाता भी 3 लाख 90 हजार के पार हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 1 लाख 75 हजार है। 

विधानसभा में INDIA गठबंधन मजबूत 

अब बात महाराजगंज के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्र के बारे में कर लेते हैं। महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट हैं। जिसमें से 2 पर राजद, 1 पर सीपीआई(एम), 2 पर भाजपा और 1 पर कांग्रेस का कब्ज़ा है। मतलब विधानसभा में यहाँ NDA की तुलना में INDIA गठबंधन ज्यादा मजबूत है।