Movie prime

बिहार में शराबबंदी पर मांझी का बड़ा हमला: “नीति सही, लेकिन सिस्टम बीमार… ग़रीब जेल में और तस्कर चुनाव जीत रहे हैं”

 
Jitan Ram manjhi

Bihar political update: बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमाई हुई है। अपनी ही सरकार पर केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का तीखा बयान सत्ता गलियारों में हलचल पैदा कर रहा है। मांझी ने कहा कि शराबबंदी नीतिगत रूप से बिल्कुल सही है—इससे घरेलू हिंसा में कमी, परिवारों में तनाव घटा और शराबखोरी से होने वाली मानसिक और आर्थिक क्षति पर लगाम लगी। लेकिन इसके बाद जो सवाल उन्होंने उठाए, उसने पूरे सिस्टम की मजबूरी और खामियों पर सीधी उंगली रख दी।

“तस्करों पर कार्रवाई करो, मज़दूर को मत सताओ… मगर हो उल्टा रहा है”

मांझी ने याद दिलाया कि शराबबंदी की तीसरी समीक्षा उनके दबाव पर हुई थी, जिसमें साफ निर्देश दिए गए थे कि असली धंधेबाज़ों पर शिकंजा कसा जाए, न कि रोज़ कमाने वाले मज़दूरों को परेशान किया जाए।
उन्होंने आंकड़े साझा करते हुए कहा कि शराबबंदी के तहत दर्ज करीब 6 लाख केसों में से 4 लाख पहली बार पकड़े गए लोग हैं, जिनमें ज्यादातर रिक्शावाले, दिहाड़ी मजदूर और गरीब तबके के लोग शामिल हैं।

“शराबबंदी है… तो फिर करोड़ों खर्च कर चुनाव कौन लड़ रहा है?”

मांझी का सबसे चौंकाने वाला आरोप यह रहा कि शराब तस्कर आज 5 से 10 करोड़ रुपये ख़र्च कर चुनाव लड़ रहे हैं और जीत भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे खुद ऐसे लोगों को जानते हैं। उनका सवाल साफ था, अगर शराबबंदी लागू है, तो काला धन और सप्लाई चैन आखिर चल कहां से रही है?

“पहाड़ों, नदियों, जंगलों में रोज़ बनती है शराब… असली खिलाड़ी पकड़े क्यों नहीं जाते?”

मांझी ने अफसरशाही पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि विभिन्न इलाकों—खेतों, पहाड़ों, नदी तट और जंगलों में—हर रोज़ हजारों लीटर अवैध शराब बनाई जाती है। लेकिन असली तस्करों पर बड़ी कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि “अफसरों और विभागीय कर्मियों की मिलीभगत से पूरा खेल चलता है।”

“नीतीश की मंशा साफ, लेकिन सिस्टम कमजोर है”

अंत में मांझी ने साफ कहा कि शराबबंदी को सफल बनाना सिर्फ मुख्यमंत्री की नीयत पर निर्भर नहीं करता, बल्कि प्रशासन की ईमानदारी और पारदर्शिता ही इसका असली आधार है। उन्होंने चेतावनी दी कि सिस्टम में सुधार किए बिना शराबबंदी का उद्देश्य कभी पूरा नहीं होगा।

मांझी के इस बयान ने राजनीतिक बहस को अचानक नई दिशा दे दी है क्योंकि सवाल सिर्फ नीति का नहीं, बल्कि उसकी ज़मीनी हकीकत और प्रशासनिक जवाबदेही का भी है।